दीपदान व्रत: सबसे श्रेष्ठ व्रत, जीवन में सुख, सौभाग्य और मोक्ष का स्रोत

(राष्ट्र की परम्परा के लिए – गरिमा सिंह -अजमेर)

ज्योति ही जिसका मुख है, वह अग्नि (एवं दीप) हमारे लिये कल्याणकारक हो, मित्र, वरुण और अश्विनी कुमार हमारे लिये कल्याणप्रद हों।
दीपदान का अर्थ – दीपक प्रज्वलित करके रखना। विभिन्न देवालयों, मन्दिरों, आवासों, भवनों, आंगन, तुलसा जी के चौरों, नदियों, पवित्र सरोवरों में प्रवाहित करना अथवा प्रज्वलित करने को दीपदान कहते हैं। संक्षेप में यह समझें कि दीपक को प्रज्वलित करना ही दीपदान है।

दीपदान की महत्ता विभिन्न शास्त्रों, पुराणों, संहिता ग्रंथों एवं तांत्रिक ग्रंथों में वर्णित है। अग्नि पुराण के 200वें अध्याय से दीपदान व्रत की महिमा एवं विदर्भ राजकुमारी ललिता का उपाख्यान शीर्षक से दीप दान की गरिमा का वर्णन किया गया है-

अग्निदेव कहते हैं- हे वसिष्ठ, अब मैं भोग और मोक्ष को प्रदान करने वाले दीपदान व्रत का वर्णन करता हूँ। जो मनुष्य देव मन्दिर अथवा ब्राह्मण के गृह में एक वर्ष तक दीपदान करता है, वह सब कुछ प्राप्त कर लेता है। अतः साधक को किसी देवालय में एक वर्ष तक दीपदान करना चाहिये।

चातुर्मास में दीपदान करने वाला मृत्यु के बाद विष्णु लोक को जाता है। कार्तिक मास में दीपदान करने वाला स्वर्ग लोक को प्राप्त होता है। दीपदान से बढ़कर न कोई व्रत है, न था और न होगा।

दीपदान से आयु और नेत्र ज्योति की प्राप्ति होती है। दीपदान से धन और पुत्रादि की प्राप्ति होती है। दीपदान करने वाला सुख-सौभाग्य युक्त होकर स्वर्गलोक में देवताओं द्वारा पूजित होता है। विदर्भ राजकुमारी ललिता दीपदान के पुण्य से ही राजा चारूधर्मा की पत्नी और उसकी सौ रानियों में प्रमुख हुईं। उस साध्वी ने एक बार विष्णु मन्दिर में सहस्र दीपों का दीपदान किया। उसी से उसे यह सुख-सौभाग्य प्राप्त हुआ। और वह चारूधर्मा की प्रधान पटरानी बन गयीं।

राजकुमारी ललिता की बातें सुनकर चारूधर्म की सौ पत्नियों ने उससे दीपदान का महत्त्व पूछा, तब राजकुमारी ललिता ने दीपदान का महत्त्व इस प्रकार बताया – बहुत पहले की बात है, सौवीर राजा के यहाँ मैत्रेय नामक पुरोहित थे। उन्होंने देविका नदी के तट पर भगवान विष्णु का मन्दिर बनवाया। कार्तिक मास में उन्होंने नित्य दीपदान किया। एक दिन बिलाव (बिल्ली) के डर से भागती हुई चुहिया वहाँ छिप गयी। दीपक की बाती कम हो रही थी। उस चुहिया ने अपने मुख के अग्रभाग से बाती को बढ़ा दिया। बत्ती के बढ़ने से वह बुझता हुआ दीपक प्रज्वलित हो उठा। कुछ देर बाद दीपक बुझ गया, तब बिल्ली ने चुहिया को पकड़कर मार डाला। मृत्यु के बाद वही चुहिया (मैं) राजकुमारी हुई और राजा चारूधर्मा की सौ रानियों में प्रमुख पटरानी हुई। इस प्रकार मेरे (चुहिया-जन्म) द्वारा बिना सोचे-समझे विष्णु मंदिर के दीपक की वर्तिका बढ़ा देने के पुण्य का यह राजसी फल भोग रही हूँ। इसी पुण्य के फलस्वरूप मुझे अपने पूर्व जन्म का ज्ञान भी है। यही कारण है कि मैं सदा दीपदान किया करती हूँ। यह रहस्य बताकर उसने दीपदान का महत्त्व बताया।
एकादशी को विष्णु मन्दिर में दीपदान करने वाला सांसारिक सुख भोगकर विमानारूढ़ होकर स्वर्ग जाता है।
मन्दिर का दीपक हरण (चुराने) करने वाला गूंगा, मूर्ख और अन्धा हो जाता है। वह अंधराभिक्षु नरक में जाता है।
प्रदोष व्रत करने वाले शिव मन्दिर में दीपदान करते हैं तो परमानन्द को प्राप्त करशिव लोक जाते हैं।
महुये के पेड़ के नीचे मण्डप बनाकर काली देवी की पूजा में महुये का दीपदान करने वाला अपने शत्रुओं पर विजय प्राप्त कर राज्य प्राप्त करता है और मृत्योपरांत मुक्ति का अधिकारी होता है।
नवरात्र में दीपदान, अखण्ड दीपदान करने वाला भोग और मोक्ष का अधिकारी विहारिणी के शरण चरण में स्थान पाता है। अग्निदेव कहते हैं कि ललिता की बार्ता मे प्रभावित होकर उसकी सौ पत्नियों ने दीपदान करना प्रारम्भ कर दिया। दीपदान के पुण्य होता है। यदि माँ की भक्ति-भावना चाहता है तो ऐसा व्यक्ति मृत्यु के बाद मणिदीप से सांसारिक सुख भोगने के बाद वे स्वर्ग का सुख पा गया । अतः दीपदान सभी व्रतों में श्रेष्ठ और विशेष फलदायक है।

