जिला पंचायत अध्यक्ष पं0 गिरीश चंद्र त्रिपाठी की रही उपस्थिति तहसील परिसर में मनी काकोरी काण्ड की वर्षी

आखिर क्यों दिए थे इस घटना को अंजाम,,????

भाटपार रानी/देवरिया (राष्ट्र की परम्परा)काकोरी काण्ड की यह घटना काकोरी में अंजाम दी गई थी। इसलिए ही इसे काकोरी कांड के नाम से जानते हैं। यह बात 9 अगस्त सन1925 की है तब इस घटना को अंजाम देने में युवा क्रांतिकारी राम प्रसाद बिस्मिल, अशफ़ाक उल्ला खान, राजेंद्र लाहिड़ी, चंद्रशेखर आज़ाद, शचींद्रनाथ सान्याल, ठाकुर रोशन सिंह और अन्य क्रांतिकारी शामिल थे।
भाटपार रानी तहसील के प्रांगण में अपना विचार व्यक्त करने वाले लोगों में जिला पंचायत देवरिया के अध्यक्ष पंडित गिरीश चंद्र त्रिपाठी, गंभीरता एवं क्षमाशीलता के साथ जनता की बात सुनने वाले उप जिलाधिकारी हरिशंकर लाल, तहसीलदार भाटपार रानी, नायब तहसीलदार आदि रहे जो काकोरी काण्ड पर अपने अपने विचार व्यक्त किए। इस अवसर पर समस्त अधिकारी कर्मचारी
एवं वादकारी फरियादी भी उपस्थित रहे।
इतिहास में दर्ज़ यह काकोरी काण्ड भारतीय इतिहास की सबसे महत्वपूर्ण घटनाओं में से एक के रूप में आज भी दर्ज है। जो भारत के वीर युवा क्रांतिकारियों के द्वारा अंग्रेजों को सबक सिखाने से जुड़ी घटना है।
इस घटना में देश के युवा क्रांतिकारियों ने हथियारों की मदद से अंगेजों की खजाने से भरी मालगाड़ी लूट ली थी। इस घटना में क्रांतिकारी संगठन हिन्दुस्तान रिपब्लिकन एसोशिएशन के 10 सदस्य शामिल रहे।
काकोरी काण्ड के बारे में
बताया जाता है कि काकोरी कांड में शामिल क्रांतिकारियों की गिरफ्तारी हुई।उनमें से
कुछ फरार भी हुए इस बीच जो क्रांतिकारी काकोरी कांड में शामिल थे। उन्हें क्षमादान का प्रयास किए गए थे ठाकुर मनजीत सिंह राठौर ने सेंट्रल लेजिस्लेटिव काउंसिल में काकोरी काण्ड के चारो मृत्यु-दण्ड प्राप्त कैदियों की सजाए कम करके आजीवन कारावास (उम्र-कैद) में बदलने का प्रस्ताव पेश किया था। काउंसिल के कई सदस्यों ने सर विलियम मोरिस को, जो उस समय संयुक्त प्रान्त के गवर्नर हुआ करते थे, इस आशय का एक प्रार्थना-पत्र भी दिया था कि इन चारो की सजाए मौत माफ कर दी जाए परन्तु उन्होंने उस प्रार्थना को अस्वीकार कर दिया। वहीं सेंट्रल काउंसिल के 78 सदस्यों ने तत्कालीन वायसराय व गवर्नर जनरल एडवर्ड फ्रेडरिक लिंडले वुड को शिमला जाकर हस्ताक्षर युक्त मेमोरियल दिया था जिस पर प्रमुख रूप से पं. मदन मोहन मालवीय, मोहम्मद अली जिन्ना, एन. सी. केलकर, लाला लाजपत राय, गोविन्द वल्लभ पन्त आदि के द्वारा अपने हस्ताक्षर किए थे। किन्तु वायसराय पर उसका भी कोई असर न हुआ था।
