नई दिल्ली/वॉशिंगटन (राष्ट्र की परम्परा डेस्क) अक्सर कहा जाता है “मुंह में राम, बगल में छुरी”, यानी ऊपर से दोस्ताना और भीतर से नुकसान पहुँचाने वाला रवैया। कुछ ऐसा ही रुख अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप का भारत के प्रति दिखाई दे रहा है।
जहाँ एक ओर ट्रंप सोशल मीडिया और मंचों से भारत को “दोस्त” बताते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ मजबूत रिश्तों की बात करते हैं, वहीं दूसरी ओर उनके हालिया कदम भारत के हितों पर चोट करने वाले साबित हो सकते हैं।
यूरोपीय संघ से भारत-चीन पर 100% शुल्क की मांग फाइनेंशियल टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक, ट्रंप ने यूरोपीय संघ (EU) से आग्रह किया है कि वह भारत और चीन से होने वाले आयात पर 100 प्रतिशत तक का शुल्क लगाए। यह कदम रूस पर दबाव बनाने की रणनीति का हिस्सा बताया जा रहा है ताकि यूक्रेन युद्ध को खत्म करने की दिशा में मास्को को मजबूर किया जा सके।
वॉशिंगटन में हुई एक उच्च स्तरीय बैठक के दौरान ट्रंप ने जोर दिया कि रूस पर आर्थिक बोझ बढ़ाने के लिए अमेरिका और यूरोप का साझा और कड़ा रुख अपनाना बेहद जरूरी है।
भारत-चीन पर दबाव की योजना सूत्रों के मुताबिक, अमेरिका इस योजना को तुरंत लागू करने के लिए तैयार है, बशर्ते यूरोपीय साझेदार भी इसमें समान प्रतिबद्धता दिखाएँ। एक वरिष्ठ अमेरिकी अधिकारी ने माना कि यह रणनीति सीधे तौर पर भारत और चीन की रूस से रियायती दर पर तेल खरीदने की नीति को प्रभावित करने का प्रयास है।
अमेरिकी अधिकारियों का मानना है कि नाटकीय टैरिफ लगाकर बीजिंग और नई दिल्ली को मास्को से तेल खरीदने से रोका जा सकता है। इस कदम से रूस पर आर्थिक दबाव और बढ़ेगा क्योंकि उसके पास वैकल्पिक खरीदारों की संख्या बहुत कम है।
बढ़ती हताशा का संकेत विश्लेषकों के अनुसार, यह दंडात्मक व्यापार नीति ट्रंप प्रशासन के भीतर बढ़ती हताशा को भी दर्शाती है। रूस लगातार यूक्रेन के शहरों पर हवाई हमले कर रहा है और कूटनीतिक समाधान की संभावनाएँ बेहद सीमित दिख रही हैं।
भारत के लिए चिंता की बात ट्रंप का यह रुख भारत के लिए चुनौतीपूर्ण हो सकता है। एक ओर वे भारत को अपना “सच्चा मित्र” बताते हैं, वहीं दूसरी ओर रूस से भारत की ऊर्जा खरीद को निशाना बनाने वाली नीतियाँ तैयार कर रहे हैं। इससे साफ है कि ट्रंप की कथनी और करनी में बड़ा अंतर है।
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