एक ऐसा दिन जब भारत ने अपना सच्चा समाजवादी खो दिया

🇮🇳 समाजवाद की मशाल बुझी: डॉ. राम मनोहर लोहिया का निधन (12 अक्टूबर 1967)

12 अक्टूबर 1967 — यह तारीख भारतीय राजनीति और समाज के इतिहास में एक दर्द भरा अध्याय बनकर दर्ज है। इस दिन भारत ने उस व्यक्ति को खो दिया जिसने अपने जीवन के हर क्षण में असमानता, अन्याय और शोषण के खिलाफ संघर्ष किया। डॉ. राम मनोहर लोहिया, वह नाम जो समाजवाद, स्वराज और समानता की विचारधारा का प्रतीक बन गया।
उनकी मृत्यु मात्र एक व्यक्ति का जाना नहीं थी, बल्कि भारत के बौद्धिक और वैचारिक जीवन में एक गहरी खामोशी का उतरना थी।
🔹 जन्म और प्रारंभिक जीवन:
डॉ. राम मनोहर लोहिया का जन्म 23 मार्च 1910 को अकबरपुर (जिला फैज़ाबाद, वर्तमान अयोध्या, उत्तर प्रदेश) में हुआ था।
उनके पिता हीरालाल लोहिया शिक्षक थे और आर्य समाज से गहराई से जुड़े थे। बचपन से ही लोहिया पर पिता के समाज सुधारक विचारों और स्वतंत्रता आंदोलन के प्रभाव पड़े। उन्होंने अपने जीवन में जाति, धर्म या भाषा के आधार पर किसी भी प्रकार के भेदभाव को कभी स्वीकार नहीं किया।
🔹 शिक्षा और वैचारिक गठन:
राम मनोहर लोहिया की प्रारंभिक शिक्षा वाराणसी और कलकत्ता में हुई। उच्च शिक्षा के लिए वे जर्मनी के बर्लिन विश्वविद्यालय गए, जहाँ उन्होंने अर्थशास्त्र में डॉक्टरेट (Ph.D.) की उपाधि प्राप्त की।
उनका शोध विषय था — “भारत का विदेशी व्यापार और ब्रिटिश साम्राज्यवाद” — जिसने बाद में उनके समाजवादी दृष्टिकोण और उपनिवेशवाद विरोधी विचारों को आकार दिया।
जर्मनी प्रवास के दौरान उन्होंने पश्चिमी समाजों की आर्थिक संरचनाओं को गहराई से समझा और पाया कि भारत की गरीबी केवल आर्थिक नहीं, बल्कि सामाजिक और राजनीतिक अन्याय का परिणाम है।
🔹 स्वतंत्रता संग्राम में योगदान:
भारत लौटने के बाद लोहिया जल्द ही महात्मा गांधी और पंडित जवाहरलाल नेहरू के संपर्क में आए। वे भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के समाजवादी दल के संस्थापकों में से एक थे।
1934 में उन्होंने कांग्रेस सोशलिस्ट पार्टी (CSP) की स्थापना में प्रमुख भूमिका निभाई।
लोहिया ने ‘भारत छोड़ो आंदोलन (1942)’ में सक्रिय भागीदारी की और अंग्रेजों के खिलाफ खुलकर आवाज़ उठाई। इस कारण उन्हें कई बार जेल जाना पड़ा।
उनका एक प्रसिद्ध नारा था —
👉 “अंग्रेज़ो भारत छोड़ो, भारत भारतियों का है।”
🔹 समाजवादी विचारधारा और नीतियाँ:
डॉ. लोहिया का समाजवाद केवल आर्थिक नहीं था, बल्कि सामाजिक न्याय और समान अवसरों पर आधारित था। उन्होंने कहा था:
“जब तक समाज में ऊँच-नीच रहेगी, तब तक आज़ादी अधूरी रहेगी।”
उनके विचारों की मुख्य बातें थीं:

1. समानता और सामाजिक न्याय — जातिगत भेदभाव के खिलाफ उन्होंने पूरे जीवन संघर्ष किया।

2. भाषाई समानता — वे अंग्रेज़ी के प्रभुत्व के विरोधी थे और भारतीय भाषाओं के सम्मान के पक्षधर।

3. महिलाओं की भागीदारी — उन्होंने राजनीति और समाज में महिलाओं की समान भागीदारी की वकालत की।

