गुजरात मॉडल से बिहार में एंटी-इंकंबेंसी का समाधान, नए चेहरे लाकर जीतने की रणनीति
पटना (राष्ट्र की परम्परा डेस्क)बिहार विधानसभा चुनाव की तारीखों की घोषणा अगले कुछ दिनों में हो सकती है। इस बार चुनावी मैदान में भाजपा के लिए सबसे बड़ी चुनौती एंटी इनकंबेंसी (स्थानीय विधायकों और मंत्रियों के खिलाफ नाराजगी) से निपटना है। पार्टी ने गुजरात मॉडल की तर्ज पर रणनीति तैयार की है, जिसमें कई मौजूदा विधायकों और वरिष्ठ नेताओं का टिकट कट सकता है।
पार्टी सूत्रों के अनुसार, करीब 30 विधायकों की ऐसी सूची तैयार की गई है, जिन्हें इस बार बाहर किया जा सकता है, ताकि जनता के बीच पार्टी का नया चेहरा और सकारात्मक संदेश पहुँचाया जा सके। 2020 के विधानसभा चुनाव में भाजपा का प्रदर्शन संतोषजनक रहा था, लेकिन स्थानीय नेताओं के खिलाफ नाराजगी इस बार बड़ा संकट बन सकती है।
बिहार में गुजरात मॉडल लागू करने की तैयारी
भाजपा के वरिष्ठ नेता और पार्टी के कोर ग्रुप ने उम्मीदवारों की अंतिम सूची तय करने से पहले गहन विचार-विमर्श किया है। पार्टी अध्यक्ष अमित शाह ने लगातार बिहार टीम के साथ रणनीति पर चर्चा की। गुजरात चुनाव 2022 की तरह, जहां भाजपा ने अपने मंत्रिमंडल में व्यापक बदलाव किए और 108 मौजूदा विधायकों में से 45 का टिकट काटा, बिहार में भी इसी रणनीति को अपनाने की तैयारी है।
भाजपा के अंदरूनी सूत्र बताते हैं कि मौजूदा विधायकों के खिलाफ मतदाताओं में नाराजगी है, जबकि सरकार की योजनाओं और नीति से जनता संतुष्ट है। इस वजह से पार्टी नए और युवा नेताओं को मौका देने की दिशा में कदम बढ़ा रही है।
नई रणनीति से लक्ष्य: सत्ता में वापसी
नीतीश कुमार के नेतृत्व में एनडीए पांचवीं बार सत्ता में बने रहने का प्रयास करेगा। भाजपा के पास वर्तमान में 80 विधायक हैं, जिनमें 22 मंत्री शामिल हैं। पार्टी का मकसद स्थानीय नाराजगी को कम करना और नए चेहरे के जरिए चुनावी जीत सुनिश्चित करना है।
गुजरात मॉडल के तहत, भाजपा ने चुनावी फोकस को केवल सरकार की उपलब्धियों तक सीमित नहीं रखा बल्कि विधायकों के चयन में भी बड़े बदलाव किए थे। बिहार में भी भाजपा इसी रणनीति से जीत की उम्मीद कर रही है।
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