जीवों के प्रति दया व कृतज्ञ भाव,
धार्मिक प्रवृत्ति सज्जनता दिखाती है,
माया और कृतघ्नता में लिप्त भावना
नरक में पहुँचाने का कारण होती है।
जिंदगी को एक खेल की तरह जीना,
रोज नए तरीके से खेलना सीखना,
खिलाड़ी वही कुशल दमदार होता है,
जो अपने दाँव से विजयी होता है ।
अगर स्वाद भुला दिया जाय तो
शरीर स्वस्थ एवं निरोग रहता है,
निरर्थक विवाद व चिंता भूल जायँ
तो जीवन सम्बंध स्थिर रहता है।
अपने जुनून व ललक मे जीते जीते
बिताया है अब तक की यह ज़िंदगी,
दुनिया का कायदा जब देखा तब,
बिखरती देखी हर पल हमारी ख़ुशी।
रिश्ते निभाते निभाते हम दिल से
बहुत ही दूर तक चलते चले गए,
फायदा, नुक़सान देखे बिना ही,
कि कितनी आसान रही ज़िंदगी।
ठीक किताब के उस पन्ने की तरह हूँ,
कि किताब कितनी ही पुरानी हो जाए,
जब याद आये, किताब खोल लेना,
उसमें लिखा हर शब्द वही है मिलना।
आदित्य जैसा था, आज वैसा ही हूँ,
यही कमजोरी है दिल की सुनता हूँ,
मित्र भलाई में दिमाग़ नहीं लगाता हूँ,
दिल कहे उनके लिये वही करता हूँ।
•कर्नल आदि शंकर मिश्र ‘आदित्य’
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