नक्सलियों के खात्मे की ओर बिहार, कुख्यात गिरोहों का सफाया

पटना (राष्ट्र की परम्परा डेस्क) बिहार और झारखंड में नक्सल विरोधी अभियान तेज़ी से अपने मुकाम तक पहुँच रहा है। कभी ग्रामीण इलाकों में दहशत फैलाने वाले दुर्दांत नक्सली अब या तो पुलिस मुठभेड़ों में ढेर हो रहे हैं या फिर सरेंडर करने को मजबूर हो रहे हैं। हाल के महीनों में हुई बड़ी कार्रवाइयों ने बिहार के लोगों को राहत की सांस दी है।

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अप्रैल 2025 में बोकारो जिले में चलाए गए ‘ऑपरेशन डाकाबेड़ा’ में आठ नक्सली मारे गए। इनमें अरविंद यादव उर्फ अविनाश दा भी शामिल था, जो पिछले दो दशकों से बिहार में खौफ का पर्याय बना हुआ था। वहीं, हजारीबाग के हालिया एनकाउंटर में कुख्यात सहदेव सोरेन उर्फ प्रवेश दा मारा गया। अविनाश दा और प्रवेश दा दोनों ने मिलकर जमुई, लखीसराय और मुंगेर समेत कई जिलों में वर्षों तक खूनी खेल खेला था।

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नक्सलियों की इस सूची में पिंटू राणा, अर्जुन कोड़ा, बालेश्वर कोड़ा, नागेश्वर कोड़ा, सुरेश कोड़ा, नारायण कोड़ा और रावण कोड़ा जैसे नाम भी शामिल रहे हैं, जो पुलिस और ग्राम रक्षा दल के जवानों की हत्याओं के लिए कुख्यात थे। वर्ष 2005 का भेलवाघाटी नरसंहार और चिलखारी हत्याकांड, जिसमें दर्जनों निर्दोषों की जान गई, इन्हीं की बर्बरता का गवाह है। पिंटू राणा वर्ष 2022 में पुलिस के हत्थे चढ़ा था।

बीते कुछ सालों में केंद्र और राज्य सरकारों ने सीआरपीएफ और जिला पुलिस की संयुक्त कार्रवाई से नक्सली नेटवर्क को तोड़ने में बड़ी सफलता हासिल की। दबाव इतना बढ़ा कि कई हार्डकोर नक्सली सरेंडर करने लगे। लगातार हो रही इन कार्रवाइयों से साफ है कि बिहार अब नक्सली आतंक की गिरफ्त से बाहर निकलने की राह पर है और आम जनता का भरोसा सुरक्षा एजेंसियों पर और मजबूत हुआ है।

Editor CP pandey

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