कभी बचपन के कभी जवानी के,
तो कभी कभी मौजूदा वर्तमान के,
नज़दीकी और दूर के याद आते हैं,
ये ज़िन्दगी दोस्तों की तलाश में है।
जब दो दिल आस पास आते हैं,
तब दिल से दिल मिल जाते हैं,
दिल से दिल तक यूँ मिल जाना
तब प्रेम सुधा का पान कराते हैं।
मित्र तो तब मित्रता निभाते हैं,
शत्रु भी शायद मित्र बन जाते हैं,
प्रेम स्नेह में इतनी ताक़त होती है,
दुर्जन चरित्र भी सुजन बन जाते हैं।
आदित्य दिल से दिल तक मिलने
से दोस्ती का पैग़ाम पहुँच जाता है,
आजीवन साथ निभाने का जुनून
दिल से दिल तक बना रहता है।
डा० कर्नल आदि शंकर मिश्र
‘आदित्य’
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