
सात अक्टूबर को जीवित्पुत्रिका व्रत का है, सर्वोत्तम समय
सलेमपुर/देवरिया(राष्ट्र की परम्परा)। इस बार जीवित्पुत्रिका व्रत को लेकर व्रत करने वाली महिलाओं में संशय की स्थिति बनी हुई है।कुछ आचार्य 6 अक्टूबर को मनाने की बात कर रहे हैं। लेकिन तिथियों के हिसाब से इस बार सात अक्टूबर को ही इस व्रत को रखना सर्वोत्तम होगा।उक्त बातें बताते हुए आचार्य अजय शुक्ल ने कहा कि सप्तमी युक्त अष्टमी तिथि को यह व्रत नही किया जाता है।इस बार आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि 7 अक्टूबर को पड़ रही है। निर्णय संग्रह के अनुसार भी जब एक तिथि दो उदया तिथि में पड़ रही हो तो दूसरे दिन की तिथि ही वह तिथि मानी जाती है।अतः 6 अक्टूबर को नहाय खाय के अर्धरात्रि के पश्चात अपने परंपरा के अनुसार चील,सियार व पितरों को प्रसाद अर्पण कर रात्रि तीन बजे तक चाहे तो कुछ अल्पाहार लेकर 7 अक्टूबर को निर्जला व्रत रखें।अगले दिन आठ अक्टूबर को सूर्योदय के बाद गो दुग्ध से पारण कर व्रत अनुष्ठान को संपन्न करें।
आचार्य अजय शुक्ल ने कहा कि यह व्रत पुत्र व संतान के लम्बी उम्र , सुखी व सौभाग्यशाली होने का पर्व है। पौराणिक कथाओं के अनुसार यह व्रत महाभारत के युद्ध में अपने पिता के मृत्यु के बाद नाराज अश्वत्थामा के हृदय में प्रतिशोध की ज्वाला धधक रही थी।एक दिन वह पांडवों के शिविर में घुसकर उसमे सो रहे पांच लोगों को पांडव समझकर मार डाला।जबकि वह सभी द्रौपदी की पांच संताने थीं।फिर अर्जुन ने उसे बन्दी बनाकर उसके पास से दिव्य मणि छीन लिया।इसके बाद अश्वत्थामा ने बदला लेने के लिए अभिमन्यु की पत्नी उत्तरा के गर्भ में पल रहे शिशु को गर्भ में ही नष्ट कर दिया।ऐसे में भगवान श्री कृष्ण ने अपने सभी पुण्यों का फल उत्तरा की अजन्मी संतान को देकर उसे गर्भ में पुनः जीवित कर दिया।गर्भ में जीवित होने के कारण उस बच्चे का नाम जीवित्पुत्रिका पड़ा।तभी से संतान के दीर्घायु होने व मंगल के लिए यह व्रत किया जाने लगा।
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