✨12 नवंबर को जन्मे महान व्यक्तित्व: देश को नई दिशा देने वाले प्रेरणास्रोत नायक✨


भारत का इतिहास केवल तिथियों और घटनाओं का नहीं, बल्कि उन महान आत्माओं का भी है जिन्होंने अपने कर्म, समर्पण और प्रतिभा से देश की पहचान को ऊँचाइयों तक पहुँचाया। 12 नवंबर का दिन भी ऐसे ही कई अद्वितीय रत्नों के जन्म की गवाही देता है, जिन्होंने विज्ञान, सेना, साहित्य, चिकित्सा और सिनेमा जैसे विविध क्षेत्रों में अमिट छाप छोड़ी। आइए, जानते हैं उन महान विभूतियों के जीवन और योगदान को जिन्होंने इस दिन जन्म लेकर भारत को गौरवान्वित किया।

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  1. राजीव संधू — शौर्य और बलिदान के प्रतीक (जन्म: 12 नवंबर 1966, पंजाब, भारत)
    राजीव संधू भारतीय सेना के वीर अधिकारी थे जिन्होंने अपने अदम्य साहस से देश की सीमाओं की रक्षा की। भारतीय सैन्य अकादमी से प्रशिक्षण प्राप्त करने के बाद उन्होंने भारतीय सेना की 15 सिख रेजिमेंट में सेवा की। ऑपरेशन ब्लू स्टार के दौरान उनका शौर्य अप्रतिम रहा। देश के लिए सर्वोच्च बलिदान देने वाले इस जांबाज़ सैनिक को “महावीर चक्र” से सम्मानित किया गया। राजीव संधू का जीवन देशभक्ति, अनुशासन और कर्तव्यपरायणता का जीवंत उदाहरण है।
  2. बी. एन. सुरेश — भारतीय अंतरिक्ष विज्ञान के आकाशगामी नायक (जन्म: 12 नवंबर 1943, कर्नाटक)
    डॉ. बी. एन. सुरेश, भारत के प्रमुख एयरोस्पेस वैज्ञानिक और इसरो (ISRO) के वरिष्ठ सदस्य रहे हैं। उन्होंने भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, मद्रास से अपनी उच्च शिक्षा प्राप्त की। मिसाइल और प्रक्षेपण यान तकनीक में उनके योगदान ने भारत को आत्मनिर्भर बनाया। उन्होंने विक्रम साराभाई स्पेस सेंटर (VSSC) के निदेशक के रूप में कार्य किया और अंतरिक्ष अनुसंधान को नई दिशा दी। देश उन्हें “भारतीय रॉकेट तकनीक के मार्गदर्शक” के रूप में याद करता है।
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  4. सालिम अली — पक्षियों की दुनिया के सम्राट (जन्म: 12 नवंबर 1896, बॉम्बे, महाराष्ट्र)
    “भारत के पक्षी पुरुष” कहे जाने वाले सालिम अली भारतीय उपमहाद्वीप के सबसे प्रसिद्ध पक्षी वैज्ञानिक थे। बॉम्बे विश्वविद्यालय से शिक्षा प्राप्त कर उन्होंने पक्षियों के व्यवहार और प्रवास पर व्यापक शोध किया। उनकी पुस्तक “द बुक ऑफ़ इंडियन बर्ड्स” आज भी पक्षी विज्ञान की आधारशिला मानी जाती है। सालिम अली ने भारत में वन्यजीव संरक्षण की चेतना जगाई और कई राष्ट्रीय उद्यानों की स्थापना में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उन्हें पद्म भूषण और पद्म विभूषण से सम्मानित किया गया।
  5. अमजद ख़ान — अभिनय की दुनिया का अमर नाम (जन्म: 12 नवंबर 1940, पेशावर, अब पाकिस्तान)
