शक्ति के बिना शिव शव हैं, जानें गूढ़ कथा”

जब शिव ने सिखाया— शक्ति बिना शिव शून्य, और शिव बिना शक्ति अधूरा 🔱
कथा : “शिव–पार्वती संवाद— जब अहंकार गलता है, तभी आत्मा शिवत्व को प्राप्त करती है”
शिवपुराण की कथाएँ केवल देवताओं की लीला नहीं, बल्कि मानव जीवन के गहरे रहस्यों को समझाने वाला एक दिव्य दर्पण हैं। पिछले एपिसोड में हमने जाना कि जब मन में अहंकार बढ़ता है, तब कैलाशपति का वैराग्य हमें स्मरण कराता है कि जीवन का मूल—समर्पण और संतुलन है।
जहाँ शिव और शक्ति के दिव्य संवाद के माध्यम से हमें वह सत्य प्राप्त होता है, जो जीवन को शिवमय बना देता है।

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🔶 जब पार्वती ने पूछा— “हे नाथ! सृष्टि का आधार क्या है?”
एक बार माता पार्वती ने भक्तों के कल्याण हेतु महादेव से प्रश्न किया—
“हे महेश! मनुष्य जीवन में शांति, स्थिरता और सिद्धि कब आती है?”
भोलेनाथ मुस्कुराए।
उनकी मुस्कान मानो हिमालय की चोटी पर पड़ती प्रथम सूर्य किरण जैसी दिव्य और शांत थी।
उन्होंने कहा—
“देवि! जब मनुष्य अपने भीतर छिपे शिव और शक्ति को पहचान लेता है, तब वह स्वयं ब्रह्मांड बन जाता है। शिव चेतना हैं, और तुम शक्ति। चेतना बिना शक्ति निष्क्रिय है और शक्ति बिना चेतना दिशाहीन। दोनों का मिलन ही सृष्टि का आधार है।”

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पार्वती विस्मित हुईं—
“तो क्या हर मनुष्य के भीतर भी यही दो शक्तियाँ विद्यमान हैं?”
शिव बोले—
“हाँ देवि! यही तो मानव जन्म का रहस्य है।
जब मनुष्य अपने भीतर इंद्रियों (शक्ति) और विवेक (शिव) का संतुलन सीख जाता है, तब वह दुख–कष्टों को जीत लेता है।”
🔶 शिव का उपदेश— ‘अहंकार में पड़ा मन स्वयं को खो देता है’
शिवपुराण में वर्णित है कि महादेव ने माता पार्वती से कहा—
“अहंकार वह अग्नि है जो पहले स्वयं को जलाती है, फिर संसार को।”
शिव ने स्पष्ट कहा—
जब अहंकार बढ़ता है,
जब मन स्वयं को सम्पूर्ण मानने लगता है,
जब इच्छाएँ विवेक का मार्ग रोक लेती हैं,
तब मनुष्य न स्वयं को समझ पाता है, न ईश्वर को।

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शिव बोले—
“देवि! जो व्यक्ति अपने भीतर बसे शिवत्व को नहीं पहचानता, वह सत्य से दूर चला जाता है।”
🔶 शिव–भस्म कथा का रहस्य— ‘जिसे तुम अपना समझ रहे हो वह नश्वर है’
पार्वती के मन में एक और प्रश्न उठा—
“हे प्रभु! आप भस्म क्यों धारण करते हैं?”
शिव ने अपनी जटाओं को स्पर्श किया और बोले
“देवि! भस्म यह स्मरण दिलाती है कि शरीर, संपत्ति, अभिमान, सौंदर्य—सब नश्वर हैं।
जो नश्वर पर गर्व करता है, वह दुख पाता है।
जो शिव पर, सत्य पर गर्व करता है, वही मुक्त होता है।”**
यह वाक्य सुन पार्वती भावना से भर उठीं।
उनकी दृष्टि में परम ज्ञान उतर आया—
कि शिव का वैराग्य पलायन नहीं, बल्कि महाज्ञान है।

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🔶 शिव–पार्वती संवाद : मिलन का वास्तविक अर्थ
पार्वती ने पूछा—
“किन्हें आपका सान्निध्य प्राप्त होता है, प्रभु?”
शिव बोले—
“देवि! जो मनुष्य शक्ति का सदुपयोग करता है और चेतना को जागृत रखता है—
उसे ही शिव का सान्निध्य मिलता है।”**
उन्होंने आगे कहा—
जो क्रोध को करुणा में बदल दे
जो मन की चंचलता को ध्यान में बदल दे
जो इच्छा को संकल्प में रूपांतरित कर दे
वही शिवमार्ग पर चलता है।

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🔶 जब शिव बोले— “तुम शक्ति हो, मैं शिव; अलग होकर पूर्ण नहीं”
शिवपुराण कहता है कि इस क्षण स्वयं महादेव ने माता पार्वती के चरणों में प्रणाम किया।
माता आश्चर्यचकित हुईं—
“प्रभु! आप मेरे चरण कैसे छू सकते हैं?”
भोलेनाथ ने कहा—
“देवि! शक्ति के बिना शिव केवल शव है।
हम एक-दूसरे के पूरक हैं।
जैसे दिन बिना सूर्य नहीं, और प्रकाश बिना दीप नहीं।”**
इस दृश्य ने समस्त देव–गणों को भी भावविह्वल कर दिया।
संदेश स्पष्ट था—
शिव और शक्ति दो नहीं—एक ही सत्य के दो रूप हैं।

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🔶 अंत में शिव का संदेश मनुष्यों के लिए
शिव बोले—
“हे देवी! मनुष्य तब तक दुखी रहता है, जब तक वह स्वयं को अलग-अलग हिस्सों में बाँटकर देखता है—
मन, बुद्धि, शरीर, इच्छा, क्रोध, प्रेम…
जब वह इन्हें एक मानकर शिव–शक्ति का संतुलन प्राप्त कर लेता है,
तब उसका जीवन शिवमय हो जाता है।”
उन्होंने कहा—
शक्ति संतुलन है
चेतना दिशा है
संतुलन और दिशा — यही शिवत्व है
और यही जीवन में शांति, सफलता और सिद्धि का मूल है।

🔱 निष्कर्ष — शिव भीतर हैं, शक्ति भीतर है, बस जागरण की आवश्यकता है 🔱
शिवपुराण की यह कथा हमें स्पष्ट संदेश देती है कि—
ब्रह्मांड कहीं बाहर नहीं; वह हमारे भीतर है।
जब मन का शिव (चेतना) और हृदय की पार्वती (इच्छाशक्ति) मिलते हैं,
तभी जीवन दिव्यता प्राप्त करता है।

Editor CP pandey

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