November 22, 2024

राष्ट्र की परम्परा

हिन्दी दैनिक-मुद्द्दे जनहित के

मदद करना सामाजिक दायित्व

कविता

कभी कभी मैं भिक्षुक बन जाता हूँ,
अपने लिये नहीं पर मैं कुछ माँगता हूँ,
सबके लिये सबकी मदद के लिये,
कुछ न कुछ कभी कभी माँग लेता हूँ।

कभी कुछ सामूहिक याचना करता हूँ,
कभी सबके, कभी जनहित के लिये,
अक्सर मैं हर किसी से मदद माँगता हूँ,
कोई मदद करे न करे पर माँगता हूँ।

जीवन में किसी को कुछ दे देना,
किसी की आवश्यक मदद करना,
सामाजिक उत्तरदायित्व निभाता है,
मुँह मोड़ लेना स्वार्थलिप्त बनाता है।

जैसे पौधों से खुशबू, सौंदर्य, फल
और छाया अपने आप मिल जाती है,
वैसे ही भलाई करने से आशीर्वाद
की कृपा स्वतः प्राप्त हो जाती है।

परेशानी आने पर धैर्य, अधिकार
मिलने पर विनम्रता, क्रोध आने पर
शांत रहें और धन आये तो दान देना
यही जीवन का प्रबंधन कहलाता है।

आज किसी की मदद यदि कर दोगे,
कल वही मदद लौट कर आ जायेगी,
आदित्य समाजिकता का यह बंधन,
पारस्परिक सम्बंध को भी सुधारेगी।

•कर्नल आदि शंकर मिश्र ‘आदित्य’