पुण्य भारी पड़ रहा है कहा किसी ने,
यह प्रतिक्रिया मुझे दी एक मित्र ने,
स्वास्थ्य तो शरीर का देखा जाता है,
मन:स्थिति का पता कौन ले पाता है।
कोई कार्य निष्काम होकर करते हैं,
तो कर्म करने में आनंद मिलता है,
मन शुद्ध होकर शांति वास होता है,
शांति से ही हमेशा सुख मिलता है।
इस मन:स्थिति में टिक सकें तो
मोक्ष पाने की राह मिल जाती है,
और साधक की राह कभी इस
सन्मार्ग से विरत नहीं हो पाती है।
ईश्वर उसका आधार बन जाते हैं,
ईश्वर में अखंड सात्विक आनंद है,
इसको गीता में कर्मयोग कहा गया है,
इसी कृपा से निष्काम भाव आता है।
फल की इच्छा से ईश्वर की ओर
ध्यान निकट जा ही नहीं पाता है,
कर्म करो, फल की इच्छा न करो,
फल समय पर प्राप्त हो जाता है।
प्रकृति के मायाजाल अर्थात दुःख से
बचना है तो उनकी शरण जाना होगा,
आदित्य समभाव रखकर स्थिर होकर
स्वीकार भाव से जीना सीखना होगा।
डॉ कर्नल आदि शंकर मिश्र
‘आदित्य’
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