25 नवंबर के उजाले: इतिहास में जन्मे वे व्यक्तित्व जिन्होंने भारत की दिशा बदली
भारत के इतिहास में 25 नवंबर ऐसा दिन है जब विविध क्षेत्रों—खेल, साहित्य, न्यायपालिका, राजनीति, कला और समाजसेवा—के अद्वितीय रत्न जन्मे। इन हस्तियों ने अपनी प्रतिभा, संघर्ष और सेवा से देश की चेतना को नया आकार दिया। आइए, इस तिथि पर जन्मे उन महानायकों को जानें जिन्होंने अपने-अपने क्षेत्र में अमिट छाप छोड़ी।
25 नवंबर को जन्मे महान व्यक्तित्व
- झूलन गोस्वामी (1982)
पश्चिम बंगाल के नदिया ज़िले में जन्मीं झूलन गोस्वामी ने साधारण पृष्ठभूमि से उठकर विश्व क्रिकेट में तेज गेंदबाजी का नया अध्याय लिखा। उन्होंने भारतीय महिला क्रिकेट को वैश्विक मंच पर प्रतिष्ठा दिलाने में अग्रणी भूमिका निभाई। देश को नेतृत्व, अनुशासन और अद्वितीय खेल कौशल का उदाहरण दिया। - सुनीति कुमार चटर्जी (1890)
कोलकाता में जन्मे विख्यात भाषाविद सुनीति कुमार चटर्जी ने भाषाशास्त्र और साहित्यिक अनुसंधान को नई दिशा दी। उन्होंने भारतीय भाषाओं की संरचना, विकास और व्याकरण पर गहन शोध कर शिक्षा-जगत को समृद्ध किया। विश्व स्तर पर भारतीय भाषाओं की पहचान मजबूत करने में उनका योगदान अमूल्य है। - देवकी बोस (1898)
बर्धमान, बंगाल में जन्मे देवकी बोस भारतीय सिनेमा में ध्वनि और संगीत तकनीक के अग्रदूत माने जाते हैं। उन्होंने निर्देशन के क्षेत्र में कलात्मक प्रयोगों से फिल्मों को नए आयाम दिए। उनकी कृतियों ने भारतीय चलचित्रों को सांस्कृतिक संवेदनाओं से जोड़ने का मार्ग प्रशस्त किया। - बिप्लब कुमार देब (1971)
गोमती जिले के एक साधारण परिवार से उठे बिप्लब कुमार देब ने राजनीति में सक्रिय होकर संगठनात्मक क्षमता का परिचय दिया। त्रिपुरा की राजनीति में उन्होंने विकास, प्रशासनिक सुधार और जनसंपर्क आधारित कार्यशैली से पहचान बनाई। उनकी राजनीतिक यात्रा अनुशासन और नेतृत्व का प्रतीक है। - अरविन्द कुमार शर्मा (1963)
उत्तर प्रदेश के मिर्ज़ापुर में जन्मे अरविन्द शर्मा ने शिक्षा पूरी करने के बाद सामाजिक और राजनीतिक जीवन में कदम रखा। वे 11वीं और 15वीं लोकसभा के सदस्य रहे। अपने क्षेत्र में विकास, ग्रामीण ढांचे और सार्वजनिक कल्याण कार्यों के लिए वे पहचाने जाते हैं। - बिप्लब कुमार देब (1969)
त्रिपुरा में जन्मे बिप्लब देब, राज्य के 10वें मुख्यमंत्री के रूप में उल्लेखनीय रहे। उन्होंने प्रशासनिक सुधार, खेल प्रोत्साहन और आधारभूत संरचना के विकास को गति दी। दूरस्थ क्षेत्रों को मुख्यधारा से जोड़ने में उनका योगदान सराहनीय माना जाता है। - राधाकृष्ण माथुर (1953)
