8 दिसंबर—हिंदुस्तान के वे अमर सितारे, जिनकी विदाई ने इतिहास को मौन कर दिया
भारत का इतिहास महान व्यक्तित्वों की स्मृतियों से भरा हुआ है। 8 दिसंबर की तारीख देश के लिए हमेशा भावनात्मक रूप से महत्वपूर्ण रही है, क्योंकि इस दिन कई ऐसे रत्नों ने दुनिया को अलविदा कहा, जिन्होंने राष्ट्र निर्माण, साहित्य, राजनीति और स्वतंत्रता संग्राम में अद्वितीय योगदान दिया। इन विभूतियों की जीवनगाथा न केवल प्रेरणा देती है, बल्कि यह भी सिखाती है कि समर्पण और देशप्रेम से इतिहास रचा जाता है।
जनरल बिपिन रावत भारत के प्रथम चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ (CDS) थे। उनका जन्म 16 मार्च 1958 को उत्तराखंड के पौड़ी गढ़वाल जनपद स्थित सैणीक परिवार में हुआ था। वे भारतीय सेना के एक साहसी और दूरदर्शी अधिकारी माने जाते थे। उन्होंने भारतीय मिलिट्री अकादमी, देहरादून से प्रशिक्षण प्राप्त किया और देश की सीमाओं पर कई महत्वपूर्ण सैन्य अभियानों का नेतृत्व किया।
2016 में वे भारतीय सेना के 27वें सेनाध्यक्ष बने। उनके कार्यकाल में सेना के आधुनिकीकरण, आतंकरोधी रणनीतियों और सीमाई सुरक्षा को नया आयाम मिला। 2021 में एक हेलीकॉप्टर दुर्घटना में उनका निधन हो गया, जिससे पूरा देश शोक में डूब गया। देश के लिए उनका योगदान सदैव स्वर्णिम अक्षरों में लिखा जाएगा।
रमाशंकर यादव ‘विद्रोही’ का जन्म उत्तर प्रदेश के सुल्तानपुर जनपद में हुआ था। वे जनकवि के रूप में प्रसिद्ध थे और जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (JNU), नई दिल्ली में विद्यार्थियों के बीच अत्यंत लोकप्रिय थे। उनकी कविताओं में जनसंघर्ष, सामाजिक अन्याय और शोषण के विरुद्ध क्रांति की आवाज स्पष्ट सुनाई देती थी।
वे किसी पद या प्रतिष्ठा के मोहताज नहीं थे बल्कि जनता की आवाज बनकर समाज की कुरीतियों को ललकारते थे। उनका जीवन संघर्ष और साहित्य को समर्पित रहा। विद्रोही जी ने सशक्त शब्दों के माध्यम से लोगों को सोचने और लड़ने की ताकत दी।
विजया देवी एक प्रतिष्ठित भारतीय राजकुमारी थीं, जिनका संबंध एक प्रमुख रियासत से था। उनका जीवन सामाजिक दायित्वों एवं महिला सशक्तिकरण की दिशा में कार्यों के लिए जाना जाता है। उन्होंने शिक्षा, स्वास्थ्य और ग्रामीण विकास से जुड़े कई कार्यों में सक्रिय भूमिका निभाई।
उनकी सादगी, परोपकार और सामाजिक प्रतिबद्धता के लिए उन्हें सदा स्मरण किया जाता रहेगा। राजसी जीवन के बावजूद वे आमजन के दुख-दर्द को समझती थीं और उनकी सहायता के लिए आगे रहती थीं।
श्रीपति मिश्रा उत्तर प्रदेश के बलिया जनपद से ताल्लुक रखते थे और भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के प्रमुख नेताओं में शुमार थे। वे उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री भी रह चुके थे। उनके राजनीतिक जीवन का केंद्र जनता की समस्याओं का समाधान और प्रशासनिक सुधार रहा।
उन्होंने शिक्षा, सड़क और ग्रामीण विकास क्षेत्र में कई योजनाओं को आगे बढ़ाया। सरल स्वभाव और जुझारू नेतृत्व के कारण वे जनता में लोकप्रिय रहे। उनके प्रयासों ने प्रदेश की प्रशासनिक दिशा को लंबे समय तक प्रभावित किया।
भाई परमानन्द का जन्म पंजाब प्रांत (वर्तमान हरियाणा/पाकिस्तान क्षेत्र, लायलपुर के आसपास) में हुआ था। वे भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के महान क्रांतिकारी, समाज सुधारक और चिंतक थे। ‘गदर आंदोलन’ से उनका गहरा जुड़ाव रहा और उन्होंने अंग्रेजों के खिलाफ क्रांति की अलख जगाई।
ब्रिटिश शासन के खिलाफ आवाज उठाने के कारण उन्हें कई बार कारावास भी झेलना पड़ा। स्वतंत्रता के बाद भी वे राष्ट्र के नैतिक व सामाजिक उत्थान के लिए कार्य करते रहे। उनका जीवन बलिदान, निष्ठा और राष्ट्रप्रेम का प्रतीक है।
भाजपा बनी हिंदू महासभा — यह कथन केवल एक राजनीतिक आरोप नहीं, बल्कि आज की…
तहसील परिसर से स्टांप विक्रेता की साइकिल चोरी, पुलिस कार्यप्रणाली पर उठे सवाल बरहज/देवरिया (राष्ट्र…
सर्दी के कहर से बच्चों को मिली राहत, माही संस्था की मानवीय पहल से खिले…
झारखंड के 25वें स्थापना दिवस पर ‘रत्न श्री पुरस्कार’ समारोह का भव्य आयोजन, ऑड्रे हाउस…
सर्दियों में हेल्दी डाइट का सुपरफूड: बथुआ से बना पौष्टिक पास्ता, स्वाद और सेहत दोनों…
विकास के आंकड़ों और आमजन के जीवन के बीच बढ़ती खाई कैलाश सिंहमहराजगंज (राष्ट्र की…