नई दिल्ली (राष्ट्र की परम्परा डेस्क)। बदलते सामाजिक ढाँचे और तेज होती जीवनशैली के बीच भारतीय परिवारों में उपेक्षा का भाव तेजी से बढ़ रहा है। संयुक्त परिवारों का टूटना, एकल परिवारों का विस्तार, तकनीक पर बढ़ती निर्भरता और पीढ़ियों के बीच संवाद की कमी ने एक गंभीर सामाजिक समस्या को जन्म दिया है—“बढ़ती उपेक्षा का कारण बदलता परिवार।”
संयुक्त परिवार से एकल परिवार की ओर बदलाव
एक समय में भारतीय समाज की पहचान रहे संयुक्त परिवार अब तेजी से सिमटते जा रहे हैं। युवा पीढ़ी नौकरी, शिक्षा और बेहतर अवसरों की तलाश में बड़े शहरों की ओर जा रही है।
परिणामस्वरूप बुज़ुर्ग माता-पिता, रिश्तेदार और परिवार का व्यापक सामाजिक ताना-बाना धीरे-धीरे कमजोर पड़ रहा है।
विशेषज्ञों का मानना है कि परिवार का यह बदलाव न सिर्फ संबंधों में दूरी बढ़ा रहा है, बल्कि भावनात्मक सहारे की कमी भी पैदा कर रहा है।
आधुनिक जीवनशैली और तकनीक का प्रभाव
तेजी से भागती जिंदगी और डिजिटल दुनिया ने परिवारों के बीच संवाद को सीमित कर दिया है।
• बच्चे मोबाइल, गेम और सोशल मीडिया में अधिक समय बिताते हैं
• कार्यालयी व्यस्तता के कारण माता-पिता के पास परिवार के लिए समय कम होता जा रहा है
• घर में साथ रहकर भी बातचीत का समय घट रहा है
विशेषज्ञ इसे “इमोशनल डिस्कनेक्ट” की स्थिति बताते हैं, जो उपेक्षा की भावना को और गहरा करती है।
पीढ़ियों के बीच बढ़ती दूरियाँ
जहाँ पहले बुज़ुर्गों का अनुभव और मार्गदर्शन परिवार की धुरी माना जाता था, वहीं आज कई युवा पारंपरिक सोच को आधुनिक जीवन का विरोधी मानने लगे हैं।
इस सोच ने संवाद और सम्मान की परंपरा को कमजोर किया है, जिससे दो पीढ़ियों के बीच मानसिक दूरी बढ़ रही है।
सामाजिक रिश्तों पर भी असर
केवल परिवार ही नहीं, समाज के स्तर पर भी इसका प्रभाव स्पष्ट दिख रहा है।
• पड़ोसियों के बीच दूरी
• रिश्तों का औपचारिक होना
• वृद्धाश्रमों की बढ़ती संख्या
• अकेलेपन और मानसिक तनाव की बढ़ती शिकायतें
ये सब संकेत हैं कि बदलता परिवार ढांचा समाज के सामुदायिक ताने-बाने को भी प्रभावित कर रहा है।
समाधान: कैसे कम हो उपेक्षा और दूरी
रिश्तों को बचाने की जरूरत
आधुनिकता के इस दौर में परिवार की परिभाषा बदल रही है, लेकिन उसकी भावनात्मक ज़रूरत वही है।
परिवार केवल एक संरचना नहीं, बल्कि संवेदनाओं, संस्कारों और सामाजिक मूल्यों का केंद्र है।
अगर समय रहते कदम नहीं उठाए गए, तो उपेक्षा और दूरी का यह संकट समाज को और गहरी चुनौतियों की ओर ले जा सकता है।
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