राज्य वित्त के तहत 37 हजार की लागत से कुआं का कराया जीर्णोद्धार
महराजगंज(राष्ट्र की परम्परा)। कुआं जल संरक्षण का महत्वपूर्ण साधन है। लगभग तीन दशक पूर्व तक अधिकांश गांवों में पेयजल एवं सिचाई के लिए सबसे अधिक प्रयोग कुआं का किया जाता था। आज कुओं का वजूद समाप्त हो रहा है। आज लोगों को रस्सी के सहारे बाल्टी से पानी खींचना तो दूर की बात है। अब कुआं को रखना मुसीबत लगने लगा है। गांव में भी लोग अब नल पर निर्भर होने लगे हैं। शहर के कुछ कुओं में जल स्तर अच्छा है लेकिन जागरूकता के अभाव में गंदगी का पर्याय बन गए हैं। सरकारी भवन परिसर में स्थित कुओं का अस्तित्व तो पहले ही समाप्त कर दिया गया। वहीं जनपद के मिठौरा ब्लाक अंतर्गत ग्राम पंचायत सेखुई के प्रमोद चौधरी श्रीकान्त चौधरी ने बताया कि कुआं से ग्रामीण प्यास बुझाते थे। इसी कुआं के पानी से ग्रामीण मंदिर में पूजा-पाठ करते थे परंतु अब घर से पानी लाना पड़ रहा है। जीर्णोद्धार पर किसी का ध्यान नहीं है। कुआं पहले प्रत्येक घर की जरूरत थी परंतु अब इसके अस्तित्व पर खतरे का बादल मंडरा रहा है। लेकिन मिठौरा ब्लाक में ग्राम पंचायत सेखुई में कुओं का अस्तित्व वापस लाने का प्रयास ग्राम प्रधान प्रतिनिधि रामबदन पटेल ने एक सुंदर प्रयास प्रस्तुति किया है।
प्राप्त जानकारी के अनुसार मिठौरा ब्लाक के ग्राम पंचायत सेखुई बाजार में पंडितपुर टोला स्थित एक कुंआ का जीर्णोद्धार किया है जिससे लोगों में ग्राम प्रधान प्रतिनिधि रामबदन पटेल ने एक सुंदर प्रयास प्रस्तुति किया गया। इसी बीच ग्राम पंचायत के महेश्वर मिश्रा ने कहा कि एक जमाने में कुआं जल संरक्षण का महत्वपूर्ण साधन होता था। तपती धूप में कुआं मुसाफिरों के लिए पानी पीने का एक मात्र जरिया हुआ करता था। फ्रीज युग से पहले कुआं के पानी को ठंडा जल स्रोत माना जाता था। वर्षों पहले लोग कुआं जनहित में खुदवाते थे। पूरे गांव के लोगों के लिए कुआं खेतों की सिचाई, स्नान व पीने के लिए पानी का महत्वपूर्ण साधन था परंतु अब यह सपना मात्र रह गया है। उपेक्षा के चलते कुओं का अस्तित्व समाप्त हो चुका है। तालाब के पानी से होती थी पूजा हमारे पूर्वज जल संरक्षण के लिए कुआं खुदवाते थे। हर गांव में 10 से 15 कुआं होता था। आज स्थिति यह है कि गांव में एक-दो कुआं मिल जाए तो समझे की जल संचय की दिशा में अब भी ग्रामीण जागरूक हैं। पहले कुआं के पानी से भोजन बनाने, पानी पीने एवं पूजा करने काम होता था। हमारी संस्कृति कुआं की पानी को शुद्ध मानती है। छठ व्रत के दौरान व्रती कुआं के पानी से ही प्रसाद बनाती हैं। कुंआ की पानी के लिए भटकना पड़ता है। दूर से पानी लाना पड़ता है। अगर तालाब की स्थिति ठीक रहती तो पानी के लिए व्रती को भटकना नहीं पड़ता। यह सब देखते हुए भी अधिकारी एवं जनप्रतिनिधियों का ध्यान इस ओर नहीं जा रहा है लेकिन आज के दौर में ग्राम पंचायत सेखुई बाजार में पंडितपुर टोला में स्थित एक कुंआ का जीर्णोद्धार कराके ग्राम प्रधान प्रतिनिधि रामबदन पटेल ने एक सुंदर प्रयास प्रस्तुति किया है जो सराहनीय है।
इस संबंध में प्रधान प्रतिनिधि रामबदन पटेल ने कहा कि कुओं का अस्तित्व वापस लाने के प्रयास में लगभग 37हजार रुपए की लागत से हमने राज्य वित्त योजना के तहत एक कुंआ का जीर्णोद्धार कराके अपने पूर्वजों की धरोहर को बचाने का प्रयास किया है।
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