4. ग्रामीण विकास — उनका मानना था कि भारत की आत्मा गाँवों में बसती है; इसलिए असली प्रगति गाँवों के उत्थान से होगी।

5. सस्ती शासन व्यवस्था — उन्होंने पाँच “चौखम्भा राज” की परिकल्पना दी — यानी केंद्र, प्रांत, जिला और ग्राम स्तर पर स्वशासन।


🔹 राजनीतिक जीवन और संघर्ष:
स्वतंत्रता के बाद लोहिया ने कांग्रेस की नीतियों का विरोध किया, विशेष रूप से नेहरू की केंद्रीकरणवादी आर्थिक नीतियों का।
1952 में उन्होंने प्रजा समाजवादी पार्टी बनाई, बाद में समाजवादी पार्टी के रूप में अपने विचारों को आगे बढ़ाया।
1954 में उन्होंने प्रसिद्ध नारा दिया —
👉 “पांच रुपये में शिक्षा, पंद्रह रुपये में इलाज, और पच्चीस रुपये में रोज़गार।”
यह नारा उनके गरीबी उन्मूलन और समान अवसरों के दर्शन का सार था।
1963 में उन्होंने फर्रुखाबाद लोकसभा उपचुनाव जीता और संसद में अपनी तीखी और निर्भीक आवाज़ से व्यवस्था को आईना दिखाया।
वे संसद में अंग्रेज़ी भाषणों का विरोध करते हुए कहा करते थे —
“भारत की संसद भारतीय भाषाओं में बोले, तभी यह सच्ची प्रतिनिधि संस्था बनेगी।”
🔹 प्रमुख योगदान और सिद्धांत:
“सात क्रांतियाँ” — लोहिया ने अपने जीवन का दर्शन सात क्रांतियों में समेटा, जिनमें जाति, लिंग, रंग, पूंजी, राष्ट्र, व्यक्तिगत स्वतंत्रता और हथियारों के खिलाफ संघर्ष शामिल था।
“अंग्रेज़ी हटाओ आंदोलन” के प्रमुख नेता के रूप में उन्होंने भाषाई समानता की अलख जगाई।
“समान समाज, समान अवसर” — उनका यह नारा भारतीय समाज के पुनर्निर्माण का मूल मंत्र बन गया।
🔹 व्यक्तिगत जीवन और सादगी:
लोहिया अविवाहित रहे और जीवनभर सादगी से जीए। वे राजनीतिक लाभ या पद की चाह नहीं रखते थे।
उनका पहनावा सरल था, जीवन अनुशासित और विचारों में क्रांतिकारी।
वे कहते थे —
“राजनीति में नैतिकता न हो, तो सत्ता भी पाप बन जाती है।”
🔹 निधन और प्रभाव:
12 अक्टूबर 1967 को नई दिल्ली के विलिंगडन अस्पताल (अब राम मनोहर लोहिया अस्पताल) में उन्होंने अंतिम सांस ली।
उनकी मृत्यु ने समाजवादी आंदोलन को गहरा आघात पहुंचाया। भारत की राजनीति में एक ऐसी आवाज़ खामोश हो गई जो सत्ता से नहीं, सत्य से चलती थी।

उनकी स्मृति में आज देशभर में डॉ. राम मनोहर लोहिया विश्वविद्यालय (अयोध्या), लोहिया अस्पताल (दिल्ली) और कई संस्थान कार्यरत हैं।
डॉ. राम मनोहर लोहिया केवल एक नेता नहीं, बल्कि एक विचारधारा थे — जो आज भी गरीबों, किसानों, महिलाओं और वंचितों की आवाज़ में गूंजती है।
उनका जीवन हमें यह सिखाता है कि सच्चा समाजवाद सत्ता पाने का साधन नहीं, बल्कि समाज को समान और न्यायपूर्ण बनाने का संकल्प है।

अगर समाज में अन्याय है, तो चुप रहना भी पाप है।” — डॉ. लोहिया
12 अक्टूबर का यह दिन हमें याद दिलाता है कि भले ही लोहिया अब हमारे बीच नहीं हैं, लेकिन उनकी विचारधारा हर उस व्यक्ति में जीवित है जो समानता, न्याय और आत्मसम्मान के लिए संघर्ष करता है।

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Editor CP pandey

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