इत्र से कपड़े महकाना बड़ी बात नहीं,
मज़ा तब है, खुशबू किरदार से आए,
परफ़्यूम बदन से महके क्या होगा,
ज़िंदगी में इश्को हुस्न जब पास आये।
मंज़िल मिले भटक जाने पर ही सही,
गुमराह हैं जो बाहर निकलते ही नहीं,
जिस नज़र से हम ये धरती देखेंगे,
धरती हमको वैसी ही तो दिखेगी।
हम गलतियाँ करके जो सीखते हैं,
और किसी तरह नहीं सीख सकते,
हम कुछ भी जीते जी कहाँ पा सकते,
जब मरने का हौंसला नहीं रखते।
कमजोर लोग शिकायत करते हैं,
उगने वाले तो पत्थर फाड़ उगते हैं,
सपना जादू से सच नहीं हो सकता है,
पसीना, संकल्प व परिश्रम लगता है।
पंख काफ़ी नहीं गगन में उड़ने के लिए,
हौसला चाहिए ऊंची उड़ान के लिए,
हुकूमत बाजू के बल, कोई कर ले,
दिलों पे छाने से पहले इंसान बन ले।
आगे बढ़, तूफ़ान आगोश में ले ले,
ऐ डूबने वाले साहिल हाथ में ले ले,
छोटी बातों को भी गंभीरता से लेना,
वरना बड़े मसलों में भरोसा नहीं होना।
आदित्य वजह खोजो हार जाने की,
किसी की जीत पर रोने से क्या होगा,
ज़िंदगी पे तरस न खाना, जान दे देना,
सिकंदर जो बनाना, अरस्तू गुरू होना।
कर्नल आदि शंकर मिश्र ‘आदित्य’
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