भारतीय संस्कृति एवं दर्शन में दीपदान का महत्व –

कुछ कम नहीं है। पुरुषोत्तम मास में, कार्तिक एवं माघ माह में तथा विभिन्न तीज-त्योहारों में प्रत्येक अमावस्या को, विशेषकर दीपावली के दिन पवित्र नदियों, सरोवरों एवं तीर्थों की जलधारा में दीपदान किया जाता है। प्रातः अथवा सायंकाल स्नानादि करके सूर्योदय अथवा सूर्यास्त के समय बहते जल में दीपदान करना अपने पूर्वजों के प्रति कृतज्ञता ज्ञापित करना होता है। सूर्योदय के पूर्व जो दीपदान किया जाता है, वह इस पार्थिव देह को, छोड़ जाते हुये प्राण को आकाशीय मार्ग में प्रकाश दिखाता है तथा यमराज को प्रसन्न करता है। दीपावली के बाद पड़ने वाली भैयादूज को जो दीपदान किया जाता है, इससे यमराज प्रसन्न होते हैं। दीपदान करने वाले के संकटों का हरण करके अकाल मृत्यु से रक्षा करते हैं और इसके पितरों को सद्गति देते हैं। ऐसा दीपदान व्यक्ति को विभिन्न समस्याओं के समाधान दिखाता है।

विभिन्न पर्वो, तिथियों एवं नदियों में दीपदान करने का अलग-अलग महत्त्व एवं अलग-अलग फल है, किन्तु मेरा कहना यह है कि व्यक्ति जिस भावना को लेकर, जैसी प्रार्थना से दीप-दीपेश्वर को प्रसन्न करेगा और फिर दीपदान करेगा, वैसा ही फल उसको मिलेगा। दक्षिण भारत में दीपदान की सोलह विधियां बताई गई हैं। 1225 ई. में एक चौल ताम्र पात्र में मन्दिर के नन्दा-दीपकों को प्रज्वलित करने के लिये घी तथा गायों का दान दिया जाता था। साथ ही उन गायों के भरण-पोषण एवं पालन के लिये एक निश्चित व्यय दीपदान करने वाले को वहन करना पड़ता था । सोलह प्रकार के दीपदान से सोलह प्रकार की आकांक्षाओं की पूर्ति की जाती थी। जिस भावना से दीपदान किया जायेगा, वैसा प्रतिफल एवं मनोकामनाओं की पूर्ति दीप-देवता द्वारा प्राप्त होगी।

मन्दिरों में स्थाई रूप से प्रज्वलित रहने वाले अखण्ड दीपों के लिए घृतादि की व्यवस्था जो व्यक्ति करता है अथवा जो उसका खर्च वहन करता है। उसको भी दीपदान का फल मिलता है।
दीपदान के विभिन्न लाभों में से कुछ का वर्णन किया जा रहा है। दीपों को जल में प्रवाहित करने के पूर्व विधिवत् पूजा करनी चाहिये, फिर उनसे प्रार्थना कर आत्म निवेदन करना चाहिये। किस प्रकार के दीपदान से क्या प्राप्ति हो सकती है, इसके बारे में यहां बताया जा रहा है-

