गोरखपुर (राष्ट्र की परम्परा)। दीनदयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्विद्यालय, गोरखपुर के शिक्षाशास्त्र विभाग में 43वें दीक्षांत समारोह सप्ताह के अंतर्गत “शिक्षा में नवाचार एवं नवीन अनुसंधान प्रवृत्तिया” विषय पर व्याख्यान संपन्न हुआ।
कार्यक्रम की शुरूआत सरस्वती पूजन, सरस्वती वंदना और कुलगीत के साथ हुई। तत्पश्चात शिक्षा संकाय के अध्यक्ष एवं अधिष्ठाता प्रो.राजेश कुमार सिंह ने मुख्य वक्ता को पुष्प गुच्छ, स्मृति चिन्ह एवं अंगवस्त्र प्रदान कर स्वागत, अभिनन्दन और छात्रो से औपचारिक रूप से परिचय करवाया।
इस अवसर पर विश्वविद्यालय की कुलपति एवं कार्यक्रम की संरक्षक प्रो. पूनम टंडन का भी शुभआशीष प्राप्त हुआ।
मुख्य वक्ता प्रो. गोपाल नायक (पूर्व अध्यक्ष एवं अधिष्ठाता, शिक्षाशास्त्र विभाग, महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ, वाराणसी) ने कहा कि किसी भी समस्या का अर्थपूर्ण एव क्रमबद्ध अध्ययन ही शोध है। शिक्षा, शोध एवं नवाचार के पारस्परिक संबंध को विभिन्न उदाहरणो के साथ समझाया।
शिक्षा का मुख्य उद्देश्य तभी प्राप्त किया जा सकता है जब मानव व्यवहार के तीनो पक्षो (संज्ञानात्मक, संवेगात्मक एवं क्रियात्मक) का उचित विधियो से विकास किया जाये।
उन्होंने शोध के सम्प्रत्य की विस्तृत व्याख्या की एवं उसके विभिन्न सोपानो को विस्तार पूर्वक समझाया साथ में नवाचार की आवश्यकता पर जोर दिया।
शोध की प्रकृति को समझाने के लिए अपने अनुभवों का प्रयोग किया।
किसी भी शोध में पूर्वाग्रह रहित शोध प्रक्रिया, व्यवहारिक परिस्थिति में ज्ञान की प्रायोज्ता, आवश्यकता की अनुभूति, शोध समस्या पर एवं प्रक्रिया में अन्तर्दृष्टि तथा पूर्व में किये गये शोध का ज्ञान जैसे महत्वपूर्ण चरणो का उल्लेख किया।
कार्यक्रम की अध्यक्षता शिक्षा संकाय के अध्यक्ष एवं अधिष्ठाता प्रो. राजेश कुमार सिंह, संचालन डॉ. राजेश कुमार सिंह व आभार ज्ञापन प्रो. उदय सिंह ने किया।
कार्यक्रम संयोजक प्रो. सुषमा पाण्डेय व मंच व्यवस्था डॉ. लक्ष्मी जायसवाल एवं श्री मती ज्योति बाला ने किया।
कार्यक्रम में डॉ. मीतू सिंह, डॉ. दुर्गेश पाल, डॉ. अनुपम सिंह, डॉ. मुकेश कुमार सिंह एवं डॉ. अर्जुन सोनकर सहित विभाग के 200 से अधिक शोध छात्र, एमएड, बीएड, एमए के सभी छात्र कार्यक्रम में बढ़ चढ़ कर प्रतिभाग किया।
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