

वाराणसी/बेंगलुरू (राष्ट्र की परम्परा)। प्रेमचंद मार्गदर्शन केंद्र (ट्रस्ट) लमही, वाराणसी और सेंट क्लॉरेट कॉलेज, (जलाहल्ली) बेंगलुरू के संयुक्त तत्वावधान में कमल के सिपाही मुंशी प्रेमचंद की कहानियों के १०० वर्ष पूर्ण होने के अवसर पर “प्रेमचंद के साहित्य में विविध विमर्श” विषयक एक दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का ऑनलाइन एवं ऑफलाइन मोड में आयोजन किया गया। संगोष्ठी का आयोजन दो सत्रों में किया गया।
संगोष्ठी का उद्घाटन प्रार्थना गायन से हुआ। तत्पश्चात सेंट क्लॉरेट कॉलेज द्वारा महाविद्यालय की उपलब्धियों को चलचित्र के माध्यम से प्रस्तुत किया।
भौतिक उपस्थित श्रोताओं और ऑनलाइन वक्ताओं का स्वागत डॉ. अतुल कुमार पांडेय द्वारा किया। संगोष्ठी के प्रथम सत्र में काशी हिंदू विश्वविद्यालय के आचार्य डॉ. आशीष त्रिपाठी विषय प्रवर्तक की भूमिका का निर्वहन करते हुए कहा कि प्रेमचंद का साहित्य तत्कालीन अंग्रेजी राज के अधीन समाज की अंदरूनी सच्चाई और तत्कालीन विमर्शों को उजागर करता है।
काशी हिंदू विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग के आचार्य डॉ. मनोज कुमार सिंह ने बीज वक्तव्य देते हुए कहा कि प्रेमचंद को विमर्श का नही बल्कि जीवन का लेखक बताया। डॉ. सिंह के अनुसार प्रेमचंद ने अपनी रचनाओं द्वारा ग्रामीण जीवन, मध्य वर्ग, सामंती व्यवस्था एवं दलित समाज की सच्चाई को कलमबद्ध कर अपने साहित्य के माध्यम से समाज के सामने रखा।
संगोष्ठी को संबोधित करते हुए डॉ. आरसु ने दक्षिण भारत में प्रेमचंद की स्वीकार्यता पर विस्तार से प्रकाश डाला। डा. राम सिंहासन सिंह ने प्रेमचंद की रचनाओं में मानवीय मूल्यों और ग्रामीण जीवन पर प्रकाश डाला।
अध्यक्षीय उद्बोधन में डॉ. राम सुधार सिंह ने प्रेमचंद को भारत निर्माण में अहम अगुवा के रूप में स्थापित किया जो अपने लेखन के माध्यम से उत्तर और दक्षिण को एक सूत्र में पिरोते हैं।
कार्यक्रम के द्वितीय सत्र में विभिन्न विश्वविद्यालयों के कुल 53 प्रतिभागियों ने अपने शोध पत्रों का वाचन किया। इस सत्र की अध्यक्षता डॉ. शुभा श्रीवास्तव, डॉ. ऊषा रानी राव, प्रो. लता चौहान और डॉ. विनय कुमार यादव ने की।
संगोष्ठी के उद्देश्य और उपादेयता के बारे में राजीव गोंड ने बताया। कार्यक्रम का सफल संचालन डा. सुप्रिया सिंह ने किया एवं धन्यवाद ज्ञापन डॉ. आशीष द्वारा किया गया। कॉलेज के प्राचार्य रेव डॉ. थॉमस वी थेनेडियल, भाषा विभाग अध्यक्ष डॉ.मादेश एन एवं भाषा विभाग के अन्य सहयोगी शिक्षकों तथा विद्यार्थियों ने अपना सहयोग देकर संगोष्ठी को सफल बनाने में प्रमुख योगदान दिया।
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