Categories: कविता

बचपन का गाँव

हिसार(राष्ट्र की परम्परा)
ठण्डी-ठण्डी छांव में
उस बचपन के गाँव में
मैं-जाना चाहती हूँ।
तोडऩा चाहती हूँ
बंदिश चारों पहर की।
नफरत भरी ये
जिन्दगी शहर की॥
अपनेपन की छाया
मैं पाना चाहती हूँ।
उस बचपन के गाँव में
मैं-जाना चाहती हँ हूँ॥
घुट-सी गयी हूँ
इस अकेलेपन में
खुशियों के पल ढूँढ रही
निर्दयी से सूनेपन में
इस उजड़े गुलशन को
मैं महकाना चाहती हूँ।
उस बचपन के गाँव में
मैं-जाना चाहती हूँ।
प्रेम और भाईचारे का
जहाँ न संगम हो।
भागे एक-दूजे से दूर
न मिलन की सरगम हो॥
उस संसार से अब
मैं छुटकारा चाहती हूँ।
उस बचपन के गाँव में
मैं-जाना चाहती हूँ।

प्रियंका ‘सौरभ’ की कलम से

rkpnews@desk

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