मधुबनी (राष्ट्र की परम्परा डेस्क) नेपाल में चल रहे आंदोलन का असर भारत-नेपाल सीमा पर आमजन की जिंदगी पर साफ झलक रहा है। शादी के 40 साल बाद मायके जाने निकली लक्ष्मी देवी का चेहरा मायूसी से भरा हुआ है। दिल्ली से चलीं और वाराणसी तक सबकुछ सामान्य रहा, लेकिन जैसे ही जयनगर पहुंचीं, उन्हें नेपाल की स्थिति का अंदाजा हुआ। लक्ष्मी देवी को काठमांडू जाना था। उन्होंने बताया कि शादी के बाद अब तक मायके जाने का मौका नहीं मिल पाया था। इस बार दीपावली पर घरवालों ने जिद की तो वह आ गईं, लेकिन हालात ने उनका रास्ता रोक दिया।
लक्ष्मी देवी के साथ सफर कर रही सिंधुली की उमा कुमारी भी परेशान हैं। उन्होंने कहा कि “हम लोगों को ट्रेन में कुछ जानकारी नहीं मिली। अब जब बॉर्डर तक पहुंचे तो हालात बिगड़े हुए देखे। एसएसबी ने जरूरी कागजात देखकर तो छोड़ दिया, लेकिन आगे का सफर कैसे होगा, यह कहना मुश्किल है। अब जो होगा, उसका सामना करना ही पड़ेगा।”
इसी तरह नेपाल के गमहरिया गांव के बिंदे ठाकुर भी अपने बीमार संबंधी से मिलने भारत के लदनियां आए हैं। वे कहते हैं, “रिश्तेदार की हालत गंभीर है। चाहे पैदल जाना पड़े या किसी भी साधन से, हमें जाना ही है।”
नेपाल के सिरहा जिले के खटौका मारर स्थित भंसार कार्यालय आंदोलन के दिन से बंद कर दिया गया है। इस वजह से गाड़ियों की आवाजाही पूरी तरह ठप है। स्थानीय लोगों को पहचान पत्र दिखाने पर थोड़ी छूट दी जा रही है, लेकिन लंबी दूरी तय करने वालों के लिए यह सुविधा नाकाफी साबित हो रही है।
मारर बॉर्डर पर तामिलनाडु से सीमेंट लेकर नेपाल जा रहे ट्रक ड्राइवर अर्जुन यादव पिछले कई दिनों से फंसे हुए हैं। उनका कहना है, “हम परमिट की प्रक्रिया में उलझे थे और तभी बॉर्डर बंद हो गया। अब नहीं जानते कि कितने दिन तक यहीं अटके रहेंगे। ऊपर से डर भी है कि कहीं असुरक्षित न हो जाएं।”
सीमा पर यही हाल है—कोई बीमार मां से मिलने निकल पड़ा है।कोई पति-पत्नी के मिलन की आस लगाए बैठा है।कोई पिता अपने बेटे-बेटी को गले लगाने की उम्मीद में है।तो कोई सालों की कमाई से घर बनाने के सपने के साथ जरूरी सामान लेकर फंसा हुआ है।
नेपाल में जारी अस्थिरता और सीमा बंदी के बीच इन आमजन की परेशानी साफ झलक रही है। सवाल यही है कि रिश्तों और सपनों के बीच अटका यह सफर आखिर कब अपने मुकाम तक पहुंचेगा।
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