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लोकतंत्र केवल शासन-प्रणाली नहीं, बल्कि हर नागरिक का जीवंत दायित्व है

— चंद्रकांत सी. पूजारी, गुजरात

लोकतंत्र को अक्सर एक राजनीतिक व्यवस्था के रूप में देखा जाता है—जहां चुनाव होते हैं, सरकारें बनती हैं और संविधान के अनुसार शासन चलता है। लेकिन लोकतंत्र की वास्तविक आत्मा इन औपचारिक प्रक्रियाओं से कहीं आगे है। लोकतंत्र केवल शासन-प्रणाली नहीं, बल्कि हर नागरिक का निरंतर, नैतिक और सक्रिय दायित्व है, जिसे रोजमर्रा के जीवन में निभाया जाना चाहिए।

लोकतंत्र की असली शक्ति: मत से आगे सहभागिता

लोकतंत्र की ताकत मतपेटी में डाले गए वोट से शुरू जरूर होती है, लेकिन वहीं समाप्त नहीं होती। यह विचारों की स्वतंत्रता, असहमति के सम्मान, सवाल पूछने के साहस और सत्ता से जवाबदेही की मांग में लगातार प्रवाहित होती रहती है।

यदि नागरिक निष्क्रिय हो जाएं, सवाल उठाना छोड़ दें और अन्याय पर चुप्पी साध लें, तो लोकतंत्र केवल कागजी ढांचा बनकर रह जाता है।
इतिहास साक्षी है कि जहां नागरिक सजग और सहभागी रहे, वहां लोकतंत्र मजबूत हुआ; और जहां उदासीनता बढ़ी, वहां लोकतांत्रिक संस्थाएं कमजोर पड़ीं।

जन-भागीदारी से ही जीवित रहता है लोकतंत्र

लोकतंत्र की आत्मा निरंतर जन-भागीदारी में निहित है। यदि नागरिक केवल चुनाव के समय सक्रिय हों और शेष समय मौन रहें, तो व्यवस्था खोखली हो जाती है।

चुप्पी और उदासीनता लोकतंत्र के सबसे बड़े शत्रु हैं, क्योंकि इससे सत्ता निरंकुश होने लगती है और नागरिक अधिकार कमजोर पड़ते हैं।

अधिकारों से आगे कर्तव्यों का लोकतंत्र

लोकतंत्र हमें अधिकार देता है—

• अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता

• समानता और न्याय की गारंटी

लेकिन हर अधिकार के साथ कर्तव्य भी जुड़ा है—

• सत्य की पड़ताल करने का कर्तव्य

• सत्ता से साहसपूर्वक प्रश्न पूछने की जिम्मेदारी

• अल्पमत और असहमति की रक्षा

• सामाजिक सद्भाव और संवेदनशीलता बनाए रखना

यदि हम केवल अधिकारों पर जोर दें और कर्तव्यों से पीछे हटें, तो लोकतंत्र धीरे-धीरे कमजोर पड़ने लगता है।

दृष्टांत: नदी किनारे का गांव

धारापुर गांव की नदी लोकतंत्र का प्रतीक है। प्रतिनिधि सरकार की तरह चुना गया, लेकिन नागरिकों ने जिम्मेदारी छोड़ दी। परिणामस्वरूप नदी प्रदूषित हुई और आपदा आई।

जब नागरिक फिर से सजग हुए, निगरानी की और सवाल उठाए—तभी नदी जीवनदायिनी बनी।

संदेश स्पष्ट है:

लोकतंत्र तभी सुरक्षित है जब नागरिक केवल प्रतिनिधि न चुनें, बल्कि सतर्क प्रहरी भी बनें।

वास्तविक उदाहरण: सूचना का अधिकार (RTI) आंदोलन

भारत में आरटीआई आंदोलन नागरिक भागीदारी का उत्कृष्ट उदाहरण है। राजस्थान में मजदूरों के हक के लिए शुरू हुआ संघर्ष 2005 में सूचना का अधिकार कानून बनने तक पहुंचा।

इस कानून ने पारदर्शिता बढ़ाई और साबित किया कि साधारण नागरिक भी सत्ता को जवाबदेह बना सकते हैं।

लोकतंत्र को जीवंत रखने की जिम्मेदारी

लोकतंत्र को मजबूत बनाए रखने के लिए जरूरी है कि—

• अफवाहों की जगह तथ्यों पर भरोसा करें
• मतभेद को दुश्मनी न बनने दें
• सवाल उठाने को देशद्रोह न समझें
• सोशल मीडिया और सार्वजनिक संवाद में जिम्मेदारी निभाएं

लोकतंत्र केवल संसद में नहीं, बल्कि स्कूलों की बहसों, सड़कों की संवेदनशीलता, सोशल मीडिया की जिम्मेदारी और घरेलू संवादों में भी जीवित रहता है।

Karan Pandey

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