-यदि कोई विधवा कार्तिक मास के सारे दिनों में सूर्योदय के पूर्व यमुना नदी में दीपदान करती है तो उसके स्वर्गीय पति को पूर्णगति प्राप्त होगी तथा उसके पुत्रों का सुख-सौभाग्य बढ़ेगा। स्वयं उसे श्रीकृष्ण का प्रेम मिलेगा।

-यदि विवाह योग्य कन्या माघ मास में गंगा नदी में दीपदान करती है तो उसका विवाह शीघ्र मनोनुकूल एवं श्रेष्ठ पति से होगा। दाम्पत्य सुख मिलेगा।

-यदि कोई सुहागिन माघ माह में सायंकाल सूर्योदय के बाद दीपदान करती है तो उसका दाम्पत्य जीवन सुखमय होगा और पति दीर्घायु होगा।

-यदि कोई विद्यार्थी किसी नदी में सूर्योदय के समय दीपदान करता है तो उस पर सरस्वती की कृपा होगी और उसका ज्ञान बढ़ेगा।

-यदि कोई भक्त पुष्कर सरोवर में दीपदान करता है तो उसे संन्यास, भक्ति एवं मरने पर ब्रह्म लोक की सद्गति प्राप्त होगी।

-हरिद्वार में दीपदान करने वाला, प्रयाग में दीपदान करने वाला, बनारस में दीपदान करने वाला, यश, वैभव एवं अनेकानेक सम्पत्तियों का स्वामी होता है।

-उज्जैन के महाकाल मन्दिर में दीपदान करके नदी में कोई दीपदान करता है तो वह दीर्घायु होता है तथा उसकी अकाल मृत्यु कभी नहीं होती।

-नर्मदा तट पर फाल्गुन मास में दीपदान करने वाला धन-सम्पत्ति एवं वैभव प्राप्त करता है और मृत्योपरान्त शिव सामुज्य पाता है।

-क्षिप्रा की जल धाराओं में दीपदान करने वाला संमति-काव्य, लेखन से ख्याति एवं धन प्राप्त करता है। मृत्यु के बाद शिवलोक वासी होता है।

-प्रयाग के संगम अथवा किन्हीं दो नदियों के संगम पर दीपदान करने वाला यशस्वी होता है। वह राजनीति निपुण राजपुरुष होता है।

-सतलज, राप्ती तथा सिन्धु नदियों में दीपदान करने वाला सब भोगों को भोगकर मोक्ष प्राप्त करता है। ऐसे फल संगम तीर्थ में भी मिलते हैं।

-यदि कोई कुष्ठ रोगी पवित्र नदी या सरोवर में स्नान करने के बाद दीपदान करता है तो 41 दिनों में उसे लाभ मिलता है। जल एवं औषधियों से वह ठीक हो जाता है।

-यदि कोई पुत्र इच्छुक अथवा सन्तानोत्पत्ति में असफल व्यक्ति संगम तीर्थ, पुष्कर, मन्दाकिनी अथवा चित्रकूट की पयस्वनी नदी में 21 अमावस्या को सप्त दीपों वाला दीपदान करता है और तुलसी की मंजरी प्रातःकाल मिश्री सेवन करके एवं उसी नदी का जल पीता है, तो उसे सन्तान प्राप्त होती है।

-बांझ अर्थात् बंध्या स्त्री यदि पवित्र सरोवरों अथवा नदियों में दीपदान करती है तो सन्तान प्राप्त करती है। एक वर्ष तक प्रत्येक पूर्णिमा को पाँच दीपों वाला दीपदान करना चाहिये ।

-रोजी-रोजगार चाहने वालों को अथवा व्यापारिक समस्या हल करने वालों को शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से पूर्णिमा तक घी के दीपक नित्य पवित्र नदी में दीपदान करना चाहिये।
आपने मन्दिरों में दीपक के बड़े-बड़े पात्र देखे होंगे जो सदैव प्रज्वलित रहते हैं। ऐसे दीपों को आजीवन प्रज्वलित रहने वाले अखण्ड दीप कहते हैं। इन अखण्ड दीपों के लिये देशी घी की व्यवस्था बडे-बडे व्यापारी एवं धनाढ्य लोग करते हैं। यही कारण है कि ऐसे दीपदान कराने वालों का विकास निरन्तर होता रहता है। किसी-किसी मन्दिर में एक, सात, नौ, ग्यारह, इक्कीस दिनों, एक माह, तीन माह, छह माह, एक वर्ष तक अखण्ड दीप जलवाने की व्यवस्था रहती है। उसका खर्च पूर्व निर्धारित रहता है। जो व्यक्ति जितने दिनों तक दीपदान करना चाहता है, उतने दिन का निर्धारित व्यय देकर अखण्ड दीपदान करा सकता है।

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Editor CP pandey

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