जब स्मृतियाँ मौन हो गईं, पर विरासत अमर रह गई – 2 दिसंबर के महान दिवंगत व्यक्तित्व

इतिहास के पन्नों में 2 दिसंबर की तारीख उन महान हस्तियों को समर्पित है, जिन्होंने अपने कार्य, प्रतिभा और संघर्ष से समाज, राजनीति, सिनेमा और शिक्षा के क्षेत्र में अमिट छाप छोड़ी। आइए जानते हैं 2 दिसंबर को हुए निधन के उन प्रमुख व्यक्तित्वों के बारे में, जिनकी यादें आज भी जीवंत हैं।

  1. देवेन वर्मा (निधन: 2 दिसंबर 2014) – मुस्कान देने वाला सितारा

देवेन वर्मा का जन्म 23 अक्टूबर 1937 को पुणे, महाराष्ट्र में हुआ था। शिक्षा उन्होंने पुणे विश्वविद्यालय से प्राप्त की। हिंदी सिनेमा में वे एक ऐसे हास्य अभिनेता के रूप में प्रसिद्ध हुए, जिन्होंने हर पीढ़ी को हंसाया। ‘अंगूर’, ‘चोरी मेरा काम’, ‘दिल’, ‘गोलमाल’ जैसी फिल्मों में उनकी भूमिकाएं आज भी दर्शकों के दिलों में जीवित हैं। अभिनय के साथ-साथ वे एक सफल फिल्म निर्माता भी रहे। उनका योगदान भारतीय मनोरंजन जगत के लिए अमूल्य रहा।

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  1. प्रीति गांगुली (निधन: 2 दिसंबर 2012) – सशक्त सहायक अभिनेत्री

प्रीति गांगुली का जन्म दार्जिलिंग, पश्चिम बंगाल में हुआ था। उन्होंने अपनी शिक्षा कलकत्ता से प्राप्त की। हिंदी सिनेमा में उन्होंने हास्य और चरित्र भूमिकाओं के माध्यम से अलग पहचान बनाई। उनकी प्रमुख फिल्मों में ‘खांदेरी’, ‘आनंद’ और ‘कटी पतंग’ शामिल हैं। अपने आत्मविश्वास और अभिनय क्षमता से उन्होंने यह साबित किया कि सहायक भूमिकाएं भी कहानी की आत्मा बन सकती हैं।

  1. मर्री चेन्ना रेड्डी (निधन: 2 दिसंबर 1996) – सियासत के समर्पित सेवक

मर्री चेन्ना रेड्डी का जन्म आंध्र प्रदेश के माहबूबनगर जिले में हुआ था। उन्होंने विज्ञान में शिक्षा प्राप्त की और डॉक्टर भी बने। राजनीति में आकर वे प्रांतीय कांग्रेस कमेटी के महामंत्री तथा 30 वर्षों तक पीसीसी वर्किंग कमेटी के सदस्य रहे। उनका योगदान सामाजिक न्याय, किसानों और आमजन के अधिकारों की रक्षा में उल्लेखनीय रहा। वे राजनीति में सेवा के प्रतीक बने।

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  1. क्लिमेंट वोरोशिलोव (निधन: 2 दिसंबर 1969) – सोवियत ताकत का प्रतीक

क्लिमेंट वोरोशिलोव का जन्म रूस के लुहान्स्क ओब्लास्ट में हुआ था। प्रारंभिक शिक्षा उन्होंने स्थानीय स्तर पर प्राप्त की। सोवियत संघ के राष्ट्रपति के रूप में उन्होंने देश को सामरिक और राजनीतिक रूप से मजबूती दी। वे स्टालिन के करीबी सहयोगी और प्रसिद्ध सैन्य नेता भी रहे। उनके कार्यकाल में सोवियत सेना के आधुनिकीकरण में बड़ा योगदान रहा।

  1. गुरुदास बनर्जी (निधन: 2 दिसंबर 1918) – शिक्षा का दीप स्तंभ

गुरुदास बनर्जी का जन्म बंगाल के हुगली जिले में हुआ था। उन्होंने कलकत्ता विश्वविद्यालय से कानून और दर्शन में उच्च शिक्षा प्राप्त की। वे भारत के महान शिक्षाशास्त्री और कलकत्ता विश्वविद्यालय के प्रसिद्ध प्रोफेसर रहे। शिक्षा को जन-जन तक पहुंचाने और भारतीय युवाओं को बौद्धिक दिशा देने में उनका योगदान अविस्मरणीय रहा। वे ज्ञान, संस्कार और अनुशासन के प्रतीक थे।

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इतिहास की गहराइयों में छुपे सबक

2 दिसंबर को हुए निधन केवल एक तारीख नहीं, बल्कि उन महान जीवन यात्राओं की याद है, जिन्होंने समाज को दिशा, मनोरंजन और बौद्धिक ऊर्जा प्रदान की। इन विभूतियों की सोच और संघर्ष आज भी प्रेरणा देते हैं कि मृत्यु देह की होती है, कर्म की नहीं।

Editor CP pandey

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