गोरखपुर(राष्ट्र की परम्परा)
आइये आके महफिल जमा दीजिए,
आप भी बेवजह मुस्कुरा दीजिए।
पास उजड़े हुए इस चमन के कभी,
बैठ के खुद ब खुद मशवरा कीजिए।
आंसुओ के समंदर से बाहर लिकल,
साज दिल का कभी गुनगुना दीजिए।
आइना दर्द सुनने को बेताब है,
रूबरू जा के सब कुछ बता दीजिये।
आज अपनों से अपनी लड़ाई में फिर,
हार कर फ़र्ज अपना अदा कीजिए।
टूट जाने का अपने गिला न करें,
फूल बनके गुलिस्तां सजा दीजिए।
लुट गए हैं तो क्या इश्क में हम सभी,
दिल लगाने की फिर से खता कीजिए।
कब मिला है किसी को मुकम्मल जहाँ,
शौक से जिंदगी का मजा लीजिये।
आइये आके महफिल जमा दीजिए,
आप भी बेवजह मुस्कुरा दीजिए।
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