बहराइच (राष्ट्र की परम्परा)। उपनिदेशक पंचायत गिरीश चंद्र रजक के निर्देशन में शनिवार को देवीपाटन मंडल के ग्राम प्रधानों को ऑनलाइन ट्रेनिंग दो बैचों में क्रमशः प्रातः 10 बजे से बहराइच व श्रावस्ती तथा अपराह्न 2 बजे से बलरामपुर व गोण्डा को दी गई । प्रशिक्षण में डीपीआरसी के सीनियर फैकल्टी बृजेश कुमार पाण्डेय द्वारा उच्च न्यायालय द्वारा जनहित याचिका संख्या 1050/2024 अम्बिका यादव बनाम उ0प्र0 राज्य व अन्य के सन्दर्भ में पारित आदेश 23.10.2024 के प्रस्तर 20 एवं 28 एवं जनहित याचिका संख्या- 2080/2024, रमाकांत यादव बनाम उ0प्र0 राज्य व अन्य में पारित आदेश 24.10.2024 के क्रम में उक्त प्रशिक्षण में उत्तर प्रदेश पंचायती राज अधिनियम 1947 की धारा 15 के अनुसार ग्राम पंचायत के कार्य एवं धारा 95 (1) (छ) प्राविधानुसार ग्राम प्रधान को पद से हटाये जाने के सम्बन्ध में बताया गया, साथ ही ग्राम प्रधान को स्वयं के आय का रिटर्न दाखिल करने की जानकारी दी गयी। साथ ही महिला प्रधानों को उनके अधिकारों और कर्तव्यों के सम्बन्ध में विशेष रूप से जानकारी दी गयी। ग्राम प्रधान एवं सदस्य को हटाये जाने की धारा 95 (1) (छ) के बारे में विस्तृत जानकारी देते हुए बताया कि ग्राम प्रधान या सदस्यों द्वारा बिना उचित कारण के लगातार तीन से अधिक सभाओं या बैठकों में उपस्थित न होने के कारण या कार्य करने से इन्कार करने पर या किसी भी कारण से कार्य करने में अक्षम हो जाने पर, अथवा उस पर नैतिक अक्षमता के अपराध का अभियोग लगाया गया हो या दोषारोपण किया गया हो या वह अपने पद का दुरूपयोग किया हो या पंचायती राज एक्ट में सौंपे गये कार्यों को करने में निरन्तर चूक की हो, अथवा पद पर बने रहना जनहित में न हो या उसमें पंचायती राज एक्ट की धारा 5 (क) में दी गयी अर्हताए में से कोई अर्हता हो जो उसे ग्राम पंचायत का प्रधान या सदस्य चुनने के लिए अयोग्य बताती हो, तब की स्थिति में जिला मजिस्ट्रेट द्वारा नियुक्त जिला स्तरीय अधिकारी के द्वारा जांच करायी जायेगी। ग्राम पंचायत के प्रधान य उनके किसी सदस्य को या संयुक्त समिति या भूमि प्रबन्धन समिति के किसी सदस्य को जांच में पहली नजर में वित्तीय या अन्य अनियमितताओं में दोषी पाये जाने पर प्रधान या सदस्य के वित्तीय एवं प्रशासनिक अधिकारों का प्रयोग नहीं कर सकेगा, जब तक अन्तिम रूप से जांच पूरी न हो जाये तब तक उनका कार्य करने के लिए जिला मजिस्ट्रेट ग्राम पंचायत के 03 सदस्यों की एक समिति बनायेंगे, साथ ही किसी ग्राम पंचायत, संयुक्त समिति, भूमि प्रबन्धन समिति अथवा प्रधान या सदस्य के विरूद्ध कोई कार्यवाही करने से पहले उसे अपना पक्ष रखने के लिए उचित मौका देंगे।
उत्तर प्रदेश पंचायतीराज अधिनियम 1947 की धारा 15 के अनुसार ग्राम पंचायत के कार्यों, अधिकार दायित्व एवं जिम्मेदारियों के बारे में उल्लेख किया गया है जिस पर चर्चा करते हुए बताया गया कि ग्राम पंचायत के कुछ अनिवार्य कार्य हैं, जिसमें सफाई एवं स्वच्छता में सार्वजनिक स्थानों पर स्वच्छता बनाये रखना तथा खुले में शौच को रोकने एवं शौचालय निर्माण एवं प्रयोग को प्रोत्साहन देना, पेयजल व्यवस्था के अन्तर्गत पेयजल की आपूर्ति सुनिश्चित करना, स्वास्थ्य एवं प्राथमिक चिकित्सा जिसमें संचालन एवं जागरूकता फैलाना, पंचायत की परिसम्पत्तियों का रख-रखाव करना साथ ही प्राथमिक शिक्षा को बढ़ावा देना एवं साक्षरता अभियान चलाना। वैकल्पिक कार्यों के रूप में ग्राम पंचायतें अपनी क्षमता के अनुसार कृषि एवं पशुपालन का विकास छोटे सिंचाई परियोजनाओं का संचालन, वृक्षारोपण एवं पर्यावरण संरक्षण, सांस्कृतिक एवं खेल गतिविधियों को प्रोत्साहन साथ ही गरीब और जरूरतमंदो को सहायता करना है। महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गांरटी योजनान्तर्गत जरूरतमंदों को मांग के अनुसार रोजगार सृजन करना। ग्राम पंचायत को अधिकार है कि कर शुल्क और अन्य आर्थिक संसाधन जुटा सकती है। यह धारा ग्राम पंचायत को सशक्त बनाती है ताकि वे ग्रामीण क्षेत्रों के समग्र विकास एवं प्रबन्धन में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा सके। महिला ग्राम प्रधान के कार्य एवं दायित्व पर विशेष चर्चा करते हुए बताया गया कि महिला ग्राम प्रधान यदि अपने अधिकारों और कर्तव्यों को सही तरीके से समझे उसका पालन करे तो वे न केवल अपने गांव के विकास में योगदान दे सकती हैं, बल्कि महिला सशक्तिकरण का एक मजबूत उदाहरण बन सकती हैं। महिला ग्राम पंचायतों का चयन पंचायती राज व्यवस्था में महिलाओं को सशक्त बनाने और ग्रामीण प्रशासन में उनकी भागीदारी बढाने के उद्देश्य किया गया है। ग्राम पंचायत के सभी बैठकों मे स्वयं अध्यक्षता करना, सरकारी योजनाओं के क्रियान्वयन एवं निगरानी की समीक्षा करना, निधियों का प्रबन्धन और विकास कार्याें में धन का उपयोग करने, पारदर्शिता बनाये रखने की जिम्मेदारी और अधिकार के साथ-साथ महिला सशक्तिकरण, बालिका शिक्षा, और महिला हिंसा रोकने का स्वयं प्रयास करना चाहिए। जिससे बाल विवाह, दहेज प्रथा, लिंग भेद-भाव जैसे कुप्रथाओं को रोकने में सहायता मिलेगी। साथ ही अपने संवैधानिक अधिकारों के बारे में जागरूक होंगी और अपना पदीय दायित्वों का स्वयं निर्वहन करंेगी। महिला प्रधान के स्थान पर प्रधानपति अथवा अन्य किसी प्रतिनिधि पर निर्भर नही रहेगी और प्रशिक्षण और बैठकों में स्वयं प्रतिभाग करेगी।
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