पूर्व उप प्रधानमंत्री लाल कृष्ण आडवाणी : राष्ट्रवादी राजनीति के पुरोधा और भारतीय जनचेतना के प्रेरक शिल्पी

जन्मदिन पर विशेष: नवनीत मिश्र

भारतीय राजनीति में जब भी वैचारिक दृढ़ता, संगठनात्मक कौशल और राष्ट्रहित को सर्वोपरि रखने वाले नेतृत्व की चर्चा होती है, तो लाल कृष्ण आडवाणी का नाम अत्यंत सम्मान के साथ लिया जाता है। स्वतंत्रता के उपरांत भारत की राजनीतिक धारा को नई दिशा देने वाले नेताओं में आडवाणी का योगदान अद्वितीय माना जाता है। सिद्धांतों पर अडिग रहने वाले, संवाद और लोकतंत्र में गहरी आस्था रखने वाले तथा राष्ट्रीय चेतना के पुनर्जागरण को जीवन का लक्ष्य बनाने वाले आडवाणी का जन्मदिन केवल एक व्यक्तिगत तिथि नहीं, बल्कि भारत की लोकतांत्रिक यात्रा के एक प्रेरक अध्याय को याद करने का अवसर है। उनके जीवन का हर चरण, संघ से सक्रिय जुड़ाव, जनसंघ और भाजपा का निर्माण, आपातकाल का संघर्ष, रथ यात्रा का जन-जागरण और उप प्रधान मंत्री के रूप में सुदृढ़ प्रशासन,, राष्ट्रीय राजनीति में स्थायी छाप छोड़ता है।
भारतीय राजनीति के छह दशकों से अधिक के व्यापक इतिहास में लाल कृष्ण आडवाणी एक ऐसे पुरुषार्थी नेता के रूप में स्थापित हैं जिन्होंने संगठन, विचार और जनभावनाओं को एक सूत्र में पिरोकर भारतीय लोकतंत्र को नई दिशा दी। कराची में 1927 में जन्मे आडवाणी विभाजन की त्रासदी और विस्थापन के अनुभवों से गुज़रे, परंतु इस पीड़ा ने उन्हें विचलित नहीं किया; बल्कि राष्ट्र के प्रति समर्पण और आत्मबल को और दृढ़ बनाया। भारत आने के बाद उनका जीवन राष्ट्रीय पुनर्निर्माण और सांस्कृतिक चेतना के उत्थान का संकल्प बन गया। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से सक्रिय जुड़ाव ने उनकी सोच में अनुशासन, राष्ट्रभावना और सामाजिक समरसता के वे मूल्यों को स्थापित किया, जो उनकी संपूर्ण राजनीतिक यात्रा की आधारशिला बने।
जनसंघ और बाद में भारतीय जनता पार्टी के संस्थापक नेताओं में अग्रणी आडवाणी ने पार्टी को वैचारिक आधार, संगठनात्मक विस्तार और राजनीतिक विश्वसनीयता प्रदान की। आपातकाल के दौरान उनकी प्रतिबद्धता यह दर्शाती है कि वे लोकतांत्रिक अधिकारों की रक्षा के लिए किसी भी जोखिम से पीछे नहीं हटे। 1977 के बाद भारतीय राजनीति ने जिस नये युग में कदम रखा, उसमें आडवाणी ने विचारधारा को जनआंदोलन से जोड़ने की नीति पर सर्वाधिक जोर दिया।
उनके दीर्घ राजनीतिक कृतित्व का सबसे ऐतिहासिक और प्रभावशाली अध्याय 1990 की सोमनाथ से अयोध्या तक की रथ यात्रा है। यह यात्रा भारतीय राजनीति में केवल एक अभियान नहीं, बल्कि सांस्कृतिक आत्मसम्मान और राष्ट्रीय चेतना के जागरण का एक विराट जनांदोलन बन गई। 25 सितंबर 1990 को सोमनाथ से आरंभ हुई यह रथयात्रा हजारों किलोमीटर का मार्ग तय करते हुए अयोध्या की ओर बढ़ी। ‘राम’ और ‘राष्ट्र’ के भाव को केंद्र में रखकर शुरू हुई इस यात्रा ने जनमानस में अद्भुत ऊर्जा भर दी। लाखों लोग इस यात्रा से जुड़े और यह एक व्यापक सांस्कृतिक पुनर्जागरण का प्रतीक बनकर उभरी। इस यात्रा ने न केवल भाजपा को राष्ट्रीय स्तर पर व्यापक समर्थन प्रदान किया, बल्कि भारतीय राजनीति के विमर्श को भी नए आयाम दिए। आडवाणी का यह अभियान उनके नेतृत्व कौशल, आयोजन क्षमता और जनभावनाओं को समझने की अद्वितीय क्षमता का प्रमाण माना जाता है।
भारत के पूर्व उप प्रधान मंत्री के रूप में आडवाणी ने शासन-प्रशासन में पारदर्शिता, सुरक्षा और सुशासन की अवधारणाओं को सुदृढ़ किया। आंतरिक सुरक्षा पर उनकी दृष्टि और प्रशासनिक फैसलों में उनकी स्पष्टता ने उन्हें एक प्रभावशाली प्रशासक के रूप में पहचान दिलाई। वे उन नेताओं में रहे जिन्होंने सत्ता में रहते हुए भी सिद्धांतों को सर्वोपरि रखा और लोकतंत्र की मर्यादा से कभी समझौता नहीं किया। असहमति को वे लोकतांत्रिक शक्ति मानते थे और संवाद को समाधान का सबसे प्रभावी साधन समझते थे।
व्यक्तित्व के स्तर पर आडवाणी सरल, स्पष्ट और अनुशासित जीवनशैली के लिए जाने जाते हैं। साहित्य, इतिहास और समसामयिक विचारों के प्रति उनकी रुचि उन्हें एक विचारक नेता का रूप देती है। संगठन को स्वयं से बड़ा मानने की उनकी राजनीतिक संस्कृति भारतीय राजनीति को एक महत्वपूर्ण संदेश देती है—कि नेतृत्व केवल पद नहीं, बल्कि कर्तव्य और विश्वास का नाम है।
लाल कृष्ण आडवाणी का कृतित्व इस बात का सशक्त प्रमाण है कि राष्ट्रनिर्माण केवल नीतियों से नहीं, बल्कि चरित्र, दृष्टि और दृढ़ प्रतिबद्धता से होता है। संघर्ष, विचार, संगठन, आंदोलन और सुशासनl इन सभी आयामों में उनकी भूमिका भारत की लोकतांत्रिक यात्रा को नई ऊँचाइयों तक ले जाने वाली रही है। आडवाणी का जीवन आने वाली पीढ़ियों के लिए यह प्रेरणा है कि सिद्धांतों पर आधारित राजनीति सदैव स्थायी, सम्मानित और राष्ट्रहितकारी होती है।

rkpNavneet Mishra

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