कर्नाटक में जन्मे राधाकृष्ण माथुर भारतीय प्रशासनिक सेवा के उत्कृष्ट अधिकारी रहे। लद्दाख के पहले उपराज्यपाल के तौर पर उन्होंने सीमावर्ती क्षेत्रों में तेज़ विकास, स्थिर शासन और रणनीतिक योजनाओं को दिशा दी। उनकी कार्यशैली प्रभावी निर्णय और प्रशासनिक पारदर्शिता का उदाहरण है। - ये भी पढ़ें –25 नवंबर: के दिनों में दर्ज विश्व और भारत की ऐतिहासिक धरोहर
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- वीरेंद्र हेगड़े (1948)
कर्नाटक के धर्मस्थल में जन्मे वीरेंद्र हेगड़े एक प्रतिष्ठित परोपकारी और धार्मिक-सांस्कृतिक संस्थानों के संरक्षक हैं। शिक्षा, स्वास्थ्य और ग्रामीण विकास के क्षेत्र में उन्होंने अनेक योजनाएँ चला मानव सेवा को नयी परिभाषा दी। समाज सुधार में उनका योगदान प्रेरक है। - रंगनाथ मिश्र (1926)
ओडिशा में जन्मे रंगनाथ मिश्र भारत के 21वें मुख्य न्यायाधीश रहे। उन्होंने न्यायपालिका में पारदर्शिता, मानवाधिकारों की रक्षा और संवैधानिक मूल्यों को मजबूत करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उनकी न्यायिक दृष्टि संतुलन और संवेदनशीलता का प्रतीक है। - रघुनंदन स्वरूप पाठक (1924)
इलाहाबाद में जन्मे R.S. पाठक देश के 18वें मुख्य न्यायाधीश बने। अंतरराष्ट्रीय न्यायालय में भी भारत का प्रतिनिधित्व कर उन्होंने न्यायिक विश्लेषण और वैधानिक कौशल का उत्कृष्ट उदाहरण दिया। उनका योगदान वैश्विक न्यायिक मंच पर भारत की प्रतिष्ठा बढ़ाने वाला रहा। - दीप नारायण सिंह (1894)
बिहार के नालंदा में जन्मे दीप नारायण सिंह राज्य के दूसरे मुख्यमंत्री बने। प्रशासनिक ईमानदारी, ग्रामीण उन्नति और सामाजिक न्याय की उनकी नीतियों ने बिहार के प्रशासनिक ढांचे में सकारात्मक परिवर्तन लाए। वे सादगी और जनहितकारी निर्णयों के लिए प्रसिद्ध रहे। - राधेश्याम कथावाचक (1890)
मथुरा में जन्मे राधेश्याम कथावाचक हिंदी रंगमंच के महत्वपूर्ण स्तंभ थे। पारसी थिएटर शैली को हिंदी कथानकों से जोड़कर उन्होंने नाटक-साहित्य में नया रंग भरा। उनकी रचनाएँ जनभावनाओं, संस्कृति और मनोरंजन का अद्भुत संगम हैं। - टी. एल. वासवानी (1879)
हैदराबाद सिंध में जन्मे टेहलूमल वासवानी प्रसिद्ध दार्शनिक, लेखक और अध्यापक रहे। भारतीय संस्कृति, शांति और मानवसेवा के संदेश को उन्होंने वैश्विक मंच पर फैलाया। उनकी लेखनी और शिक्षाएं आत्मिक उन्नति और नैतिक चेतना का मार्ग दिखाती हैं। - कृष्णजी प्रभाकर खाडिलकर (1872)
रत्नागिरी, महाराष्ट्र में जन्मे खाडिलकर मराठी साहित्य और नाटक विधा के प्रमुख हस्ताक्षर थे। उन्होंने सामाजिक मुद्दों को नाटकों के माध्यम से प्रभावशाली ढंग से प्रस्तुत किया। उनकी लेखनी में लोकभावना, परिवर्तन और राष्ट्रचेतना की गहरी अनुभूति मिलती है।