भाई दूज 2025-दीपावली रूपी माला का पांचवा और अंतिम चमकता मोती ,स्नेह ,सौहार्द और प्रीति का अंतिम दीप

भाई दुज़ पर्व बहन को‘सद्भावना की वाहक’और‘आशीर्वाद की प्रदात्री’ के रूप में देखा जाता है,जो अपने भाई के लिए प्रेम का दीप जलाती है-एडवोकेट किशन

गोंदिया – वैश्विक स्तरपर भाई दूज,यह पर्व न केवल दीपावली के पांच दिवसीय महोत्सव का समापन करता है,बल्कि पारिवारिक संबंधों में निहित स्नेह, प्रेम और सुरक्षा की भावना का दिव्य उदाहरण भी प्रस्तुत करता है। जहां धनतेरस से दीपावली की शुरुआत होती है,वहीं भाई दूज उस श्रृंखला का भावनात्मक चरम है, जब बहन अपने भाई की दीर्घायु और समृद्धि की मंगल कामना करती है। 21अक्टूबर 2025, मंगलवार को मनाया जाने वाला यह पर्व केवल भारतीय समाज तक सीमित नहीं रहा, बल्कि आज यह विश्वभर में प्रवासी भारतीयों के बीच पारिवारिक एकता, आत्मीयता और सांस्कृतिक गौरव का प्रतीक बन चुका है। मैं एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानी गोंदिया महाराष्ट्र यह मानता हूं, कि भारतीय संस्कृति में भाई-बहन के संबंध को सबसे पवित्र और आत्मीय रिश्ता माना गया है। रक्षाबंधन और भाई दूज,दोनों पर्व इस रिश्ते की गरिमा को दर्शाते हैं, किंतु दोनों में एक सूक्ष्म अंतर है।रक्षाबंधन पर बहन अपने भाई को रक्षा सूत्र बांधकर उसकी रक्षा की कामना करती है और भाई वचन देता है कि वह अपनी बहन की हर परिस्थिति में रक्षा करेगा। इस दिन भाई अपनी बहन को अपने घर बुलाता है।वहीं भाई दूज पर परंपरा उलट जाती है,बहन अपने भाई को अपने घर आमंत्रित करती है, उसका स्वागत करती है, तिलक लगाती है,भोजन कराती है और उसकी लंबी उम्र व समृद्धि की मंगलकामना करती है। यह भूमिका का परिवर्तन इस बात का प्रतीक है कि रिश्तों की गरिमा एकतरफा नहीं, बल्कि परस्पर है। जैसे भाई बहन की रक्षा करता है, वैसे ही बहन भी अपने स्नेह और शुभकामनाओं से भाई के जीवन में सकारात्मक ऊर्जा और संतुलन भरती है।भारत के विविध प्रांतों में तथा वैश्विक स्तरपर भाई दूज को अलग-अलग नामों और रीति- रिवाजों से मनाया जाता है।उत्तर भारत में इसे “भाई दूज” कहा जाता है, जहां बहनें अपने भाई को तिलक लगाकर भोजन कराती हैं। महाराष्ट्र और गोवा में इसे “भाऊबीज” कहा जाता है,जहां बहनें आरती कर भाई को पान, सुपारी और मिठाई देती हैं।बंगाल में इसे “भाई फोटा” कहा जाता है,और यहां बहनें अपने भाइयों को चंदन का तिलक लगाती हैं तथा विशेष मंत्र का उच्चारण करती हैं।नेपाल में इसे “भाई टीका” कहा जाता है, जो वहां का राष्ट्रीय त्योहार है और पाँच दिन तक चलने वाले तिहार उत्सव का हिस्सा है।21वीं सदी में जब दुनियाँ तकनीकी रूप से जुड़ रही है लेकिन भावनात्मक रूप से दूर हो रही है,तब भाई दूज जैसे पर्व वैश्विक समाज को यह सिखाते हैं कि मानवता की सबसे बड़ी शक्ति रिश्ते हैं अमेरिका, ब्रिटेन, कनाडा, ऑस्ट्रेलिया, सिंगापुर और खाड़ी देशों में बसे प्रवासी भारतीय आज इस पर्व को धूमधाम से मनाते हैं। वहां की भूमि पर यह केवल भारतीयता का प्रतीक नहीं बल्कि संस्कृति के अंतरराष्ट्रीय संवाद का माध्यम बन चुका है।भाई दूज आज विश्व समुदाय को यह संदेश देता है कि सच्चे संबंध स्वार्थ से नहीं, बल्कि आत्मीयता से बनते हैं। यह पर्व वैश्वीकरण की दौड़ में पारिवारिक मूल्यों के संरक्षण का जीवंत उदाहरण है।सभी परंपराओं में भाव एक ही है,भाई की सुरक्षा और बहन के स्नेह का सम्मान। यही विविधता भारतीय संस्कृति की एकता में अनेकता का सबसे चूँकि भाई दूज 2025-दीपावली रूपी माला का पांचवा और अंतिम चमकता मोती,स्नेह, सौहार्द और प्रीति का अंतिम दीप हैँ,इसलिए आज हम मीडिया में उपलब्ध जानकारी के सहयोग से व इस आर्टिकल के माध्यम से चर्चा करेंगेभाई दूज 2025-भारतीय संस्कृति में भाई-बहन के प्रेम और कर्तव्य का वैश्विक प्रतीक हैँ।

