14 सितम्बर को रखा जाएगा जीवित्पुत्रिका व्रत 15 को होगा पारण
सलेमपुर, देवरिया(राष्ट्र की परम्परा)। सनातन धर्म व संस्कृति का प्रमुख पर्व जीवित्पुत्रिका व्रत आश्विन मास के कृष्ण पक्ष के अष्टमी तिथि को पुत्र के दीर्घायु स्वास्थ्य और समृद्धि के लिए मनाया जाने वाला पर्व है। इस दिन महिलाएं निर्जला व्रत रहती है। उक्त बातें बताते हुए जयराम ब्रम्ह स्थान के आचार्य अजय शुक्ल ने कहा कि इस बार इस व्रत की शुरुआत 13 सितम्बर को नहाय खाय के साथ होगी 14 सितम्बर को पूरे दिन महिलाएं निर्जला व्रत रखेंगी उसके पश्चात 15 को पारण
करने के साथ व्रत का समापन होगा। इस व्रत को मनाने के लिए कई कथा प्रचलित है लेकिन धार्मिक ग्रन्थों के अनुसार जीमूतवाहन नामक राजा ने एक स्त्री के पुत्र को बचाने के लिए स्वयं को गरुड़ देव के भोजन के लिए प्रस्तुत कर किया।उनके निःस्वार्थ भावना को देखकर गरुड़ प्रसन्न हो गए और उन्हें बैकुंठ धाम जाने का आशीर्वाद दिया।तभी से यह परंपरा प्रारंभ हुई कि माताएं अपने बच्चों के दीर्घायु जीवन के लिए जीमूतवाहन देवता की आराधना करते हुए उपवास रखती हैं। इसके अलावा महाभारत काल में गुरु द्रोणाचार्य के मृत्यु से आक्रोशित उनके पुत्र अश्वत्थामा ने उत्तरा के गर्भ में पल रहे शिशु को ब्रम्हास्त्र चलाकर नष्ट कर दिया ,जिसे भगवान श्रीकृष्ण ने अपने दिव्य शक्ति से पुनः जीवित कर दिया और उनका नाम जीवित्पुत्रिका रखा।यह व्रत बहुत ही कठिन व्रत होता है व्रत के दिन निर्जला रहने के बाद अगले दिन देर तक महिलाएं पारण करती हैं जिसके कारण मान्यता है कि उनका पुत्र दीर्घायु होगा।
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