चंद्रमा — एक ग्रह नहीं, भावनाओं का शाश्वत साथी
चंद्रमा केवल आकाश में टंगा हुआ प्रकाशपुंज नहीं है, बल्कि वह हमारे अस्तित्व की गहराइयों से जुड़ा एक मौन साक्षी है। युगों-युगों से चंद्रमा ने मानव जीवन, संस्कृति, साहित्य, धर्म, कृषि, समुद्र और मनोविज्ञान को प्रभावित किया है। वह प्रेम का प्रतीक है, विरह का साथी है, साधना का आधार है और वैज्ञानिक शोध का विषय भी। इस चौथे एपिसोड में हम चंद्रमा को केवल एक खगोलीय पिंड के रूप में नहीं, बल्कि भावनाओं के शाश्वत साथी और शास्त्रोक्त महत्व के रूप में जानने का प्रयास करेंगे।
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शास्त्रों में चंद्रमा का दिव्य स्वरूप
हिंदू शास्त्रों में चंद्रमा को सोम कहा गया है। ऋग्वेद, यजुर्वेद और अथर्ववेद में उसे देवता का दर्जा प्राप्त है। चंद्रमा को मन का कारक ग्रह माना गया है—मनः चंद्रः। वैदिक ज्योतिष में चंद्रमा मन, भावनाओं, स्मृति, करुणा और रचनात्मकता का प्रतिनिधित्व करता है।
पुराणों के अनुसार चंद्रमा दक्ष प्रजापति का जामाता था और रोहिणी उसकी प्रिय पत्नी थी। यही कारण है कि रोहिणी नक्षत्र को विशेष शुभ माना गया। भगवान शिव के मस्तक पर विराजित अर्धचंद्र यह दर्शाता है कि शिव की चेतना पूर्ण रूप से नियंत्रित, शांत और कालातीत है। चंद्रमा यहां नियंत्रण और संतुलन का प्रतीक बन जाता है।
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चंद्रमा और प्रकृति का अद्भुत संबंध
चंद्रमा समुद्री ज्वार-भाटे का नियंता है। उसके गुरुत्वाकर्षण के कारण ही जल में हलचल होती है, जो पृथ्वी के संतुलन के लिए आवश्यक है। यह केवल वैज्ञानिक तथ्य नहीं, बल्कि प्रकृति की एक दिव्य व्यवस्था भी है। बिना चंद्रमा के पृथ्वी का जल-चक्र और ऋतु-चक्र अस्त-व्यस्त हो सकता था।
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चंद्रमा का प्रभाव पौधों पर भी पड़ता है। कृषि विज्ञान में भी आज यह माना जाने लगा है कि पूर्णिमा और अमावस्या का फसलों के विकास पर प्रभाव पड़ता है। हमारे पूर्वज इन महत्त्वों को पहले से जानते थे। इसलिए व्रत, पूजा और खेती के कार्य चंद्र तिथियों के अनुसार किए जाते थे।
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मानव मन और चंद्रमा की गहरी कड़ी
चंद्रमा को मन का शासक कहा जाता है। यह केवल आस्था नहीं, बल्कि मनोवैज्ञानिक सत्य के करीब है। पूर्णिमा के समय लोग भावनात्मक रूप से ज्यादा संवेदनशील हो जाते हैं, वहीं अमावस्या उदासी और अंतर्मुखी प्रवृत्ति को बढ़ा सकती है।
यही कारण है कि कवि, लेखक, साधक और प्रेमी सदैव चंद्रमा की ओर आकर्षित हुए हैं। मीराबाई, जयदेव, कालिदास और गुलज़ार जैसे कवियों ने चंद्रमा को अपनी रचनाओं का केंद्र बनाया। वह प्रेम की तुलना का सर्वोच्च मानक बना।
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चंद्रमा एक ग्रह नहीं भावनाओं का शाश्वत साथी है — यह वाक्य मानवीय अनुभूतियों का प्रतिनिधित्व करता है। जब मन दुखी होता है, तो चांद भी उदास लगता है और जब हृदय प्रेम में डूबा होता है, तो वही चांद मुस्कुराता प्रतीत होता है।
अध्यात्म और साधना में चंद्रमा का स्थान
ध्यान और साधना में चंद्रमा की ऊर्जा को शीतल, शांत और सकारात्मक माना गया है। योगशास्त्र में इड़ा नाड़ी चंद्रमा से जुड़ी है, जो शरीर में शीतलता और मानसिक संतुलन प्रदान करती है। साधु-संत और तांत्रिक साधक विशेष चंद्र तिथियों पर विशेष साधनाएं करते हैं।
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पूर्णिमा, अमावस्या, करवा चौथ, शरद पूर्णिमा और सोमवती अमावस्या — यह सभी केवल धार्मिक तिथियां नहीं हैं, बल्कि चंद्रमा-उपासना के प्रतीक हैं। इन दिनों किया गया जाप, तप और ध्यान विशेष फलों को देता है, ऐसा शास्त्र कहते हैं।
चंद्रमा: विज्ञान की दृष्टि में भी एक रहस्य
आज वैज्ञानिक युग में भी चंद्रमा मानव जिज्ञासा का केंद्र बना हुआ है। अपोलो मिशन से लेकर चंद्रयान-3 तक, चंद्रमा पर अनुसंधान निरंतर जारी है। जल की उपस्थिति, सतह की संरचना और भविष्य में मानव आवास की संभावना विज्ञान के लिए नए द्वार खोल रही है।
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परंतु विज्ञान चाहे जितना आगे बढ़ जाए, चंद्रमा की रहस्यमयी शांति और उसका भावनात्मक आकर्षण कम नहीं हो सकता। वह अब भी कवियों की कविता में और प्रेमियों की कल्पना में जीवित है।
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चंद्रमा एक ग्रह नहीं भावनाओं का शाश्वत साथी है। वह हमारा मार्गदर्शक है, रक्षक है और साक्षी है। हमारी संस्कृति, धर्म, विज्ञान और मनोविज्ञान — सभी में उसकी गूंज सुनाई देती है। वह मौन रहकर भी बहुत कुछ कह जाता है। उसकी शीतल रोशनी हमें याद दिलाती है कि अंधकार के बाद भी प्रकाश अवश्य आता है।
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