वक्ताओं ने संविधान के विभिन्न विषयों पर चर्चा की
गोण्डा (राष्ट्र की परम्परा)। भारत के संविधान में विहित मूल कर्तव्य का पहला बिंदु संविधान के प्रचार-प्रसार पर आधारित है, जब तक संविधान की पहुंच हर नागरिक तक नहीं होगी। प्राथमिक कक्षाओं से लेकर उच्च कक्षा तक संविधान को पढ़ाया जाना जरूरी है। ये बातें पूर्व प्रधान मुख्य आयकर आयुक्त गिरीश नारायण पांडेय ने ‘संविधान कथा : प्रणयन, प्रयोग और आवश्यकताएं’ विषयक संगोष्ठी में मुख्य वक्ता के रूप में कही। संविधान दिवस पर उन्होंने कहा कि विचार में अद्भुत शक्ति है, देश को सच्चे अर्थों में लोकतंत्रात्मक गणराज्य बनाने के लिए मूल अधिकार, मूल कर्तव्य, नीति निर्देशक तत्त्वों का जन-जन तक प्रसार आवश्यक है। उन्होंने कहा कि लोकनीति से राजनीति को नियंत्रित किया जाना जरूरी है। कई कथाओं का जिक्र करते साधारण जन की महत्ता को रेखांकित किया।
विशिष्ट अतिथि सीडीओ गौरव कुमार ने संविधान की उद्देशिका के मर्म को विद्यार्थियों से साझा किया। कहा कि भारत का संविधान कई मायने में अप्रतिम है। वह प्रत्येक नागरिक के प्रति सामाजिक-आर्थिक न्याय की प्रतिबद्धता से जुड़ा हुआ है।
महाविद्यालय के प्राचार्य प्रो० रवीन्द्र कुमार ने अतिथियों का स्वागत किया। शोध केंद्र के प्रभारी एवं संगोष्ठी के संयोजक प्रो. शैलेंद्र नाथ मिश्र ने कहा कि ‘हर हाथ में संविधान’ हमारा नारा होना चाहिए। संविधान ने हमें अपूर्व शक्ति दी है। स्वतंत्रता प्राप्ति के उपरांत तमाम तरह की जाति, भाषा, लिंग, भूगोल आदि भेदक सीमाओं से ऊपर उठाकर हमें नागरिक बनाया है। दुखद यह है कि संविधान के इस महत्वपूर्ण देन को हम अधिकांश भारतीय आत्मसात नहीं कर सके हैं। प्रो. मिश्र ने भारत के मूल हस्तलिखित सचित्र संविधान को सभी नागरिकों को प्रदान करने के लिए उच्च न्यायालय में याचिका भी दायर कर रखा है। अपनी नवोन्मेषी विचार शक्ति के परिणाम स्वरूप प्रो. शैलेन्द्र नाथ मिश्र ने महाविद्यालय में संविधान स्थल का निर्माण करवाकर विद्यार्थियों और जिले के नागरिकों लिए यह संविधान दर्शनीय और सेल्फी प्वाइंट के रूप में स्मारक बना दिया है। कार्यक्रम के अंत में महाविद्यालय प्रबंध समिति की उपाध्यक्ष वर्षा सिंह ने मुख्य वक्ता गिरीश नारायण पांडे सहित व अतिथियों एवं विद्यार्थियों के प्रति धन्यवाद ज्ञापित किया। पूर्व प्राचार्य प्रो.वंदना सारस्वत, प्रो. संजय पांडेय, डॉ. रंजन शर्मा, डॉ. ममता शर्मा, डॉ. ममता शुक्ला आदि शिक्षकों के अलावा परियोजना निदेशक एवं उपायुक्त, स्वरोजगार भी रहे। संगोष्ठी समिति के सदस्यों में प्रो० रामसमुझ सिंह, प्रो. मंशाराम वर्मा, प्रो. जयशंकर तिवारी, डॉ पुष्यमित्र, संतोष कुमार श्रीवास्तव, मनीष शर्मा ने सक्रिय सहयोग किया।
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