“जो इंसान से प्यार न कर सका, उसका ईश्वर से प्रेम अधूरा है”
गणेश दत्त द्विवेदी
🌿 प्रस्तावना : प्रेम का मूल आधार — मानवता
“क्या करेगा वो प्यार वो भगवान से,
क्या करेगा प्यार वो ईमान से,
जन्म लेकर गोद में इंसान की,
कर न पाया वो प्यार इंसान से…”
यह पंक्तियाँ हमारे समाज की सबसे बड़ी विडंबना को उजागर करती हैं। हम मंदिर-मस्जिद में सिर झुकाते हैं, पूजा-पाठ करते हैं, ईश्वर के नाम पर व्रत रखते हैं, परंतु अक्सर उस ईश्वर की सबसे सुंदर रचना—इंसान—से ही प्रेम करना भूल जाते हैं। धर्म, जाति, भाषा और सीमाओं की दीवारों ने मानवता को बाँट दिया है। जबकि सच्चे अर्थों में ईश्वर की आराधना तभी पूर्ण होती है जब इंसान, इंसान से प्रेम करे।
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🌼 इंसानियत ही ईश्वर तक पहुँचने का सेतु
हर धर्म का सार एक ही है — प्रेम और करुणा।
भगवान, अल्लाह, ईसा या वाहेगुरु — सभी ने एक ही संदेश दिया है कि इंसान को इंसान से प्रेम करना चाहिए।
भगवद्गीता में श्रीकृष्ण कहते हैं —
“जो सब प्राणियों में समान दृष्टि रखता है, वही मेरा भक्त है।”
कुरआन शरीफ़ कहती है —
“जो किसी निर्दोष की जान बचाता है, वह मानो पूरी मानवता को बचाता है।”
ईसा मसीह ने कहा था —
“अपने पड़ोसी से वैसे ही प्रेम करो जैसे अपने आप से करते हो।”
इन संदेशों से स्पष्ट है कि ईश्वर तक पहुँचने का मार्ग मानवता से होकर ही गुजरता है। जो व्यक्ति दूसरों के दुख में साथ नहीं देता, जो जरूरतमंदों की मदद नहीं करता, वह कितना भी बड़ा भक्त क्यों न हो, उसकी भक्ति अधूरी ही कहलाएगी।
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🌺 पूजा नहीं, सेवा ही सच्चा धर्म
आज हम देखते हैं कि लोग मंदिरों में लाखों का दान करते हैं, पर एक भूखे को रोटी नहीं खिलाते।
कई लोग रोज़ाना धार्मिक प्रवचन सुनते हैं, किंतु सड़क किनारे पड़े घायल व्यक्ति को देखकर अनदेखा कर देते हैं।
ऐसी भक्ति केवल रूपकात्मक धर्मनिष्ठा है, जिसका समाज पर कोई वास्तविक प्रभाव नहीं पड़ता।
स्वामी विवेकानंद ने कहा था —
“यदि तुम अपने पास बैठे गरीब की सेवा नहीं कर सकते, तो तुम्हारी मंदिर की पूजा व्यर्थ है।”
इसी तरह महात्मा गांधी ने कहा —
“ईश्वर की सेवा करने का सबसे उत्तम तरीका है — उसके बंदों की सेवा।”
सेवा, प्रेम और दया ही धर्म का सार है। अगर हम दूसरों के प्रति करुणा, सहानुभूति और सम्मान नहीं रखते, तो भगवान से की गई प्रार्थनाएँ केवल औपचारिकता बनकर रह जाती हैं।
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🌻 इंसान से दूरी — आस्था की खोखली दीवार
आज का समाज दिखावटी आस्था में उलझा हुआ है। लोग धर्म के नाम पर झगड़ते हैं, लेकिन इंसानियत को भूल चुके हैं।
धर्म का असली उद्देश्य हमें जोड़ना था, परंतु हमने उसे विभाजन का औज़ार बना लिया।
अगर कोई व्यक्ति यह सोचता है कि वह केवल पूजा-पाठ से ईश्वर को पा लेगा, तो यह भ्रम है।
ईश्वर को पाने के लिए पहले इंसान का दिल जीतना पड़ता है।
वो दिल जो करुणा, क्षमा और प्रेम से भरा हो — वही सच्चे अर्थों में ईश्वर का मंदिर है।
🌸 ईश्वर का रास्ता इंसान से होकर जाता है
कवि की पंक्तियाँ हमें झकझोरती हैं कि ईश्वर का प्रेम तभी सार्थक है जब उसमें मानवता की महक हो।
अगर कोई व्यक्ति अपने पड़ोसी, अपने समाज या अपने देशवासियों से ही नफरत करता है, तो वह भगवान से प्रेम करने का दावा कैसे कर सकता है?
सच्चा भक्त वही है जो हर व्यक्ति में ईश्वर का अंश देखता है, चाहे वह किसी भी धर्म, जाति या वर्ग का क्यों न हो।
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इसलिए आइए, इस संदेश को जीवन में उतारें —
👉 पहले इंसान से प्रेम करें,
👉 फिर ईश्वर से संवाद करें।
क्योंकि जब हम एक भूखे को रोटी खिलाते हैं, एक दुखी को सांत्वना देते हैं, एक बच्चे को शिक्षा देते हैं —
तब हम वास्तव में ईश्वर की पूजा कर रहे होते हैं।
🕊️“मंदिर-मस्जिद गिरजे में मत ढूंढो उसे,
वो तो हर इंसान के दिल में बसता है।
जो इंसान से प्यार नहीं कर सका,
वो भगवान से क्या प्रेम करेगा?”
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