देवरिया (राष्ट्र की परम्परा डेस्क)। समाजवादी पार्टी के दिग्गज नेता, विचारक और पूर्व सांसद रहे स्वर्गीय मोहन सिंह की 12वीं पुण्यतिथि पर जिला पंचायत सभागार में भावपूर्ण श्रद्धांजलि सभा का आयोजन हुआ। इस अवसर पर जिले भर से आए सैकड़ों समाजवादी कार्यकर्ताओं ने उनके चित्र पर पुष्प अर्पित कर श्रद्धा सुमन अर्पित किया। कार्यक्रम में नेताओं और कार्यकर्ताओं ने उनके योगदान को याद करते हुए कहा कि वे केवल एक राजनेता नहीं, बल्कि लोकतांत्रिक मूल्यों और सामाजिक न्याय की मजबूत आवाज थे।
श्रद्धांजलि सभा में स्व. मोहन सिंह की बेटी और पूर्व राज्यसभा सदस्य कनकलता सिंह ने कहा कि आज पूर्वांचल के अनेक नेता और कार्यकर्ता उनके स्मृति दिवस पर यहां उपस्थित हुए हैं, यह इस बात का प्रमाण है कि उन्होंने राजनीति में अपने सिद्धांतों और संघर्ष के बल पर लोगों के दिलों में गहरी जगह बनाई। उन्होंने कहा कि उनके पिता ने कभी पद और सत्ता के लिए समझौता नहीं किया बल्कि समाज और गरीबों की आवाज को संसद तक पहुंचाया।
इस अवसर पर समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय सचिव सुभाष श्रीवास्तव ने कहा कि आज जिस तरह से देश की संवैधानिक संस्थाओं की गरिमा खतरे में है, उसे देखकर मोहन सिंह जी का संघर्ष और भी प्रासंगिक हो जाता है। उन्होंने कहा कि लोकतंत्र की रक्षा करना और संवैधानिक संस्थाओं की स्वतंत्रता बनाए रखना ही स्वर्गीय मोहन सिंह को सच्ची श्रद्धांजलि होगी। श्रीवास्तव ने कहा, “मोहन सिंह जी ने जीवन भर लोकतांत्रिक मूल्यों की रक्षा के लिए संघर्ष किया। आज जरूरत है कि हम उनके विचारों और संघर्ष को आत्मसात करें और लोकतंत्र की रक्षा के लिए एकजुट हों।”
मोहन सिंह का राजनीतिक सफर
स्वर्गीय मोहन सिंह का जन्म जिले में हुआ और उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा से ही छात्र राजनीति में सक्रिय भूमिका निभाई। वे समाजवादी विचारधारा से गहराई से प्रभावित थे। आपातकाल के दौरान इंदिरा गांधी सरकार के खिलाफ सक्रिय रहते हुए उन्होंने जेल यातना भी सही, लेकिन अपने सिद्धांतों से पीछे नहीं हटे।
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मोहन सिंह तीन बार लोकसभा सदस्य रहे और राज्यसभा में भी उन्होंने समाजवादी पार्टी का प्रतिनिधित्व किया। वे राममनोहर लोहिया और जनेश्वर मिश्र की विचारधारा को अपने जीवन में उतारने वाले नेताओं में गिने जाते थे। संसद में रहते हुए उन्होंने किसानों, मजदूरों और वंचित तबके की आवाज को बुलंद किया। सादगी और ईमानदारी उनकी पहचान रही। वे प्रदेश और देश की राजनीति में समाजवादी आंदोलन की धड़कन कहे जाते थे।
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मोहन सिंह न सिर्फ राजनीति में, बल्कि बौद्धिक विमर्श में भी अपनी गहरी छाप छोड़ गए। उनकी वाकपटुता और स्पष्टवादी छवि के कारण विपक्ष और सत्ता पक्ष दोनों में उनका सम्मान था। यही कारण है कि उनकी मृत्यु के बाद भी वे आज लोगों की स्मृतियों में जिंदा हैं।
लोकतंत्र की रक्षा का संदेश
पुण्यतिथि कार्यक्रम में शामिल नेताओं ने एक स्वर से कहा कि आज जब लोकतांत्रिक संस्थाओं की स्वतंत्रता पर सवाल खड़े हो रहे हैं, तब मोहन सिंह का संघर्ष और उनके विचार और भी जरूरी हो जाते हैं। कार्यक्रम का समापन उनके विचारों को आत्मसात करने और लोकतंत्र की रक्षा की शपथ के साथ हुआ।
स्वर्गीय मोहन सिंह का जीवन संघर्ष, सादगी और मूल्यों की राजनीति का प्रतीक था। शायद इसी कारण आज उनकी पुण्यतिथि पर यह संदेश गूंजा कि लोकतांत्रिक संस्थाओं की रक्षा के लिए निरंतर संघर्ष ही उन्हें सच्ची श्रद्धांजलि होगी।
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