    “गब्बर सिंह” — यह नाम सुनते ही सिनेमा प्रेमियों की स्मृति में वही तीखी नज़र और गूंजता संवाद “अरे ओ सांभो!” तैर उठता है। अमजद ख़ान ने फिल्म शोले (1975) में अपने विलक्षण अभिनय से भारतीय सिनेमा को नया आयाम दिया। उनके पिता जयंत भी प्रसिद्ध अभिनेता थे। मुंबई विश्वविद्यालय से शिक्षा प्राप्त कर उन्होंने रंगमंच से अभिनय का सफ़र शुरू किया। अमजद ख़ान ने केवल खलनायक ही नहीं, बल्कि एक सशक्त चरित्र अभिनेता के रूप में भी भारतीय फिल्म जगत को समृद्ध किया।
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  7. डॉ. दिलीप महलानबीस — ओआरएस के जनक (जन्म: 12 नवंबर 1934, कोलकाता, पश्चिम बंगाल)
    डॉ. महलानबीस भारतीय चिकित्सा जगत के ऐसे नायक थे जिन्होंने लाखों लोगों की जान बचाई। उन्होंने कोलकाता मेडिकल कॉलेज से एम.बी.बी.एस. की डिग्री ली और यूनिसेफ के साथ मिलकर डायरिया रोग से निपटने के लिए ओआरएस (ओरल रिहाइड्रेशन सॉल्यूशन) का विकास किया। यह सरल, सस्ती और प्रभावी चिकित्सा पद्धति विश्व भर में स्वास्थ्य क्रांति साबित हुई। उनके योगदान को टाइम मैगज़ीन ने “20वीं सदी के सर्वाधिक प्रभावशाली चिकित्सीय आविष्कारों” में स्थान दिया।
  8. अख़्तरुल ईमान — आधुनिक उर्दू नज़्म के स्थापत्य शिल्पी (जन्म: 12 नवंबर 1915, उत्तर प्रदेश)
    अख़्तरुल ईमान उर्दू साहित्य के ऐसे कवि थे जिन्होंने नज़्म को नई पहचान दी। उनकी रचनाओं में मानवीय संवेदनाएँ, सामाजिक यथार्थ और जीवन दर्शन का गहरा सम्मिश्रण है। उन्होंने अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय से शिक्षा ली और आगे चलकर फ़िल्मों के लिए भी संवाद लिखे। उनकी नज़्में — “शहर के लोग”, “बिन मौसमी बारिश” — आज भी साहित्य प्रेमियों के दिलों में गूंजती हैं। अख़्तरुल ईमान ने शब्दों को आत्मा से जोड़ा और उर्दू कविता को नई आत्मा दी।
  9. अमलप्रवा दास — समाज सेवा का आदर्श स्वरूप (जन्म: 12 नवंबर 1911, ओडिशा)
    अमलप्रवा दास, ओडिशा की अग्रणी सामाजिक कार्यकर्ता थीं। उन्होंने महिलाओं और वंचित वर्ग के उत्थान के लिए अपना जीवन समर्पित किया। उड़ीसा विश्वविद्यालय से स्नातक करने के बाद उन्होंने कई जनसेवा संगठनों की स्थापना की। महिला शिक्षा, स्वच्छता और स्वास्थ्य के क्षेत्र में उनके कार्यों ने ग्रामीण भारत में नई चेतना जगाई। उन्हें उनके सामाजिक योगदान के लिए पद्मश्री पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
    समापन विचार:
    12 नवंबर का दिन केवल जन्मतिथियों की सूची नहीं, बल्कि एक प्रेरक इतिहास है। ये सभी विभूतियाँ इस सत्य को स्थापित करती हैं कि जब समर्पण, प्रतिभा और राष्ट्रप्रेम मिलते हैं, तब व्यक्ति नहीं, युग बनते हैं। चाहे विज्ञान का क्षेत्र हो, साहित्य, सिनेमा, या समाज सेवा — इन सबकी जीवनगाथा हमें यह सिखाती है कि “देश का निर्माण कर्म से होता है, नाम तो बस पहचान है।”
Editor CP pandey

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