महराजगंज(राष्ट्र की परम्परा)। धान की कटाई का सीजन शुरू होते ही पराली की समस्या एक बार फिर किसानों की चिंता को बढ़ाने लगी है। इस बार परेशानी केवल पराली जलाने के विकल्पों की कमी तक सीमित नहीं है, बल्कि धान की जड़ें खेत में लगभग छह से आठ इंच तक बनी रह जा रही हैं, जिससे अगली फसल की तैयारी और भी कठिन हो गई है। हार्वेस्टर मशीनों की कटिंग ऊंचाई बढ़ने से यह समस्या और गहरी होती जा रही है।
कटाई अधूरी जड़ें पूरी—समस्या दोगुनी किसान बताते हैं कि जहां पहले हार्वेस्टर लगभग जड़ तक कटाई कर देता था, वहीं अब मशीनें ऊपर की ओर काट रही हैं। इससे खेत में बचे ठूंठ इतने बड़े हैं कि हल, रोटावेटर, कल्टीवेटर समेत कोई भी उपकरण उन्हें आसानी से गला नहीं पा रहा। ऐसे में अगली फसल—विशेषकर आलू, मटर और गेहूं—की बुवाई समय से कर पाना मुश्किल होता जा रहा है। देरी से बोवाई सीधे उपज पर असर डालती है। पराली जलाने की मजबूरी बढ़ी
सरकार द्वारा पराली न जलाने के कड़े निर्देश और जुर्माने के बावजूद किसानों के सामने विकल्प सीमित हैं। खेत में बची लंबी जड़ें और भारी मात्रा में पराली को निपटाने के लिए कम्पोस्ट बनाने की व्यवस्था नहीं सरकारी मशीनें सीमित और कई जगह समय पर उपलब्ध नहीं
इन सब कारणों से किसान पराली जलाने को मजबूर हो रहे हैं, जिससे पर्यावरण और प्रदूषण की समस्या भी बढ़ती जा रही है किसान की पीड़ा: ऐसे कैसे होगी खेती किसानों का कहना है कि बढ़ती लागत, महंगे डीज़ल और मशीनों के किराए के बीच अगर कटाई सही से न हो, तो उनकी मेहनत और भविष्य दोनों दांव पर लग जाते हैं।
एक किसान ने कहा—कटाई ऊपर- ऊपर हो रही है, पराली ज्यादा बच रही है, जमीन में ठूंठ खड़े हैं… ऐसे कैसे चलेगी खेती?
समाधान कहां?
हार्वेस्टर की कटिंग हाइट का मानकीकरण।
सरकारी स्तर पर स्ट्रॉ मैनेजमेंट मशीनों की उपलब्धता बढ़ें।
पराली प्रबंधन के लिए सब्सिडी वाले उपकरण हर गांव तक पहुंचे।
जैविक अपघटन के उपयोग पर प्रशिक्षण और जागरूकता
अगली फसल दांव पर ,धान की कटाई में हो रही तकनीकी गड़बड़ियां केवल एक मौसमी समस्या नहीं, बल्कि खेती के पूरे चक्र को प्रभावित करने वाला संकट बन चुकी हैं। अगर जड़ों की कटाई में सुधार और पराली प्रबंधन के ठोस उपाय नहीं हुए, तो किसान का संकट बढ़ता जाएगा और कृषि उत्पादन पर सीधा असर पड़ेगा।
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