मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है समाज के बारे में क्यों नहीं सोचता हैं

पूर्णियां/बिहार (राष्ट्र की परम्परा)। यह कथन महान दार्शनिक अरस्तु का है।उनके अनुसार “वह मनुष्य समाज में नहीं रहना चाहता वह या तो देवता है या दानव।” अरस्तु महान दार्शनिक प्लेटो के शिष्य थे ,एवं सिकंदर के गुरु थे ।उनका यह कहना था कि, अन्य जीवो की तरह मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है। जिसे हर कदम पर समाज की आवश्यकता पड़ती है। उनका यह कहना है कि, जो मनुष्य समाज में नहीं रहना चाहता वह मनुष्य या तो देवता है या दानव।क्योंकि सभी जीव एक समाज की भांति अपने समूह में रहते है ,वैसे ही मनुष्य को भी एक संगठित समूह में रहना श्रेयस्कर होगा,क्योंकि मनुष्य की जरूरतें,एवं तभी पूरी हो सकती है,जब मनुष्य संगठित होकर रहेगा।
जिस समय अरस्तु ने यह कथन कहीं होगी, उस समय जनसंख्या का घनत्व काफी कम रहा होगा। जंगल की जंगल चारों ओर रहे होंगे ।जंगली जीवो का डर मनुष्यो को सबसे ज्यादा रहता होगा ।आए दिन जंगली जीव ,मनुष्य का शिकार करते होंगे। मनुष्य की सुरक्षा हर वक्त असुरक्षित रही होगी। उस परिस्थिति में बहुत ज्यादा जरूरी होगा कि, मनुष्य एकजुट होकर समूह में रहे ।तभी उनकी सुरक्षा हो सकती है।
अरस्तु द्वारा यह कथा उस वक्त कहा गया होगा, जब धरती पर अन्य जीवो की जनसंख्या भी संतुलन में रही होगी । मनुष्य की भांति अन्य जीव का भी अस्तित्व इस धरती पर मनुष्य के समान रहा होगा। जैसें जानवर में सारे जानवर अपने अपने झुंड में चलते हैं और दूसरों जीवो से अपनी और अपने साथियों की सुरक्षा करते हैं।वैसे ही मनुष्य जीवन के लिए भी जरूरी है। पंरतु,धरती पर सारे प्राणियों को प्रकृतिक ने दिमाग दिया किंतु बुद्धि एवं विवेक मनुष्य को दिया ।सोचने और समझने ,एवं कुछ करने की क्षमता मनुष्य को दी ।इसी विवेक के कारण जो मनुष्य खोजी प्रवृति के होगें जंगलों की ओर चले जाते होंगे ,एव॔ अपनी जान गंवा बैठते होंगे। इसलिए अरस्तू ने कहा होगा कि अन्य जीवो की तरह मनुष्य भी सामाजिक प्राणी है ।मनुष्य को भी समाज में रहना चाहिए ।यह उनके कहने का उद्देश्य रहा होगा कि, मनुष्य संगठित रहेगे तो,सुरक्षित रहेगे,सरल तरीके से जीवन यापन कर सकेगें। अरस्तु के इस कथन का वर्तमान में क्या औचित्य है, मैं इस प्रश्न के उत्तर में उलझी हुई हूँ । मनुष्य का सामाजिक होना जरूरी है परंतु ,समाज कहते किसे हैं मनुष्य के द्वारा बनाए गए ईट कंक्रीट के मकानों को ?ऊंचे ऊंचे भवनों को ?
या फिर एक कमरे वाले मकान को जिसमें एकसाथ पांच व्यक्ति रहते है। या सड़को के किनारे जहां बिना सुरक्षा के लोग रात बिताते है। अरस्तु ने मनुष्य को नसीहत दी और लोग संगठित होने लगे। दो चार परिवार मिलकर कबीला बना कबीले गांव में बदलने लगे,गाँव शहर में बदलने लगे ,छोटे छोटे शहर महानगर बनने लगे।लोगो ने जंगल के जंगल काटकर गांव बना लिया ,शहर बना लिया ,महानगर बना लिए। मनुष्य संगठित होता गया? जंगल के जंगल कटते चले गये ? जंगली जीव का अस्तित्व खतरे में आ चुका है ?
जंगली जीव चिड़ियाघर व अभयारण्य की शोभामात्र रह गये है? पूरी धरती पर जैसे जंगल और जानवर थे,मनुष्य की संख्या सिमित थी ,अब पूरी धरती पर मनुष्य ही मनुष्य है ,जंगल और जंगलीजीवों की संख्या सीमित है ??
क्या ऐसे ही समाज की अरस्तु ने परिकल्पना
की थी? क्या अरस्तु ने ये कहा था कि, प्राकृतिक जीवन को छोड़कर कर ईट कंक्रीट का कृत्रिम जीवन मनुष्य अख्तियार कर ले??समाज के नाम पर प्रकृति का ही दोहन कर दे,जंगली जीवों का ही नाश कर दे ? नही बिल्कुल नही अरस्तु ने वैसे समाज की कल्पना की होगी, जिसमें मनुष्य भी जानवरों की भांति अपने समूह में संगठित रहें।परिवार समाज और संस्कृति धर्म बनाकर मनुष्य एक बेहतर जीवन यापन कर सके। प्रकृति का दोहन न करके प्रकृति के सहारे प्रकृति का विकास कर जीवन यापन कर सके।अगर अरस्तु के अनुसार यह समाज बना होता तो,मनुष्य जीवन पर संकट वर्तमान में न मडरा रहा होता। न प्राकृतिक आपदाएं होती न मानवजनित आपदाएं होती। ना ही पूरे विश्व को प्रथम व द्वितीय विश्व युद्ध देखना पड़ता और ना ही वर्तमान की कोरोना महामारी से लाखों लोगो की जान जाती।
समाज ईट कंक्रीट के मकानों से नही बनते है बल्कि मनुष्य के मनुष्य के सहयोग से बनते है।एक दूसरे के साथ सहयोगात्मक जीवन जीने से बनते है ना कि,बड़े बड़े अपार्टमेंट्स में सैकड़ो की संख्या होने के बाद अकेला जीवन जीने के लिए मजबूर इंसान। एकता में ताकत होती है ,समूह चाहे जानवर का हो या मनुष्य का, जीवन समूह में सरल और सुरक्षित होता है।
परंतु अरस्तु के सारे कथन वर्तमान में निरस्त जैसे लगने लगे है । मनुष्य का समाजिक प्राणी बनने के सफर से मनुष्य असमाजिक प्राणी बनने का सफर शुरू कर चुका है।
अलग-अलग जानवरों की तरह मनुष्य के पूरे विश्व में अलग-अलग समूह बन चुके है।स्थिति ऐसी है कि, मनुष्य ही मनुष्य का दुश्मन है ना कि,कोई जानवर? मनुष्य को आनेवाले समय में समाजिक प्राणी बनने की जगह फिर से शुरू करनी होगी ,मनुष्य को अपने प्राण बचाने के लिए फिर से कोई समाजिक परिकल्पना करनी होगी।

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