● नवनीत मिश्र
दुनिया में कलाकारों की कमी नहीं, लेकिन कुछ लोग अपनी कल्पनाशक्ति और साधना से ऐसे चमत्कार कर दिखाते हैं जो सामान्य सोच से परे हों। ऐसी ही अद्भुत प्रतिभा के धनी हैं पीयूष गोयल, जिन्होंने पाँच अलग-अलग तरीकों से पाँच क्लासिक किताबें लिखकर साहित्य और कला जगत को चौंका दिया है। उनकी यह कला न सिर्फ कौशल का प्रमाण है, बल्कि संकल्प, धैर्य और निरंतर अभ्यास का अद्भुत संगम भी है।
उल्टे अक्षरों में लिखी भागवत गीता
पीयूष गोयल की साधना की शुरुआत भागवत गीता से हुई। उन्होंने श्रीमद्भगवद्गीता को मिरर इमेज शैली में लिखा। पहली दृष्टि में अक्षर समझ में नहीं आते, लेकिन दर्पण के सामने रखते ही शब्द साफ दिखाई देते हैं। यह लेखन शैली इतनी दुर्लभ है कि पाठक किताब को देखकर पहले आश्चर्य, फिर प्रशंसा से भर उठते हैं।
सुई से लिखी ‘मधुशाला’: दुनिया की पहली Needle-Written Mirror Book
जब लोगों ने कहा कि मिरर इमेज पढ़ने के लिए दर्पण साथ रखना कठिन होता है, तो पीयूष ने समाधान के रूप में सुई का सहारा लिया।
हरिवंश राय बच्चन की अमर कृति ‘मधुशाला’ को उन्होंने सुई से पन्नों पर उकेरा। न स्याही, न पेन, केवल सुई की नोक से शब्द बनाना अत्यंत धैर्य का कार्य है।
करीब ढाई महीने की साधना के बाद तैयार हुई यह पुस्तक दुनिया की पहली ऐसी रचना मानी जाती है जो सुई से और मिरर इमेज दोनों रूप में लिखी गई है।
मेंहदी कोन से रची गई ‘गीतांजलि’
रबीन्द्रनाथ टैगोर की विश्व प्रसिद्ध कृति ‘गीतांजलि’ को पीयूष ने मेहंदी कोन से लिखा।
17 मेहंदी कोन और दो नोटबुक्स में तैयार हुए 103 अध्याय सौंदर्य और आध्यात्मिकता दोनों की अनूठी मिसाल हैं। मेहंदी जैसी नाजुक माध्यम से इतना विस्तृत लेखन करना अत्यंत कठिन है, लेकिन उनकी कला इसे सहज बना देती है।
कील से उकेरी अपनी ही पुस्तक ‘पीयूष वाणी’
सुई से पुस्तक लिखने के बाद उन्होंने प्रयोग को एक कदम आगे बढ़ाकर ‘कील’ को लेखन माध्यम बनाया।
ए-4 साइज की एल्युमिनियम शीट पर उन्होंने ‘पीयूष वाणी’ को कील से उकेरा। इसे बनाना न सिर्फ कौशल, बल्कि गहरी एकाग्रता और श्रम की मांग करता है। यह कला उनके भीतर छिपी असीम संभावनाओं का परिचायक है।
कार्बन पेपर से लिखी पंचतंत्र
आचार्य विष्णु शर्मा की पंचतंत्र को लिखने के लिए पीयूष ने कार्बन पेपर का अनोखा प्रयोग किया।
उन्होंने कार्बन पेपर को उल्टा रखकर लिखा, जिससे एक तरफ शब्द उल्टे और दूसरी तरफ सीधे बन गए। इस तकनीक से पंचतंत्र की पाँचों तंत्र और 41 कहानियों को विशेष अंदाज़ में रूप दिया गया।
संघर्ष से साधना तक का सफर
10 फ़रवरी 1967 को जन्मे पीयूष गोयल पेशे से मैकेनिकल इंजीनियर हैं। वर्ष 2000 में हुए गंभीर हादसे के कारण वे नौ महीने बिस्तर पर रहे। इसी दौरान उन्होंने श्रीमद्भगवद्गीता को जीवन में आत्मसात किया।
स्वास्थ्य लाभ के बाद उन्होंने कुछ अलग करने की इच्छा से उल्टे अक्षरों में लिखने का अभ्यास शुरू किया और फिर एक-एक करके ऐसी अद्भुत कृतियाँ जन्म लेती चली गईं।
जीवन-मंत्र बना प्रेरणा का स्रोत
“नर हो न निराश करो मन को, कुछ काम करो, कुछ नाम करो”
इन पंक्तियों को जीवन का आधार मानकर पीयूष अपनी कला को निरंतर निखारते रहे। आज वे कई ग्रंथों को अलग-अलग शैली में लिख चुके हैं और उनका यह अनोखा काम साहित्य जगत में नई दिशा दिखाता है।
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