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साथियों बात अगर हम, भाई दूज क़े सामाजिक और पारिवारिक आयाम को समझने की करें तो,आधुनिक समाज में जहां परिवार छोटे होते जा रहे हैं और रिश्तों में दूरी बढ़ रही है, वहां भाई दूज जैसे पर्व सामाजिक एकता और पारिवारिक पुनर्सयोजन का अवसर प्रदान करते हैं। इस दिन बहनें अपने मायके जाती हैं, पुराने संबंधों को फिर से जीवित करती हैं और भावनात्मक संवाद का सेतु बनाती हैं।भाई दूज का पर्व हमें यह सिखाता है कि परिवार केवल रक्त संबंध नहीं, बल्कि भावनाओं की बुनावट है। जिस घर में यह पर्व मनाया जाता है, वहां स्नेह, आस्था और संवाद का वातावरण स्वतः निर्मित हो जाता है।यह पर्व विशेष रूप से महिलाओं के सम्मान और उनकी भूमिका की पहचान का भी अवसर है। बहन को ‘सद्भावना की वाहक’ और ‘आशीर्वाद की प्रदात्री’ के रूप में देखा जाता है, जो अपने भाई के लिए प्रेम का दीप जलाती है।

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साथियों बात अगर हम भाई दूज 2025 आध्यात्मिकता, परंपरा और आधुनिकता का संगम को समझने की करें तो, भाई दूज 2025 के आगमन के साथ दीपावली की श्रृंखला पूर्ण होती है, लेकिन उसके साथ ही यह पर्व एक नवीन आरंभ का प्रतीक भी है। यह दिन केवल भाई और बहन के मिलन का नहीं, बल्कि परिवार, समाज और संस्कृति के पुनर्संयोजन का भी अवसर है।आधुनिक समाज में जहां रिश्ते डिजिटल माध्यमों तक सीमित हो रहे हैं,वहां भाई दूज हमें सिखाता है कि स्पर्श, स्नेह और साथ का कोई विकल्प नहीं।जब बहन तिलक लगाती है, तब वह केवल प्रतीकात्मक क्रिया नहीं कर रही होती, बल्कि वह भाई के जीवन में संरक्षण, आशीर्वाद और शुभता का संचार कर रही होती है। यही उस प्रेम की शक्ति है जो न समय, न दूरी और न मृत्यु से बंधी होती है।

