तिलक व आजाद की मनाई गई जयंती विचार गोष्ठी में किया गया याद

तिलक और आज़ाद युवाओं के प्रेरणाश्रोत-बृजेश राम त्रिपाठी

गोरखपुर (राष्ट्र की परम्परा)। अखिल भारतीय क्रांतिकारी सम्मान संघर्ष मोर्चा एवं गुरुकृपा संस्थान के संयुक्त तत्वावधान में चंद्रशेखर आज़ाद की जयंती आजाद चौक स्थित प्रतिमा पर माल्यार्पण, पुष्पार्चन एवं बाल गंगा धर तिलक की जयंती दाऊदपुर स्थित कार्यालय पर संगोष्ठी के द्वारा मनाया गया। अखिल भारतीय क्रांतिकारी सम्मान संघर्ष मोर्चा संगठन के प्रमुख सामाजिक कार्यकर्ता बृजेश राम त्रिपाठी ने कहा कि ब्रिटिश शासन के खिलाफ स्वतंत्रता आंदोलन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले बाल गंगाधर तिलक 23 जुलाई 1856 को रत्नागिरी, महाराष्ट्र में जन्में बाल गंगाधर तिलक ने “स्वराज मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है और मैं इसे लेकर रहूँगा” का नारा दिया, जो कि भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में क्रांतिकारियों के लिए एक महत्वपूर्ण नारा बन गया। उन्होंने 1916 में एनी बेसेंट के साथ मिलकर होम रूल लीग की स्थापना करने वाले “लोकमान्य” की उपाधि से सम्मानित बाल गंगाधर तिलक को “भारतीय अशांति के जनक” के रूप में जाना जाता है। देश में हुए जलियांवाला बाग हत्याकांड के समय चंद्रशेखर आजाद बनारस में पढ़ाई कर रहे थे लेकिन इतने मासूमों की मौत से चंद्रशेखर के हृदय में क्रांति की ज्वाला भड़क उठी। इसके बाद उन्होंने आजादी के लिए लड़ाई लड़ने का पूरा मन बना लिया और महात्मा गांधी के आंदोलन से जुड़ गए।
विशिष्ट अतिथि कुशीनगर एवं देवरिया के संगठन प्रमुख शंकर शरण दूबे ने कहा कि चंद्रशेखर आजाद का जन्म 23 जुलाई, 1906 को मध्यप्रदेश के भाबरा गांव में हुआ था, लेकिन उनका परिवार उत्तर प्रदेश के उन्नाव जिले के बदरका गांव से था। उनके पिता का नाम सीताराम तिवारी था जो नौकरी के सिलसिले में गांव छोड़कर भावरा गए थे। चंद्रशेखर बचपन से ही निशानेबाजी और धनुष विद्या में निपुण हो गए थे। देश के वीर सपूत भगत सिंह ने भी देश को आजादी दिलवाने में अहम भूमिका निभाई। सांडर्स हत्याकांड के बाद असेंबली में बम फेंकने और अंग्रेजी हुकूमत की जड़ों को हिलाने के लिए उन्हें जाना जाता है। भगत सिंह ने क्रांति की लड़ाई में चंद्रशेखर आजाद का साथ दिया था। आजाद और भगत सिंह, दोनों ही एक दूसरे को बहुत मानते थे और दोनों ही क्रांतिकारियों ने देश के लिए अपने जीवन का बलिदान दिया।
कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए मनीष जैन ने कहा कि
1921 में महात्मा गांधी के असहयोग आंदोलन से जुड़ने के बाद जब चंद्रशेखर को गिरफ्तार किया गया, तब उन्हें जज के सामने पेश किया गया। इस दौरान जब चंद्रशेखर से उनका नाम पूछा गया तो उन्होंने अपना नाम आजाद बताया। जब उनसे उनके पिता का नाम पूछा गया तो उन्होंने स्वतंत्रता बताया। चंद्रशेखर के इस जवाब से जज नाराज हो गया और उन्होंने आजाद को 15 कोड़े मारने की सजा दी। लेकिन चंद्रशेखर बिना डरे इस सजा को भुगतने के लिए तैयार हो गए। इस घटना के बाद से चंद्रशेखर के नाम के साथ आजाद जुड़ गया। संगोष्ठी का संचालन प्रदीप त्रिपाठी ने किया, आगंतुकों के प्रति आभार ज्ञापन सुनील मिश्रा ने किया। कार्यक्रम में कृष्ण कुमार शुक्ला, प्रियांशु उपाध्याय, बीरु रितेश दूबे, राजेश सिंह, अमृतेश, राजू गुप्ता, रमेश श्रीवास्तव, राशिद, संतोष पांडेय, सीताराम यादव, विभ्राट श्रीनेत, मृत्युंजय सिंह, अवनीश मणि, शशांक शर्मा, सोनू सिन्हा, मंगल बाबा, अभिषेक जायसवाल, श्रद्धानंद त्रिपाठी सहित कई लोग मौजूद रहे।

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