पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री: सादगी और नैतिकता के प्रतिमूर्ति

भारत के लोकतांत्रिक इतिहास में कुछ ऐसे नेता हुए जिनका नाम उनकी सादगी और ईमानदारी के लिए सदैव याद किया जाएगा। उन्हीं में से एक थे लाल बहादुर शास्त्री। देश के दूसरे प्रधानमंत्री बने शास्त्री जी का जीवन इस बात का प्रमाण है कि नेतृत्व केवल पद या वैभव से नहीं, बल्कि त्याग, सादगी और कर्मठता से पहचाना जाता है।
2 अक्तूबर 1904 को उत्तर प्रदेश के मुगलसराय (अब दीनदयाल नगर) में जन्मे शास्त्री जी ने बचपन से ही संघर्ष को अपना साथी बनाया। पिता का निधन जल्दी हो गया, लेकिन माँ ने उन्हें ईमानदारी और कर्तव्यनिष्ठा का संस्कार दिया। आर्थिक तंगी के बीच शिक्षा प्राप्त की और काशी विद्यापीठ से “शास्त्री” की उपाधि हासिल की। यही उपाधि बाद में उनके नाम के साथ स्थायी रूप से जुड़ गई।
गांधीजी के विचारों से प्रभावित होकर शास्त्री जी स्वतंत्रता आंदोलन में कूद पड़े। असहयोग और सत्याग्रह आंदोलनों में सक्रिय भूमिका निभाई। अंग्रेजों ने उन्हें कई बार जेल में डाला, लेकिन हर बार वे और मजबूत संकल्प के साथ बाहर आए। सात साल का कारावास उनके लिए अध्ययन और आत्मबल बढ़ाने का अवसर बन गया।
स्वतंत्र भारत में उन्होंने उत्तर प्रदेश से लेकर केंद्र सरकार तक कई जिम्मेदारियां निभाईं। रेल मंत्री रहते हुए एक बड़ी रेल दुर्घटना हुई तो उन्होंने नैतिक जिम्मेदारी लेते हुए इस्तीफा दे दिया। उस दौर में यह कदम राजनीतिक शुचिता का उदाहरण बना, जो आज भी मिसाल के तौर पर याद किया जाता है।
27 मई 1964 को पंडित जवाहरलाल नेहरू के निधन के बाद जब शास्त्री जी प्रधानमंत्री बने, तब देश गंभीर चुनौतियों से जूझ रहा था। खाद्यान्न संकट, गरीबी और बाहरी खतरे एक साथ खड़े थे। ऐसे समय उन्होंने “जय जवान, जय किसान” का नारा दिया, जिसने सैनिक और किसान दोनों को नई प्रेरणा दी।
1965 के भारत-पाक युद्ध में शास्त्री जी ने अदम्य साहस दिखाया और देश का मनोबल बढ़ाया। उन्होंने स्पष्ट कर दिया कि भारत शांति चाहता है, लेकिन अपनी संप्रभुता की रक्षा के लिए किसी भी बलिदान से पीछे नहीं हटेगा।
जनवरी 1966 में ताशकंद (सोवियत संघ) में पाकिस्तान के साथ शांति समझौता हुआ। इसी समझौते के तुरंत बाद रहस्यमय परिस्थितियों में उनका असामयिक निधन हो गया। उनकी मृत्यु ने पूरे देश को गहरे शोक में डाल दिया।
लाल बहादुर शास्त्री का पूरा जीवन सादगी, ईमानदारी और कर्तव्यनिष्ठा का उदाहरण है। वे न तो कभी पद की चकाचौंध से प्रभावित हुए और न ही वैभव की ओर आकर्षित हुए। उनका संदेश आज भी प्रासंगिक है—
“सत्ता का उद्देश्य सेवा है, व्यक्तिगत लाभ नहीं।”
लाल बहादुर शास्त्री भले ही प्रधानमंत्री के रूप में अल्प समय तक रहे, लेकिन उनका योगदान अमिट है। उनका दिया हुआ नारा “जय जवान, जय किसान” आज भी भारत के विकास का मूल मंत्र है। वे ऐसे नेता थे जिन्होंने दिखा दिया कि सादगी और सत्य ही नेतृत्व की सबसे बड़ी ताकत हैं।

rkpNavneet Mishra

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