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साथियों बात अगर हम,भाई दूज का वैज्ञानिक और मनोवैज्ञानिक पहलू को समझने की करें तो, भारतीय त्यौहार केवल धार्मिक न होकर वैज्ञानिक और मनो वैज्ञानिक दृष्टि से भी गहरे अर्थ रखते हैं। भाई दूज का पर्व दीपावली के बाद आता है,जब वातावरण में ठंड का आगमन होता है, खेतों में नई फसलें आने लगती हैं और परिवार एक साथ समय बिताते हैं। यह मौसम सामाजिक एकत्रीकरण और मानसिक नवजीवन के लिए उपयुक्त होता है।भाई दूज पर तिलक लगाने की परंपरा का भी वैज्ञानिक आधार है। चंदन, कुमकुम और अक्षत का प्रयोग मस्तक के उस भाग (अज्ञा चक्र) पर किया जाता है जो मन की शांति और सकारात्मक ऊर्जा का केंद्र है। इस तिलक से शरीरमें ऊर्जा संतुलित होती है और भावनात्मक जुड़ाव का अनुभव गहरा होता है।इसके अतिरिक्त, भाई- बहन का मिलन और आत्मीय संवाद सामाजिक मानसिक स्वास्थ्य को भी सुदृढ़ करता है। यह पर्व परिवार में संवाद, संवेदना और समर्थन की भावना को प्रबल तथा सटीक बनाता है।
साथियों बात अगर हम भाई दूज का पौराणिक आध्यात्मिक आधार व नारी सशक्तिकरण क़े संदेश को समझने की करें तो भाई दूज का मूल आधार यमराज और उनकी भगिनी यमुना की पौराणिक कथा से जुड़ा हुआ है। कहा जाता है कि यमराज, जो मृत्यु के देवता हैं, एक बार लंबे समय बाद अपनी बहन यमुना के घर पहुंचे। यमुना ने अपने भाई का आदरपूर्वक स्वागत किया, तिलक लगाया,आरती उतारी और उन्हें स्वादिष्ट भोजनकराया। यमराज बहन की इस आत्मीयता से अत्यंत प्रसन्न हुएऔर वरदान दिया कि जो भी इस दिन अपनी बहन के घर जाकर तिलक ग्रहण करेगा और स्नेहपूर्वक भोजन करेगा, उसे यमलोक का भय नहीं रहेगा।इस कथा में न केवल धार्मिक भावार्थ निहित है, बल्कि यह मानवीय संबंधों की अमरता, आत्मीयता और परस्पर श्रद्धा की झलक भी देता है। यमराज जो मृत्यु के प्रतीक माने जाते हैं, उनके द्वारा बहन के स्नेह से जीवन और दीर्घायु का वरदान मिलना यह सिखाता है कि प्रेम ही वह शक्ति है जो मृत्यु और भय पर भी विजय पा सकती है।भाई दूज केवल भाइयों का नहीं, बल्कि बहनों की गरिमा और शक्ति का भी उत्सव है। यह पर्व इस बात का प्रतीक है कि नारी केवल रक्षा की पात्र नहीं, बल्कि रक्षा की प्रदात्री भी है।यमराज की बहन यमुना ने अपने स्नेह से मृत्यु के देवता को भी जीवन का वरदान देने को प्रेरित किया। यह कथा इस विचार को पुष्ट करती है कि स्त्री का प्रेम और आशीर्वाद अमृत समान है, जो जीवन में ऊर्जा, उत्साह और उद्देश्य भर देता है।आधुनिक युग में जब नारी समाज में आत्मनिर्भरता और नेतृत्व की दिशा में अग्रसर है, तब भाई दूज उस सांस्कृतिक विरासत का स्मरण कराता है जो बहन को परिवार के केंद्र में रखती है,एक ऐसी शक्ति के रूप में जो सृजन,संतुलन और प्रेम का स्रोत है।
अतः अगर हम उपरोक्त पूरे विवरण का अध्ययन कर इसका विश्लेषण करें तो हम पाएंगे कि भाई दूज का वैश्विक संदेशयह हैँ कि,भाई दूज केवल भारतीय पर्व नहीं, बल्कि मानवता का उत्सव है। यह हमें याद दिलाता है कि इस संसार में सबसे अमूल्य धरोहर हमारे रिश्ते हैं,जो न किसी धर्म, जाति या भौगोलिक सीमा में बंधे हैं।भाई दूज का संदेश है,“जहां स्नेह है, वहां जीवन है; जहां संबंध हैं, वहां स्थायित्व है।”दीपावली रूपी माला का यह अंतिम दीप न केवल घरों में उजाला करता है, बल्कि मनुष्य के हृदय में प्रेम, कृतज्ञता और बंधुत्व का आलोक फैलाता है।2025 का भाई दूज इस युग की उस पुकार का उत्तर है, जो रिश्तों के पुनर्जागरण की ओर अग्रसर है, एक ऐसा समाज जहां प्रेम, संवाद, सहयोग और संवेदना सबसे बड़ा धर्म हो।

-संकलनकर्ता लेखक – कर विशेषज्ञ स्तंभकार साहित्यकार अंतर्राष्ट्रीय लेखक चिंतक कवि सीए(एटीसी) संगीत माध्यमा एडवोकेट किशन सनमुखदास भावानानी गोंदिया महाराष्ट्र 9226229318

Editor CP pandey

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