सिकन्दरपुर बलिया-(राष्ट्र की परम्परा)
क्षेत्र के प्रख्यात वनखण्डी नाथ (श्री नागेश्वर नाथ महादेव) मठ परिसर ड्रहाँ बिहरा (डहाँ) में आयोजित अद्वैत शिवशक्ति राजसूय महायज्ञ के पाँचवें दिन वैदिक यज्ञमण्डप के अन्तर्गत पं० रेवती रमण तिवारी के आचार्यत्व में पूरे दिन वेदमन्त्रों से पूजन अर्चन आरती स्तवन तथा हवनादि कार्य किये गये।
सान्ध्य सत्र श्रद्धालुओं से खचाखच भरे ज्ञानयज्ञ मण्डप में श्रीधाम वृन्दावन से पधारी साध्वी आर्या पण्डित व्यासपीठ से अपने उदबोधन में कहीं कि जिसकी मृत्यु निकट हो उसे क्या करना है श्री शुकदेव स्वामी से राजा परीक्षित द्वारा पूछा गया यही लोक मंगलकारी प्रश्न श्रीमद भागवत का आधार स्तम्भ है। प्रश्न का समाधान शुकदेव जी भक्ति का उपदेश देते हुए कर देते हैं क्योंकि ऋषि द्वारा शापित परीक्षित की आयु मात्र सात दिन अवशेष रह गयी थी।
साध्वी ने (सृष्टि सृजन) की चर्चा में कहा कि अण्डज, पिण्डज, उद्भिज, स्वेदन के बाद मानव की सृष्टि हुई। ब्रह्मा से उत्पन्न मनु – शतरूपा द्वारा सृष्टि का विस्तार हुआ / आगे चलकर उत्तानपाद और सुनीति के पुत्र भगवद्भक्त ध्रुव हुए जिन्हें भगवान की गोद में बैठने का सु-अवसर मिला। सुनीति ने सभी माताओं को शिक्षा दी कि माताएँ चाहें तो स्वयं द्वन्द्व से बचकर समाज और कुटुम्ब को समरस बना सकती हैं। ऐसे ही शंकर द्वारा परित्यक्ता सती भी जन्म-जन्मान्तर में शंकर जी को ही पति रूप में प्राप्त करने की कामना करती हैं जो कि नारी समाज के लिए शिक्षा है। ध्रुव पाँच वर्ष का बालक है तथापि उसमें सत्स्वरूप परमात्मा के प्रति निष्ठा है, उसमें दुर्गुण नाम की कोई चीज नहीं। रावण अहंकारी था, अत: उसका विनाश हुआ। लोहा को आग में तपाते हैं और तब जैसा चाहें वैसा आकार देते हैं। बच्चे भी एक प्रकार से लोहा हैं। ध्रुव को ३६ हजार वर्ष राज्य करने का वर मिला जबकि उसने प्रभु से कुछ भी माँगा नहीं।
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कहा कि हिरण्यकश्यप की पत्नी कयाधु की कोख से जन्मे प्रह्लाद भी अप्रतिम भक्त हुए जिन्होंने तप्त लौह खम्भ से प्रभु को प्रकट किया। प्रहलाद भी ध्रुव के समान अल्पायु में ही परमात्मा की गोद में बैठे भगवान अपनी जीभ से बालभक्त प्रहलाद को चाहते हुए प्रेम कर रहे थे। कथा के अंत में आरती के बाद प्रसाद वितरण का कार्यक्रम प्रारंभ हुआ
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