मऊ(राष्ट्र की परम्परा)
ग़म के महीया यानी मोहर्रम का आगाज़ हो गया है। मोहर्रम का सिलसिला लगातार दो महीने 8 दिन तक जारी रहेगा। पहली मोहर्रम से लेकर 10 मोहर्रम यानी यौमे आशूरा तक मजलिस मातम के और रिवायती अंदाज में जुलूस भी निकाले जाएंगे जिसकी तमाम तैयारियां मुकम्मल कर ली गई हैं। मलिक टोला इमामबाड़ा मे दुसरी मजलिस का आयोजन हुआ जिसकों मौलाना नसीमुल हसन साहब ने पढा, मौलाना ने बताया कि दो मुहर्रम को इमाम हुसैन का मदिने से कर्बला का सफ़र तमाम हुआ है। दरिया ए फुरात के कीनारे काफिला रूक गया। इमाम हुसैन अ. ने सात घोडे बदले लेकिन किसी ने कदम न उठाया। इमाम हुसैन ने अपने लश्कर को देखा भाईया अब्बास मंजिल आ गयी।
बढने का किसी और जगह हुक्म नहीं है।
वादा था जहाँ का ये वही पांक जमी है। सवारिया वही क़र्बला में ठहरा दी गयी।
तक़रीर के फौरन बाद अंजुमन बाबुल इल्म जाफरिया ने नौहख्वानी व सीनाजनी पेश की। जिसमे मुख़्य रूप से ताजियेदार व मोहतवल्ली सैयद अली अंसर, मंसूर आज़म, शुजात अली आयान आमान, फैजी, जावेद, परवेज, रेहान, फरहांन, तामिर खान, वसीम खान, इब्राहीम, जहीर खान आदि लोग मौजूद रहें।
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