जीवित्पुत्रिका व्रत पर जयराम धाम मंगराइच में हुआ कथा का आयोजन
सलेमपुर, देवरिया(राष्ट्र की परम्परा)। भारत देश संस्कृति ,सभ्यता ,व्रत ,त्योहार व परंपरा का देश है। यहां कठिन व्रत से लेकर सामान्य रूप में मनाया जाने वाले कई व्रत हैं। जीवित्पुत्रिका व्रत भी उन्हीं कठोर तप का व्रत है जिसे महिलाएं अपने पुत्र के दीर्घायु व स्वस्थ रहने की कामना के साथ करती हैं।उक्त बातें क्षेत्र के मंगराइच में जयराम ब्रम्ह स्थान पर इस अवसर पर आयोजित कथा को श्रद्धालुओं को सुनाते हुए आचार्य अजय शुक्ल ने कहा कि वैसे तो इस व्रत को मनाने के लिए कई पौराणिक कथाओं से लेकर तमाम कथा प्रचलित है लेकिन पूर्वांचल में यह कथा सबसे ज्यादा प्रचलित है एक जंगल में सेमल के वृक्ष पर एक चील रहती थी वहीं झाड़ियों में एक सियारीन रहती थी।दोनों में अच्छी मित्रता थी।एक दिन कुछ महिलाएं आपस मे जितिया व्रत की बात कर रही थीं कि यह व्रत संतान के लंबी उम्र व स्वस्थ रहने के लिए किया जाता है।चील और सियारीन ने भी व्रत किया।चील ने निष्ठा के साथ व्रत किया लेकिन सियारीन ने नही किया।अगले जन्म में चील और सियारीन ने सगी बहन के रूप में जन्म लिया।सियारीन बड़ी बहन बनी उसकी शादी एक राजकुमार से हुआ। चील छोटी बहन बनी उसकी शादी एक मंत्री के बेटे से हुई।शादी के बाद सियारीन कई पुत्र हुए लेकिन सभी जन्म के साथ ही मर जाते थे। चील के बच्चे सुंदर व स्वस्थ होते थे।यह देखकर सियारीन अपनी बहन से जलने लगी। उसने कई बार अपनी बहन के बच्चों को मारने की कोशिश किया, लेकिन हर बार असफल रही। एक दिन सियारीन को अपनी पिछली जिंदगी में जितिया व्रत तोड़ने के गलती का एहसास हुआ।और इसे समझ आया तो व्रत रही।इसके बाद जो पुत्र हुए वह स्वस्थ और दीर्घायु होने लगे। इस कथा के श्रवण करने से बहुत ही उत्तम फल प्राप्त होता है। कथा के दौरान प्रभावती देवी,किरण देवी,रितु तिवारी आदि प्रमुख रूप से उपस्थित रही।
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