एकीकृत कृषि प्रणाली, आवश्यकता एवं महत्त्व की जानकारी दी गयी
संत कबीर नगर (राष्ट्र की परम्परा)। कृषि विज्ञान केंद्र, बगही के कृषि प्रसार अनुभाग द्वारा आयोजित पांच दिवसीय व्यावसायिक प्रशिक्षण का शुभारंभ सफलतापूर्वक केंद्र के वरिष्ठ वैज्ञानिक एवं अध्यक्ष डॉ अरविंद कुमार सिंह द्वारा किया गया।
उन्होंने अपने संबोधन में बताया की समन्वित कृषि प्रणाली के अंतर्गत कृषि के विभिन्न उद्यम से किसानों को रोजाना आय प्राप्त हो सकती है जिससे वह अपनी रोजमर्रा की जरूरतों की पूर्ति कर सकता है। छोटे एवं सीमांत किसान इस प्रणाली के द्वारा अपनी भूमि पर सालो भर रोजगार प्राप्त कर सकते है तथा बड़े किसान अपनी भूमि पर दूसरों को रोजगार मुहैया करा सकते है। अतः अच्छी आमदनी एवं रोजगार प्राप्त होने पर किसानों एवं मजदूरों का गाँवों से शहरों की तरफ होने वाले पलायन को रोका जा सकता है। “एकीकृत कृषि प्रणाली आवश्यकता एवं महत्त्व” विषयंक प्रशिक्षण के संयोजक डॉ राघवेन्द्र सिंह विक्रम द्वारा कृषि प्रसार ने प्रशिक्षणार्थियों को बताया कि एकीकृत कृषि प्रणाली का तात्पर्य कृषि की उस प्रणाली से है जिसमे कृषि के विभिन्न घटक जैसे फसल उत्पादन, मवेशी पालन, फल तथा सब्जी उत्पादन, मधुमक्खी पालन, वानिकी इत्यादि को इस प्रकार समेकित किया जाता हैं, वे एक दूसरे के पूरक हो जिससे संसाधनों की क्षमता, उत्पादकता एवं लाभप्रदता में पर्यावरण को सुरक्षित रखते हुए वृद्धि की जा सके इसे एकीकृत कृषि प्रणाली कहते है। यह एक स्व-सम्पोषित प्रणाली है इसमें अवशेषों के चक्रीय तथा जल एवं पोषक तत्वों आदि का निरंतर प्रवाह होता रहता है जिससे कृषि लागत में कमी आती है और कृषक की आमदनी में वृद्धि होती है साथ ही रोजगार भी मिलता है। खेती के साथ अन्य गतिविधियों को अपनाने से मजदूरी की माँग उत्पन्न होती है जिससे पूरे साल परिवार के सदस्यों को काम मिलता है और उन्हें खाली नहीं बैठे रहना पड़ता। पुष्प उत्पादन, मधुमक्खी पालन और प्रसंस्करण से भी परिवार को अतिरिक्त रोजगार प्राप्त होता है।
डॉ देवेश कुमार ने वताया की धान की फसल के उपरांत गेहूं की बुआई हैप्पी सीडर, सुपर सीडर यंत्रों से करें। किसान यदि सुपर सीडर से बुआई करते हैं तो फसल अवशेष को बिना जलाये ही समय से बुआई कर सकते हैं। किसान नवीनतम तकनीक के जरिए खेती कर अधिक मुनाफा कमा सकते हैं। किसानों को फसल अवशेष प्रबंधन में काम आने वाले कृषि यंत्रों की विस्तार से जानकारी दी।
डॉ संदीप सिंह कश्यप ने किसानों को बताया एकीकृत कृषि प्रणाली खेतों के स्तर पर अपशिष्ट पदार्थों का परिष्कार करके उसे दूसरे घटक को बिना किसी लागत या बहुत कम लागत पर उपलब्ध कराने का समग्र अवसर प्रदान करती है। इस तरह एक उद्यम से दूसरे उद्यम के स्तर पर उत्पादन लागत में कमी लाने में मदद मिलती है। इससे निवेश किये गए प्रत्येक रुपए से काफी अधिक मुनाफा मिलता है। अपशिष्ट पदार्थों के पुनर्चक्रण से आधानों के लिये बाजार पर निर्भरता कम होती हैl
डॉ रत्नाकर पाण्डेय ने किसानो को छुट्टा पशुओं के लिए अपने गांव में ही गोशाला बना लें और उनके गोबर और गोमूत्र से प्राकृतिक खेती भी की जा सकेगी। डॉ तरुन कुमार एकीकृत कृषि प्रणाली अपनाकर किसान अपने खेतों में संग्रहित जल से फसल आच्छादन बढ़ा सकते है तथा उपलब्ध संसाधनों का भरपूर दोहन करते हुए अपनी आय में वृद्धि कर सकते है। यह
प्रशिक्षण कार्यक्रम में उपस्थित प्रगतिशील कृषक एवं कृषक महिलाए सुनीता देवी, ऋतु, राधिका, लाल जी चौधरी, रंजीत सिंह, फारूक खा नक्चेद आदि ने प्रशिक्षण लिया।
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