
पितृ पक्ष दिवस पर विशेष
पितृपक्ष का महत्व व सनातन धर्म में इसकी विशेषताएं
महराजगंज ( राष्ट्र की परम्परा)। पितृपक्ष सनातन धर्म में अपने पितृ पूर्वजों के लिए समर्पित पखवाड़ा आश्विन कृष्ण पक्ष जिसे हम पितृ पक्ष कहते हैं 29 सितंबर से प्रारंभ होकर 14 अक्टूबर तक चलेगा यह केवल हमारी ही संस्कृत में संभव है जहां हम मनुष्य जाति के साथ-साथ समस्त जीव जगत को अपना पितृ एवं पूर्वज मानते हैं। श्राद्ध तर्पण के मंत्रों से यह बिल्कुल स्पष्ट है। पितृपक्ष में श्राद्ध तो अपने पिता की मृत्यु तिथि को अथवा ज्ञात न होने पर अमावस्या तिथि को करना चाहिए किंतु देव ,ऋषि, मनुष्य को तर्पण तो पितृपक्ष भर करना चाहिए देव कार्य से भी पितृ कार्य को ज्यादा महत्वपूर्ण माना गया है । (देव कार्याद्पि सदा पितृ कार्य विशेष्य ते )। चंद्रोदय व्यापिनी द्वितीया तिथि में अशून्य शयन का व्रत 29 सितंबर को होगा चंद्रोदय रात 6:30 बजे चंद्रमा को अर्ध दिया जाएगा । पितृ दोष से मुक्ति और पितरों का आशीर्वाद लेने के लिए श्राद्ध पक्ष का खास महत्व है। वैसे तो भाद्रपद पूर्णिमा के साथ श्राद्ध शुरू हो गया है, लेकिन जिन लोगों को पितरों की मृत्यु की तिथि नहीं मालूम है, वे अमावस्या के दिन श्राद्ध कर्म कर सकते हैं।राष्ट्र की परम्परा टीम से आचार्य उमेश शुक्ल ने बताया कि श्रद्धा से कुछ देना ही श्राद्ध कर्म कहलाता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार पितृपक्ष के दौरान पितरों का आगमन धरती पर वायु के रूप में होता है और वे जीव-जंतुओं के माध्यम से आहार ग्रहण करते हैं। अत: इस दौरान जीव-जंतुओं को भोजन कराया जाता है। पितृ पक्ष के दौरान पिंड दान तर्पण और श्राद्ध कर्म किए जाते हैं।
आचार्य शुक्ल ने यह भी कहा कि श्राद्ध कर्म में भोजन के पहले पाच जगहों पर भोजन के अंश निकाले जाते हैं। भोजन के यह अंश देवताओं, गाय, कुत्ता, चींटी, कौए के लिए सर्वप्रथम निकाले जाते हैं। यह अर्पण की विधि पंच बलि कहलाती है। पंच बलि के बिना श्राद्ध कर्म संपूर्ण नहीं माना जाता है। पितृ पक्ष की अवधि में इन जीवों को भोजन कराने से पितृदोष से भी मुक्ति मिल सकती है।पितरों की मृत्यु की सही तिथि ज्ञात न होने पर पितृ पक्ष की अमावस्या के दिन विधिपूर्वक श्राद्ध कर सकते हैं। प्रत्येक माह में आने वाली अमावस्या तिथि को दक्षिण दिशा की तरफ मुख करके जल तर्पण किया जा सकता है। इससे पितर तृप्त और संतुष्ट होते हैं। पापों से मुक्ति के लिए भी श्राद्ध कर्म करना श्रेष्ठ माना गया है।श्राद्ध की सर्व पैतृ अमावस्या पितृ विसर्जन 14 अक्टूबर को है । किसी कारण वश पिता की मृत्यु तिथि अथवा तिथि विशेष पर श्राद्ध ना कर पाने अथवा पिता की मृत्यु तिथि ज्ञात न होने की स्थिति में पितृ पक्ष का अंतिम श्राद्ध आज के दिन कर लिया जाएगा ।ब्राह्मणों को शंख चक्र एवं गदाधर श्री महा विष्णु का रूप मानते हुए उनको भोजन कराना एवं श्रद्धा पूर्वक दान करने से परिवार में सुख शांति बनी रहती है तथा वंश वृद्धि होती है हर सनातनी धर्मी को इस पुनीत कार्य को अवश्य करना चाहिए। चित्रा नक्षत्र का सूर्य 11 अक्टूबर को रात में 10:23 पर आएगा इसमें बादलों के घिराव के साथ साधारण दृष्टि होने की संभावना है पक्ष के तीन शनिवार एवं शनिवार की अमावस्या प्रजा पीड़ा दायक है। किसी प्रकार की दैविक प्राकृतिक घटना से धन-धन को क्षति पहुंच सकती है।
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