दक्षिणपंथी गठबंधन के साथ नई राजनीतिक दिशा की शुरुआत
टोक्यो (राष्ट्र की परम्परा डेस्क) जापान ने मंगलवार को अपने राजनीतिक इतिहास में एक नया अध्याय लिखा जब संसद ने साने ताकाइची को देश की पहली महिला प्रधानमंत्री के रूप में चुना। 64 वर्षीय ताकाइची ने शिगेरु इशिबा की जगह ली है, जिन्होंने लगातार दो चुनावी पराजयों के बाद इस्तीफा दे दिया था।
यह बदलाव ऐसे समय में हुआ है जब जापान की सत्तारूढ़ लिबरल डेमोक्रेटिक पार्टी (एलडीपी) ने दक्षिणपंथी विचारधारा वाली जापान इनोवेशन पार्टी (JIP) के साथ एक अप्रत्याशित गठबंधन कर राजनीतिक स्थिरता की नई उम्मीद जगाई है।
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एलडीपी और JIP के बीच हुए इस समझौते के तुरंत बाद ताकाइची को प्रधानमंत्री चुना गया। यह गठबंधन न केवल जापान की सत्ता के समीकरण बदलने वाला साबित हुआ है, बल्कि इससे सरकार के और अधिक राष्ट्रवादी और सुरक्षा-केंद्रित होने के संकेत भी मिले हैं।
शिगेरु इशिबा के इस्तीफे के साथ पिछले तीन महीनों से जारी राजनीतिक गतिरोध समाप्त हो गया है, जिससे ताकाइची के लिए सत्ता का रास्ता खुल गया।
गठबंधन पर हस्ताक्षर करते हुए ताकाइची ने कहा “राजनीतिक स्थिरता इस समय जापान की सबसे बड़ी आवश्यकता है। बिना स्थिरता के न तो अर्थव्यवस्था मजबूत हो सकती है और न ही हमारी कूटनीति।”
एलडीपी और JIP का यह गठबंधन जापान की दशकों पुरानी राजनीतिक परंपराओं से अलग दिशा में उठाया गया कदम माना जा रहा है। इस समझौते ने एलडीपी और उसके लंबे समय के सहयोगी कोमेइतो पार्टी के बीच चली आ रही साझेदारी को भी समाप्त कर दिया। कोमेइतो का झुकाव अपेक्षाकृत शांतिवादी और मध्यमार्गी नीतियों की ओर था, लेकिन ताकाइची की पार्टी अब एक अधिक राष्ट्रवादी नीति को प्राथमिकता देती दिख रही है।
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एलडीपी के भीतर ताकाइची को पूर्व प्रधानमंत्री शिंजो आबे की करीबी सहयोगी माना जाता है। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि वह आबे की नीतियों को आगे बढ़ाते हुए जापान की रक्षा क्षमता को सशक्त करेंगी, अर्थव्यवस्था को गति देने और संविधान में सेना की भूमिका को विस्तार देने की दिशा में काम करेंगी। हालांकि, संसद में सीमित बहुमत और घटते जन समर्थन के कारण उनकी राह आसान नहीं होगी।
अपनी विचारधारा के कारण ताकाइची लंबे समय से विवादों में रही हैं। उन्होंने समलैंगिक विवाह, महिला उत्तराधिकार, और अलग उपनामों के प्रयोग जैसे सामाजिक सुधारों का विरोध किया है। उनकी यह रूढ़िवादी सोच उन्हें जापान के पारंपरिक मतदाताओं के बीच लोकप्रिय बनाती है, लेकिन उदारवादी वर्ग में आलोचना का कारण भी।
एलडीपी और कोमेइतो के अलगाव की एक वजह पार्टी में फैले काले धन के घोटाले और उससे उपजे असंतोष को भी माना जा रहा है। इस असंतोष के कारण ही ताकाइची को नए गठबंधन के सहारे सत्ता बचाने की जरूरत पड़ी।
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उनकी यासुकुनी तीर्थस्थल यात्राओं ने भी अंतरराष्ट्रीय स्तर पर विवाद खड़ा किया था। चीन और दक्षिण कोरिया जैसे पड़ोसी देशों ने इसे जापान के युद्धकालीन रवैये का प्रतीक बताया है। हालांकि हाल ही में ताकाइची ने व्यक्तिगत रूप से तीर्थस्थल जाने के बजाय वहां प्रतीकात्मक धार्मिक वस्तु भेजकर अपने रुख को कुछ नरम दिखाने की कोशिश की है।
राजनीतिक समीक्षकों का मानना है कि ताकाइची का प्रधानमंत्री बनना न केवल जापानी राजनीति की दिशा तय करेगा बल्कि यह एशियाई भू-राजनीति पर भी असर डाल सकता है। महिला नेतृत्व के इस ऐतिहासिक क्षण के बावजूद, उनके सामने चुनौती यह होगी कि वे रूढ़िवादी नीतियों को लागू करते हुए देश की स्थिरता और वैश्विक छवि दोनों को संतुलित रख सकें।
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