क्रांतिकारियों के द्वारा चलाए जा रहे देश के स्वतंत्रता आंदोलन को सहयोग हेतु धन की ज़रुरत थी। शाहजहांपुर में एक बैठक में राम प्रसाद बिस्मिल ने अंग्रेजों के सरकारी खजाने को लूटने की योजना बनाई थी। इसके अनुसार ही हिन्दुस्तान रिपब्लिकन एसोशिएशन के ही एक सदस्य राजेन्द्र नाथ लेहिडी ने 1 अगस्त 1924 को लखनऊ के काकोरी रेलवे स्टेशन से चलने वाली डाउन सहारनपुर ट्रेन को चेन खींचकर रोक कर लूट लिया। इस गतिविधि में मुख्य भूमिका क्रांतिकारी राम प्रसाद बिस्मिल, अशफाक उल्लाह खान, चंद्रशेखर आजाद और अन्य 6 क्रांतिकारियों की थी। काकोरी कांड में शामिल क्रांतिकारियों की गिरफ्तारियां
हुई काकोरी काण्ड में शामिल सभी क्रांतिकारियों पर सरकारी खजाने को लूटने की कोशिश और यात्रियों को जान से मारने की साजिश करने के तहत मुकदमा चला और उन्हें फांसी की सजा सुनाई गई। फरार भी हुए थे क्रांतिकारी काकोरी-काण्ड में केवल 10 लोग ही वास्तविक रूप से शामिल हुए थे, पुलिस की ओर से उन सभी को इस प्रकरण में नामजद किया गया। इन 10 लोगों में से पाँच – चन्द्रशेखर आजाद, मुरारी शर्मा, केशव चक्रवर्ती (छद्मनाम), अशफाक उल्ला खाँ व शचीन्द्र नाथ बख्शी को छोड़कर, जो उस समय तक पुलिस के हाथ नहीं आये, शेष सभी व्यक्तियों पर सरकार बनाम राम प्रसाद बिस्मिल व अन्य के नाम से ऐतिहासिक प्रकरण चला और उन्हें 5 वर्ष की कैद से लेकर फासी तक की सजा हुई थी। फरार अभियुक्तों के अतिरिक्त जिन-जिन क्रान्तिकारियों को सक्रिय कार्यकर्ता होने के सन्देह में गिरफ्तार किया गया था उनमें से 14 को सबूत न मिलने के कारण रिहा कर दिया गया था। जबकि विशेष न्यायधीश ऐनुद्दीन ने प्रत्येक क्रान्तिकारी की छवि खराब करने में कोई कसर बाकी नहीं रखी थी और प्रकरण को सेशन न्यायालय में भेजने से पहले ही इस बात के पक्के सबूत व गवाह एकत्र कर लिए थे ताकि बाद में यदि अभियुक्तों की तरफ से कोई याचिका भी दी जाए तो इनमें से एक भी बिना सजा के न छूटने पाए।अवध चीफ कोर्ट का फैसला आते ही यह खबर आग की तरह समूचे हिन्दुस्तान में फैल गई थी। यह काण्ड तब हुआ जब 9 अगस्त 1925 की रात चंद्रशेखर आजाद, राम प्रसाद बिस्मिल, अशफाक उल्ला खां, राजेंद्र लाहिड़ी और रौशन सिंह समेत तमाम क्रांतिकारियों ने अंग्रेज़ी हुकूमत पर बड़ी चोट की। इन लोगों ने लखनऊ से कुछ दूरी पर ही काकोरी और आलमनगर के बीच ट्रेन में ले जाए जा रहे सरकारी खजाने को लूट लिया था।काकोरी की घटना के लिए रामप्रसाद बिस्मिल, अशफाक उल्ला खान, राजेंद्रनाथ लाहिड़ी, ठाकुर रोशन सिंह सहित कुल दस क्रांतिकारी जिम्मेदार थे। राम प्रसाद बिस्मिल का जन्म 11 जून 1897 को शाहजहाँपुर में हुआ था। पंडित राम प्रसाद बिस्मिल को 19 दिसंबर, 1927 को गोरखपुर जेल की कोठरी में फांसी दी गई थी।
काकोरी की घटना का परिणाम रहा?
क्रांतिकारी रामप्रसाद बिस्मिल, राजेन्द्रनाथ लाहिड़ी, रोशन सिंह और अशफाक उल्ला खां को फांसी की सजा सुनाई गई. इस कांड में शामिल दूसरे क्रांतिकारी शचीन्द्रनाथ सान्याल को कालेपानी की सजा हुई. मन्मथनात गुप्त को 14 साल की सजा सुनाई गई. बाकियों को 10, 7 और 5 साल की सजा हुई थी।
नोट: यह जानकारी इंटरनेट आदि सूचना माध्यमों से जुटाई गई है

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