विष्णु भगवान की उत्पत्ति: सृष्टि के संतुलन की अनंत कथा

सनातन धर्म के वेदों और पुराणों में विष्णु भगवान को सृष्टि के पालनहार के रूप में जाना गया है। विष्णु पुराण में उनकी उत्पत्ति का रहस्य अत्यंत गूढ़, आध्यात्मिक और ब्रह्मांडीय रहस्यों से भरा है। कहा गया है कि जब यह सम्पूर्ण सृष्टि अस्तित्व में नहीं थी — न आकाश था, न जल, न अग्नि, न वायु, न पृथ्वी — उस समय केवल एक विराट ब्रह्म स्वरूप विद्यमान था, जिसे “परब्रह्म” या “परमात्मा” कहा गया। उसी परम तत्व से भगवान विष्णु का प्राकट्य हुआ, जो सृष्टि के संरक्षण और संतुलन के लिए स्वयं अवतरित हुए।

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🌊 प्रलय काल में शेषनाग पर विश्रामरत विष्णु
विष्णु पुराण के अनुसार, जब संपूर्ण सृष्टि प्रलय के जल में विलीन हो गई थी, तब केवल विष्णु ही शेषनाग पर शयन करते हुए “क्षीरसागर” में विराजमान थे। उनके नाभि से एक कमल उत्पन्न हुआ, और उसी कमल पर ब्रह्मा जी का प्राकट्य हुआ। यही वह क्षण था जब सृष्टि की पुनः रचना आरंभ हुई।
विष्णु की नाभि से निकला कमल सृजन का प्रतीक है, और ब्रह्मा जी को ज्ञान व चेतना का आधार प्रदान करता है। इस प्रकार, विष्णु भगवान ही सृष्टि के मूल कारण, पालनकर्ता और अंतिम शरण हैं।

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🌞 विष्णु — त्रिमूर्ति का संतुलन केंद्र
विष्णु पुराण में वर्णित है कि सृष्टि के तीन रूप — ब्रह्मा (सृष्टिकर्ता), विष्णु (पालनहार) और महेश (संहारक) — एक ही परम तत्व के भिन्न भिन्न स्वरूप हैं। इनमें विष्णु भगवान वह ऊर्जा हैं जो जीवन को गति और दिशा देते हैं।
वह केवल देवताओं के ही नहीं, अपितु हर जीव के रक्षक हैं। जब भी धर्म का ह्रास होता है और अधर्म बढ़ता है, तब विष्णु भगवान अपने अवतार लेकर पृथ्वी पर धर्म की स्थापना करते हैं — जैसे राम, कृष्ण, नरसिंह, वामन, परशुराम आदि रूपों में।

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🌼 विष्णु का शांति और करुणा से जुड़ा स्वरूप
विष्णु भगवान का स्वरूप स्नेह, करुणा और संतुलन से परिपूर्ण है। उनका शयन, उनके चार भुजाओं में शंख, चक्र, गदा और पद्म धारण करना, सब गूढ़ अर्थ लिए हुए है —
शंख – जीवन का आरंभ और ध्वनि का प्रतीक,
चक्र – समय और धर्म की रक्षा का प्रतीक,
गदा – अन्याय और अहंकार के दमन का संकेत,
पद्म – निर्मलता और ज्ञान का प्रतीक।
इन प्रतीकों के माध्यम से विष्णु भगवान यह संदेश देते हैं कि सच्चा धर्म वही है जो सबके हित में हो, जो संतुलन बनाए रखे और जीवन को ज्ञान के प्रकाश से आलोकित करे।

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🌺 भावनात्मक संदेश
विष्णु भगवान की कथा केवल एक धार्मिक आख्यान नहीं, बल्कि यह सिखाती है कि जब भी संसार में अंधकार बढ़ता है, तब कोई न कोई “विष्णु तत्व” अवश्य प्रकट होता है — जो संतुलन, करुणा और धर्म की रक्षा करता है।
विष्णु का अर्थ ही है — “जो सर्वत्र व्याप्त हो।” इसलिए वे केवल देवता नहीं, बल्कि हर जीव के भीतर विद्यमान करुणा, प्रेम और कर्तव्य का प्रतीक हैं।

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🕉️ विष्णु पुराण की यह प्रथम कथा हमें यह समझाती है कि सृष्टि का संचालन केवल शक्ति से नहीं, बल्कि संतुलन, करुणा और धर्म से होता है। भगवान विष्णु उस ब्रह्मांडीय संतुलन के प्रतीक हैं — जो अनादि भी हैं और अनंत भी। हम आगे जानेंगे कैसे विष्णु ने सृष्टि की रक्षा के लिए प्रथम अवतार धारण किया और धर्म की नींव रखी।

Editor CP pandey

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