(कन्हैया कुमार यादव की कलम)
बघौचघाट, देवरिया (राष्ट्र की परम्परा) संघर्ष और कुर्बानी की याद में मनाया जाने वाला मुहर्रम पर्व को लेकर क्षेत्र में तैयारियां जोरों पर हैं। मुहर्रम इस्लामी कैलेंडर का पहला महीना है और इसे शोक के रूप में मनाया जाता है। इस दौरान कर्बला में हजरत इमाम हुसैन की शहादत की याद में ताजिए बनाए जाते हैं।
क्षेत्र में ताजियेदार व कारीगर पारंपरिक शैली में बांस, कागज, रंगीन कपड़े और सजावटी सामग्री का उपयोग करते हुए ताजिया निर्माण में जुटे हैं। ताजियों को आकर्षक और भव्य स्वरूप देने के लिए महीनों से तैयारी की जा रही है।
मुहर्रम के अवसर पर निकलने वाले ताजिया जुलूसों की तैयारियां भी पूरी गति पर हैं। इन जुलूसों में ढाक-ताशे की गूंज, लाठी-डंडे का खेल, और जगह-जगह आयोजित होने वाले मेले जैसे माहौल से पूरा क्षेत्र गूंज उठता है। इन जुलूसों में मुस्लिम समुदाय के साथ ही हिंदू समाज के लोग भी सहभागिता करते हैं, जो गंगा-जमुनी तहजीब की मिसाल पेश करता है।
महिलाएं, बच्चे और युवा नए परिधान पहनकर इन आयोजनों में बढ़-चढ़कर हिस्सा लेते हैं।
इस अवसर पर मौलाना बदरुद्दीन सिद्दीकी ने बताया कि “मुहर्रम केवल शोक नहीं, बल्कि हजरत इमाम हुसैन की उस बलिदान गाथा का प्रतीक है, जिसमें उन्होंने सत्य और धर्म के लिए अपने प्राणों की आहुति दी। उन्होंने दीन-ए-इस्लाम को जिंदा रखने के लिए अपना सब कुछ कुर्बान कर दिया।”
मुहर्रम का यह पर्व समाज को बलिदान, सच्चाई और इंसानियत की राह पर चलने की प्रेरणा देता है। क्षेत्र में अमन-चैन और भाईचारे के बीच यह आयोजन श्रद्धा और सम्मान के साथ संपन्न होने की उम्मीद है।
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