नई दिल्ली (राष्ट्र की परम्परा डेस्क) सरकारी बैंकों द्वारा बचत खाता धारकों से न्यूनतम बैलेंस न रखने पर भारी-भरकम शुल्क वसूलने का मामला सामने आया है। वित्त राज्य मंत्री पंकज चौधरी ने राज्यसभा में जानकारी दी कि वर्ष 2020-21 से लेकर 2024-25 (अब तक) की अवधि में सरकारी बैंकों ने इस मद में कुल 8997.65 करोड़ रुपये ग्राहकों से वसूले हैं।
उन्होंने बताया कि भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) ने बैंकों को यह अधिकार दिया है कि वे ग्राहकों द्वारा न्यूनतम बैलेंस न रखने पर शुल्क वसूल सकते हैं, लेकिन यह शुल्क ‘उचित’ और ‘पारदर्शी’ होना चाहिए। साथ ही, ग्राहकों को पहले से इसकी जानकारी देना भी अनिवार्य है।
वित्त राज्य मंत्री के अनुसार, बैंकों द्वारा यह शुल्क अपने-अपने दिशा-निर्देशों और सेवा शर्तों के अनुसार वसूला गया है, जिसे बैंक ग्राहकों को पहले से सूचित करते हैं। इसके बावजूद, यह मुद्दा सामाजिक और आर्थिक दृष्टिकोण से चिंता का विषय है, क्योंकि इससे गरीब और निम्न आय वर्ग के खाताधारक सर्वाधिक प्रभावित होते हैं।
कांग्रेस समेत कई विपक्षी दलों ने इस पर आपत्ति जताई है, और मांग की है कि सरकार इस तरह की ‘छुपी हुई वसूली’ पर लगाम लगाए। कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि जनधन योजना जैसे प्रयासों के माध्यम से वित्तीय समावेशन को बढ़ावा देने के बाद भी इस प्रकार की वसूली गरीब तबके के साथ अन्याय है।
विशेषज्ञों का यह भी कहना है कि बैंकिंग सेवाओं को सुलभ और सस्ता बनाने की दिशा में सरकार को ठोस कदम उठाने चाहिए, ताकि देश के हर नागरिक को बिना आर्थिक दंड के बैंकिंग सुविधाएं मिल सकें।
बैंक खातों में न्यूनतम राशि बनाए रखना आवश्यक होता है। यदि कोई खाता धारक बैंक द्वारा तय न्यूनतम राशि से कम बैलेंस रखता है, तो उस पर शुल्क लगाया जाता है। यह शुल्क बैंक के प्रकार, खाता श्रेणी और क्षेत्र (शहरी, अर्ध-शहरी, ग्रामीण) के अनुसार अलग-अलग होता है।
सरकारी बैंकों द्वारा वसूले गए इस शुल्क को लेकर आम जनता और विशेषज्ञों में नाराजगी है। अब देखना यह होगा कि सरकार इस दिशा में कोई नीति संशोधन करती है या नहीं।
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