जाड्यंधियोहरति सिंचतिवाचि सत्यं,
मान्नोनतिं दिशति पापमपकरोति।
चेतःप्रसादयति दिक्षुतनोति कीर्तिं,
सत्संगतिः कथयकिंनकरोति पुंसाम्।
सज्जनों की संगति मनुष्य
को क्या क्या नहीं देती है,
सत् संगति बुद्धि की जड़ता
को समूल नष्ट कर देती है।
यह मनुष्य के वचनों एवं
भाषा में सत्यता लाती है,
यह हर व्यक्ति को सही राह
पर चलने में मदद करती है।
सम्मान में बृद्धि करती है,पापों व
पापियों की प्रवृत्ति नष्ट करती है,
यह मन को पवित्र करती है, मित्र की
कीर्ति सभी दिशाओं में फैलाती है।
कदली का पौधा कितना कोमल
और दिखने में सुंदर लगता है,
बेरी का पेड़ कदली के साथ खड़ा
हवा के साथ काँटों से अंग फाड़ता है।
संगत का असर हर चीज़ पर
गुणों के ऊपर निर्भर होता है,
पानी की बूँद कमलदल पर पड़ती
है तो मोती की तरह चमकती है।
वही बूँद पानी की जब सीप में
जाती है खुद मोती ही बन जाती है,
लोहे के गर्म तवे पर गिरकर पानी की
वही बूँद खुद जलकर मिट जाती है।
हर संगति का असर उसकी ही
प्रकृति के ऊपर निर्भर होता है,
आदित्य पानी जब रंग में मिलता है
तो उसी रंग का जैसा हो जाता है ।
कर्नल आदि शंकर मिश्र ‘आदित्य’
लखनऊ
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