बहराइच (राष्ट्र की परम्परा)। कृषि सूचना तंत्र के सुदृढीकरण एवं कृषक जागरूकता कार्यक्रम अन्तर्गत रबी 2024-25 में एक दिवसीय विकासखण्ड स्तरीय कृषि निवेश मेला गोष्ठी का आयोजन विकासखण्ड चित्तौरा के राजकीय कृषि बीज भण्डार डीहा चित्तौरा पर किया गया, इस अवसर पर सदर विधायक प्रतिनिधि अशोक जायसवाल, उप संभागीय कृषि प्रसार अधिकारी कैसरगंज शिशिर कुमार वर्मा, सदर के उदय शंकर सिंह, नानपारा के सुधीर कुमार, खण्ड विकास अधिकारी चित्तौरा, प्रभारी राजकीय कृषि बीज भण्डार मनोज कुमार एवं विकासखण्ड चित्तौरा के प्रगतिशील कृषकगण उपस्थित रहें। इस अवसर पर जनप्रतिनिधि द्वारा मूसर बीज के 500 बीज मिनीफिट का वितरण किया गया,उप संभागीय कृषि प्रसार अधिकारी सदर बहराइच द्वारा सरकार द्वारा संचालित कृषि योजनाओं की जानकारी देते हुए श्री अन्न की खेती किये जाने हेतु कृषकों को प्रेरित किया गया। उन्होनें बताया कि जनपद के कृषकों का शासन द्वारा मूसर बीज का निःशुल्क मिनीकिट का वितरण किया जा रहा है। जिससे कृषि लागत में कमी आएगी एवं इसके साथ ही कृषकों द्वारा उत्तम गुणवत्ता बीज भी प्राप्त किया जा सकेगा। मसूर की खेती में के बारे में जानकारी देते हुए बताया गया कि जनपद में दलहनी फसलों के उत्पादन की अपार संभावना है तथा जनपद की मृदा भी दलहनी फसलों के लिये उपयुक्त हैं यहाँ कृषक दलहनी फसलों का उत्पादन कर अधिक लाभ प्राप्त कर सकते हैं। कृषि विभाग द्वारा कृषि यंत्रों पर अनुदान प्रदान किये जाने हेतु 23 अक्टूबर 2024 तक आनलाइन टोकन जनरेट किये जा रहे इच्छुक कृषक बंधु अपना टोकन जनरेट कर सकते हैं। साथ ही विभाग द्वारा संचालित पीएम कुसुम योजनान्तर्गत विभिन्न क्षमता के सोलर पम्प की स्थापना हेतु भी टोकन जनरेट किया जा रहा है और जिन कृषकों द्वारा 10 अक्टूबर के पूर्व टोकन निकाल लिया गया उनका टोकन कन्फर्म करते हुए कृषक अंश की धनराशि जमा करने हेत अन्तिम तिथि 24 अक्टूबर 2024 निर्धारित की गई है।
विधायक प्रतिनिधि अशोक जायसवाल जी द्वारा कृषकों को प्रदेश एवं केन्द्र की सरकार द्वारा कृषकों के हित में चलाई जा योजनाओं के बारे में अवगत कराते हुए बताया गया कि सरकार द्वारा वर्ष में 03 बार प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि के रूप रू. 6000 की धनराशि कृषकों को हस्तांतरित की जाती है जिससे वे अपने कृषि निवेशों को समय से क्रय कर अपनी आय में वृद्धि कर रहें हैं। साथ ही उनके द्वारा कृषकों से अनुरोध किया गया कि वे रासायनिक उर्वरकों पर निर्भरता कम करके प्राकृतिक खेती की तरफ बढे जिससे उनकी कृषि लागत में भी कमी आयेगी तथा उनसे होने वाली बीमारियों से भी बचा जा सकता है। अन्त में उनके द्वारा कृषकों को सुझाव दिया गया कि कृषक भाई अपने खेतों में परानी न जलाये इसे पार्यावरण प्रदूषित होता है तथा मृदा को भी नुकसान पहुँचता है। पराली जलाने की बजाए इसे खेतों में ही सडाकर खाद बना में इससे आपकी मृदा भी समृद्ध होगी तथा पार्यावरण भी सुरक्षित रहेगा।
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