सिकंदरपुर/बलिया (राष्ट्र की परम्परा)। सिकंदरपुर क्षेत्र में पर्याप्त रोज़गार के अवसर न होने के कारण लगातार पलायन की समस्या गंभीर होती जा रही है। हालात यह हैं कि पढ़े-लिखे और हुनरमंद युवा मजबूरी में अपने गांव, परिवार और सामाजिक जड़ों को छोड़कर दिल्ली, मुंबई, सूरत जैसे महानगरों की ओर पलायन कर रहे हैं।
ग्रामीण इलाकों में अब अधिकांशतः बुजुर्ग, महिलाएं और बच्चे ही रह गए हैं, जबकि क्षेत्र की युवा शक्ति रोज़गार की तलाश में बाहर भटकने को मजबूर है। स्थानीय लोगों का कहना है कि यदि सिकंदरपुर में उद्योग-धंधे, लघु एवं कुटीर उद्योग, स्वरोज़गार योजनाएं और कौशल प्रशिक्षण केंद्र पर्याप्त संख्या में होते, तो युवाओं को पलायन नहीं करना पड़ता।
क्षेत्र में न तो कोई बड़ा उद्योग स्थापित हो सका है और न ही छोटे उद्यमों को बढ़ावा देने के लिए ठोस नीति दिखाई देती है। इसका नतीजा यह है कि हर वर्ष सैकड़ों युवा रोज़गार की तलाश में अपने घर-परिवार से दूर जा रहे हैं।
ग्रामीणों के अनुसार, पलायन का सीधा असर सामाजिक और पारिवारिक ढांचे पर भी पड़ रहा है। युवाओं के बाहर होने से खेती, पशुपालन और स्थानीय व्यवसाय प्रभावित हो रहे हैं। बुजुर्गों को सहारे की कमी महसूस हो रही है, वहीं बच्चों की परवरिश और शिक्षा पर भी नकारात्मक प्रभाव पड़ रहा है।
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युवाओं का सवाल है कि क्या उन्हें अपने ही क्षेत्र में सम्मानजनक रोज़गार नहीं मिलना चाहिए? कब तक सिकंदरपुर केवल श्रम देने वाला क्षेत्र बना रहेगा और कब यहां रोज़गार देने वाले उद्योग स्थापित होंगे?
स्थानीय बुद्धिजीवियों और सामाजिक संगठनों ने सरकार एवं जनप्रतिनिधियों से मांग की है कि सिकंदरपुर में औद्योगिक इकाइयों की स्थापना, कौशल विकास केंद्रों की शुरुआत और स्वरोज़गार योजनाओं के प्रभावी क्रियान्वयन के लिए ठोस नीति बनाई जाए।
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यदि समय रहते रोज़गार सृजन की दिशा में ठोस कदम नहीं उठाए गए, तो आने वाले वर्षों में सिकंदरपुर से पलायन और तेज़ होगा, जिसका खामियाजा पूरे क्षेत्र को सामाजिक और आर्थिक रूप से भुगतना पड़ेगा।
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